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हरिवंशराय बच्चन

Question
CBSEENHN12026056

बच्चन की कविता ‘दिन जल्दी-जल्दी ढलता है’ के आधार पर स्पष्ट कीजिए कि शाम होने से पहले गंतव्य के निकट आ पहुँचने पर लोगों की मानसिकता कैसी होती है?

Solution

यदि मंजिल दूर हो तो लोगों की वहाँ तक पहुँचने की मानसिकता यह होती है कि कुछ ऐसा हो जाए कि वे अपनी मंजिल पर शीघ्र पहुँच जाएँ। इसके लिए वे कई प्रकार के उपाय भी करते हैं। मंजिल का दूर होना उनके मन में निराशा का भाव भी लाता है। गंतव्य के निकट पहुँचकर लोगों को लगता, दिन जल्दी ढलने लगा है। कहीं मंजिल तक पहुँचने से पहले ही रात न हो जाए। इसलिए थका यात्री भी कदम तेज कर लेता है।

Some More Questions From हरिवंशराय बच्चन Chapter

कवि क्या लिए फिरता है?

कवि को यह संसार कैसा प्रतीत होता है?

कवि किस मन: स्थिति में रहता है?

कवि इस संसार में अपना जीवन किस प्रकार से बिताता है?

प्रस्तुत पक्तियों का सप्रसंग व्याख्या करें?

मैं यौवन का उन्माद लिए फिरता हूँ,

उन्मादों में अवसाद लिए फिरता हूँ,

जो मुझको बाहर हँसा, रुलाती भीतर,

मैं, हाय 2 किसी की याद लिए फिरता हूँ,

कर यत्न मिटे सब, सत्य किसी ने जाना?

नादान वहीं है, हाय, जहाँ पर दाना!

फिर छू न क्या जग, जो इस पर भी सीखे?

मैं सीख रहा हूँ, सीखा ज्ञान भुलाना!

कवि कैसा उन्माद लिए फिरता है? इसका उसे क्या प्रतिफल मिलता है?

कवि किस मन: स्थिति में जी रहा है और क्यों?

कवि इस संसार के बारे में क्या बताता है?

कौन व्यक्ति मूर्ख है और क्यों?

प्रस्तुत पक्तियों का सप्रसंग व्याख्या करें?

मैं और, और जग और, कहाँ का नाता,

मैं बना-बना कितने जग रोज मिटाता;

जग जिस पृथ्वी पर जोड़ा करता वैभव,

मैं प्रति पग से उस पृथ्वी को ठुकराता!

मैं निज रोदन में राग लिए फिरता हूँ,

शीतल वाणी में आग लिए फिरता हूँ,

हों जिस पर भूपोंके प्रासाद निछावर,

मैं वह खंडहर का भाग लिए फिरता हूँ।