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जयशंकर प्रसाद - आत्मकथ्य

Question
CBSEENHN10001609

निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर उसकी सप्रसंग व्याख्या कीजिये:
किंतु कहीं ऐसा न हो कि तुम ही खाली करने वाले-
अपने को समझो, मेरा रस ले अपनी भरने वाले।
यह विडंबना! अरी सरलते तेरी हँसी उड़ाऊँ मैं।
भूलें अपनी या प्रवंचना औरों की दिखलाऊँ मैं।
उज्वल गाथा कैसे गाऊँ, मधुर चाँदनी रातों की।
अरे खिल-खिला कर हँसते होने वाली उन बातों की।

 

Solution

प्रसंग- प्रस्तुत अवतरण हमारी पाठ्‌य-पुस्तक क्षितिज (भाग- 2) में संकलित कविता ‘आत्मकथ्य’ से अवतरित किया गया है जिसके रचयिता छायावादी काव्यधारा के प्रवर्त्तक श्री जयशंकर प्रसाद हैं। उन्हें ‘हंस’ नामक पत्रिका में छपवाने के लिए आत्मकथा लिखने के लिए कहा गया था लेकिन कवि को ऐसा प्रतीत होता था कि वे अति साधारण थे और उनके जीवन में कुछ भी ऐसा नहीं था जिसे पढ़-सुन कर लोग वाह-वाह कर उठें। कवि ने यथार्थ के साथ- साथ अपने विनम्र भावों को प्रकट किया है।

व्याख्या- जो लोग कवि की दुःखपूर्ण कथा को सुनना चाहते थे कवि उनसे कहता है कि उसकी कथा को सुनकर कहीं वे ही यह न समझने लगें कि वही उसकी जीवन रूपी गागर को खाली करने वाले थे। वे सब अपने आप को समझें; अपने को पहचानें। वे उसके भावों रूपी रस को प्राप्त कर अपने आप को भरने वाले थे। अरे सरल मन वालो, यह उपहास और निराशा का ही विषय था कि मैं उन पर व्यंग्य कर रहा था, उनकी हंसी उड़ा रहा था। वह अपने द्‌वारा की गई गलतियों या दूसरों के द्वारा दिए गए धोखों को क्यों प्रकट करें? उसे आत्मकथा के नाम से अपनी या औरों की बातें जग जाहिर नहीं करनीं। उसके जीवन में पूर्ण रूप से पीड़ा और निराशा की कालिमा ही नहीं है। उसमें मधुर चाँदनी रातों की मीठी स्मृतियाँ भी हैं पर वह उन उज्ज्वल गाथाओं को कैसे गाए और वह उन्हें क्यों प्रकट करे? वह अपने जीवन के कोमल पक्षों में सभी को भागीदार नहीं बनाना चाहता क्योंकि वे उसकी पूर्ण रूप से निजी यादें हैं। वह अपनी मधुर स्मृतियों में सबकी साझेदारी नहीं चाहता। जब वह कभी अपनों के साथ खिलखिला कर हँसा था, मीठी बातों में डूबा था और उसका हृदय प्रसन्नता से भर उठा था-उन क्षणों को वह औरों को क्यों बताए?

 

Some More Questions From जयशंकर प्रसाद - आत्मकथ्य Chapter

कोई भी अपनी आत्मकथा लिख सकता है। उसके लिए विशिष्ट या बड़ा होना जरूरी नहीं। हरियाणा राज्य के गुड़गांव में घरेलू सहायिका के रूप में काम करने वाली बेबी हालदार की आत्मकथा बहुतों के द्वारा सराही गई। आत्मकथात्मक शैली में अपने बारे में कुछ लिखिए।

श्री जयशंकर प्रसाद ने ‘आत्मकथ्य’ नामक कविता की रचना क्यों की थी?

कवि अपने जीवन के किस प्रसंग को जग जाहिर नहीं करना चाहता था और क्यों?

कवि ने अपनी कथा को भोली क्यों कहा है?

आप अपना आत्मकथ्य पद्‌य या गद्‌य में लिखिए।

 निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर उसकी सप्रसंग व्याख्या कीजिये:
मधुप गुन-गुना कर कह जाता कौन कहानी यह अपनी,
मुरझाकर गिर रहीं पत्तियाँ देखो कितनी आज धनी।
इस गंभीर अनंत-नीलिमा में असंख्य जीवन-इतिहास
यह लो, करते ही रहते हैं अपना व्यंग्य-मलिन उपहास
तब भी कहते हो-कह डालूँ दुर्बलता अपनी बीती।
तुम सुनकर सुख पाओगे, देखोगे-यह गागर रीती।

 

निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
मधुप गुन-गुना कर कह जाता कौन कहानी यह अपनी,
मुरझाकर गिर रहीं पत्तियाँ देखो कितनी आज धनी।
इस गंभीर अनंत-नीलिमा में असंख्य जीवन-इतिहास
यह लो, करते ही रहते हैं अपना व्यंग्य-मलिन उपहास
तब भी कहते हो-कह डालूँ दुर्बलता अपनी बीती।
तुम सुनकर सुख पाओगे, देखोगे-यह गागर रीती।

अवतरण में निहित भाव स्पष्ट करें।

 

निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
मधुप गुन-गुना कर कह जाता कौन कहानी यह अपनी,
मुरझाकर गिर रहीं पत्तियाँ देखो कितनी आज धनी।
इस गंभीर अनंत-नीलिमा में असंख्य जीवन-इतिहास
यह लो, करते ही रहते हैं अपना व्यंग्य-मलिन उपहास
तब भी कहते हो-कह डालूँ दुर्बलता अपनी बीती।
तुम सुनकर सुख पाओगे, देखोगे-यह गागर रीती।

मधुप’ में विद्‌यमान प्रतीकात्मकता लिखिए?


 

निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
मधुप गुन-गुना कर कह जाता कौन कहानी यह अपनी,
मुरझाकर गिर रहीं पत्तियाँ देखो कितनी आज धनी।
इस गंभीर अनंत-नीलिमा में असंख्य जीवन-इतिहास
यह लो, करते ही रहते हैं अपना व्यंग्य-मलिन उपहास
तब भी कहते हो-कह डालूँ दुर्बलता अपनी बीती।
तुम सुनकर सुख पाओगे, देखोगे-यह गागर रीती।

‘पत्तियों का मुरझाना’ किसे स्पष्ट करता है?




 

निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
मधुप गुन-गुना कर कह जाता कौन कहानी यह अपनी,
मुरझाकर गिर रहीं पत्तियाँ देखो कितनी आज धनी।
इस गंभीर अनंत-नीलिमा में असंख्य जीवन-इतिहास
यह लो, करते ही रहते हैं अपना व्यंग्य-मलिन उपहास
तब भी कहते हो-कह डालूँ दुर्बलता अपनी बीती।
तुम सुनकर सुख पाओगे, देखोगे-यह गागर रीती।

‘अनंत-नीलिमा’ और ‘असंख्य जीवन इतिहास’ क्या है?