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दुष्यंत कुमार

Question
CBSEENHN11012318

कहाँ तो तय था चिरागाँ हरेक घर के लिए,
कहाँ चिराग मयस्सर नहीं शहर के लिए।
यहाँ दरख्तों के साये में धूप लगती है,
चलो यहाँ से चलें और उम्र भर के लिए।

Solution

प्रसंग: प्रस्तुत पक्तियां दुष्यंत कुमार की गजल ‘साये में धूप’ से अवतरित हैं। राजनीति और समाज में जो कुछ चल रहा है उसे खारिज करने और विकल्प की तलाश इस गजल का केन्द्रीय भाव है।

व्याख्या-कवि राजनीतिज्ञों पर व्यंग्य करते हुए कहता है कि राजनीतिज्ञ लोगों को बड़े-बड़े लुभावने सपने दिखाते हैं। उन्होंने यह तय किया था कि प्रत्येक घर के लिए एक चिराग होगा अर्थात् हर घर को रोशनी प्रदान की जाएगी। इन घरों में रहने वालों के जीवन में खुशहाली आएगी। पर उनका आश्वासन थोथा होकर रह गया। यथार्थ स्थिति यह है कि पूरे शहर के लिए भी एक चिराग नहीं है। यह है कथनी और करनी का अंतर। पूरा शहर अंधकार में डूबा है अर्थात् अभावों में रह रहा है।

इस बनावटी समाज की दुनिया बड़ी विचित्र है। यहाँ तो पेड़ों की छाया में भी धूप लगती है अर्थात् यहाँ लोगों को शांति नहीं मिल पाती। यहाँ से कहीं दूर चल देना चाहिए। यह जाना कुछ देर के लिए न होकर पूरी उम्र भर के लिए होना चाहिए। इस समाज में रहना ठीक नहीं है।

विशेष- 1. राजनीतिज्ञों की कथनी-करनी का अंतर दर्शाया गया है।

2. दरख्तों के साये में धूप लगना ‘विरोधाभासी स्थिति है, अत: विरोधाभास अलंकार का प्रयोग है।

3. उर्दू-शब्दों का भरपूर प्रयोग किया गया है, जो गजल विधा के लिए उपयुक्त भी है।