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लाख की चूड़ियाँ
(क) ‘अब पहले जैसी औलाद कहाँ?’
किसी भी बुजुर्ग के मुख से आमतौर पर यह सुनने को मिल जाता है जिसमें स्पष्ट रूप से यह दुख और व्यंग्य छिपा रहता है कि आजकल की संतान बुजुर्गों को अधिक सम्मान नहीं देती।
(ख) ‘आजकल के खाद्य-पदार्थो में शुद्धता कहाँ?’
इस वाक्य से यह व्यंग्य किया जाता है कि दिन-प्रतिदिन खाद्य-पदार्थों में मिलावटी चीजों से उनकी शुद्धता समाप्त होती जा रही है।
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