हमको मालूम है जन्नत की हकीकत लेकिन’ दिल के खुश रखने को गालिब ये ख्याल अच्छा है। दुष्यंत की गज़ल का चौथा शेर पढ़ें और बताएँ कि गालिब के उपर्युक्त शेर से वह किस तरह जुड़ता है?
दुष्यंत की गजल का चौथा शेर है:
खुदा नहीं, न सही, आदमी का ख्वाब सही,
कोई हसीन नजारा तो है नजर के लिए।
इस शेर और गालिब के शेर मे काफी समानता दिखाई देती है।
■ गालिब स्वर्ग की वास्तविकता से परिचित है, पर दिल को खुश करने के लिए उसकी मनोहर कल्पना करना बुरा नहीं है।
■ दुष्यंत का शेर भी आदमी’ के ख्वाब की असलियत जानता है, पर दिल को खुश करने के लिए हसीन नजारे की झलक भी काफी होती है।
दोनों शेरों में शायर काल्पनिक दुनिया में विचरण करता है और मन को बहलाने या भ्रम में रखने का प्रयास करता है।