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जहाँ पहिया है
“1992 मे अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के बाद अब यह ज़िला कभी भी पहले जैसा नहीं हो सकता।” - इस कथन का अभिप्राय यह है कि इस दिन के बाद महिलाओं में जागृति आ गई। उन्होंने रूढ़िवादिता व बधनों में जकड़ा हुआ जीवन जीना छोड़ दिया। वे अपने आत्मसम्मान के प्रति जागरूक हो उठीं। इस हेतु उन्होंने तरीका अपनाया साइकिल चलाने का। साइकिल चलाने से उनके जीवन में आत्मनिर्भरता व गतिशीलता आ गई। अब वे पीछे मुड़कर नहीं देखना चाहतीं। निरंतर उन्नति की ओर अग्रसर होना ही उनका उद्देश्य है।
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