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1870 और 1880 के दशकों में लोग ब्रिटिश शासन से क्यों असंतुष्ट थें?
1870 और 1880 के दशकों में लोग ब्रिटिश शासन से निम्नलिखित कारणों सेअसंतुष्ट थें।
(i) 1878 में आर्म्स एक्ट पारित किया गया जिसके जरिये भारतियों द्वारा अपने पास हथियार रखने का अधिकार छीन लिया गया।
(ii) उसी साल वर्नाक्यूलर प्रेस एक्ट भी पारित किया गया जिससे सरकार की आलोचना करने वालों को चुप कराया जा सके। इस कानून में प्रावधान था की अगर किसी अखबार में कोई चीज छपती है तो सरकार उसकी प्रिंटिंग प्रेस सहित सारी सम्पत्ति को जब्त कर सकती है।
(iii) 1883 में सरकार ने इल्बर्ट बिल लागू करने का प्रयास किया। इस विधयेक में प्रावधान किया गया था की भारतीय न्यायधीश भी ब्रिटिश या यूरोपीय व्यक्तियों पर मुकदमे चला सकते हैं। परन्तु जब अंग्रेज़ों के विरोध की वजह से सरकार ने यह विधेयक वापस ले लिया तो भारतियों ने इस बात का काफी विरोध किया।
(iv) 1870 और 1880 के दशकों में कई राजनीतिक संगठन अस्तित्व में आए जिन्होंने कई मुद्दों को उठाया।
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस किन लोगों के पक्ष मे बोल रही थी?
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस भारत के किसी एक वर्ग या समुदाय के पक्ष में नहीं बल्कि विभिन्न समुदायों के सभी लोगों के पक्ष में बोल रही थी।
पहले विश्व युद्ध से भारत पर कौन से आर्थिक असर पड़े?
पहले विश्व युद्ध से भारत पर निम्नलिखित प्रभाव पड़े-
(1) इस युद्ध की वजह से ब्रिटिश सरकार के रक्षा व्यय में भरी इज़ाफा हुआ था। इस खर्च को निकालने के लिए सरकार ने निजी आय और व्यावसायिक मुनाफे पर कर बढ़ा दिया था ।
(2) सैनिक व्यय में इज़ाफे तथा युद्धक सामग्री की आपूर्ति की वजह से ज़रूरी चीज़ों की कीमतों में भारी उछाल आया और आम लोगों की ज़िन्दगी मुश्किल होती गई।
(3) इस युद्ध ने औद्योगिक वस्तुओं जैसे -जुट के बोरे, कपड़ें रेल की पटरियाँ आदि की माँग बढ़ा दी और अन्य देशों से भारत आने वाले आयात में कमी ला दी थी ।
(4) युद्ध के दौरान भारतीय उद्योगों का विस्तार हुआ और भारतीय व्यावसायिक समूह विकास के लिए और अधिक अवसरों की माँग करने लगे।
(5) व्यावसायिक समूहों ने युद्ध से पर्याप्त मुनाफा कमाया।
1940 के मुस्लिम लीग के प्रस्ताव में क्या माँग की गई थी?
1940 में मुस्लिम लीग ने देश के पश्चिमी तथा पूर्वी क्षेत्रों में मुसलमानों के लिए 'स्वतंत्र राज्यों' की माँग की थी।
मध्यमार्गी कौन थे? वे ब्रिटिश शासन के खिलाफ किस तरह का संघर्ष करना चाहते थे?
कांग्रेस के वे राजनेता मध्यमार्गी कहलाते थे जो अपने उद्देश्यों एवं तरीकों में मध्यमार्गी थे।
(i) मध्यमार्गी नेताओं ने जनता को ब्रिटीश शासन के अन्यायपूर्ण चरित्र से अवगत कराया। उन्होंने अखबार निकाले, लेख लिखे और यह साबित करने का प्रयास किया कि ब्रिटिश शासन को आर्थिक तबाही की ओर ले जा रहा हैं।
(ii) उन्होंने अपने भाषणों में ब्रिटिश शासन की निंदा की और जनमत निर्माण के लिए देश के विभिन्न भागों में अपने प्रतिनिधि भेजे।
(iii) मध्यमार्गीयों को यह लगता था कि अंग्रेज़ स्वतंत्रता व न्याय के आदर्शों का सम्मान करते हैं इसलिए वे भारतीयों की न्यायसंगत माँगों को स्वीकार कर लेंगे। लिहाजा, कांग्रेस का मानना था कि सरकार को भारतीयों कि भावना से अवगत कराया जाना चाहिए।
कांग्रेस से आमूल परिवर्तनवादी की राजनीति मध्यमार्गी की राजनीति से किस तरह भिन्न थी?
आमूल परिवर्तनवादी की राजनीति | मध्यमार्गी की राजनीति |
(1) वे ज्यादा आमूल परिवर्तनवादी उद्देश्य और पद्धतियों के अनुरूप काम करने लगे थे। (2) उन्होंने 'निवदेन की राजनीति' के लिए नरमपंथियों की आलोचना की और आत्मनिर्भरता तथा रचनात्मक कामों के महत्त्व पर जोर दिया। (3) उनका मानना था कि लोगों को स्वराज के लिए अवश्य लड़ाई करनी चाहिए। (4) उनका मानना था कि लोगों को स्वराज के लिए अवश्य लड़ाई करनी चाहिए। |
(1)वे अपने उद्देश्यों एवं तरीकों में मध्यमार्गी थे। (2) वे निवेदन की राजनीति करते थे। (3) वे सरकार को भारतियों की भावना से अवगत कराना चाहते थे। (4) उनके विचार में अंग्रेज़ों को न्याय एवं स्वतंत्रता के आदर्शों के प्रति सम्मान था। इसलिए वे भारतियों की उचित माँगों को अवश्य मान जाएँगे। |
चर्चा करें कि भारत के विभिन्न भागों में असहयोग आंदोलन ने किस-किस तरह के रूप ग्रहण किए? लोग गांधीजी के बारे में क्या समझते थे?
(i) खेड़ा, गुजरात में पाटीदार किसानों ने अंग्रेज़ों द्वारा थोप दिए गए भारी लगान के खिलाफ अहिसंक अभियान चलाया।
(ii) आंध्र प्रदेश के गुंटूर जिले में आदिवासी और गरीब किसानों ने बहुत सारे 'वन सत्याग्रह' किए। समुंद्रतटीय आंध्र प्रदेश और तमिलनाडु में शराब की दुकानों की घेरेबंदी की गई।
(iii) सिंध और बंगाल में खिलाफत -असहयोग गठबंधन ने राष्ट्रीय आंदोलन को पर्याप्त साम्प्रदायिक एकता और मजबूती प्रदान की।
(iv) पंजाब में सिखों के अकाली आंदोलन अपने गुरुद्वारों से भ्रष्ट महंतों को हटाना चाहते थे।
(v) असम में 'गांधी महाराज की जय' के नारे लगाते हुए चाय बागान मज़दूरों ने अपनी तनख्वाह में इज़ाफे की माँग शुरू कर दी।
लोग गांधीजी को एक तरह का मसीहा, एक ऐसा व्यक्ति मानने लगे थे जो उन्हें मुसीबतों और गरीबी से छुटकारा दिला सकते है।
गांधीजी ने नमक कानून तोड़ने का फैसला क्यों लिया?
गांधीजी ने नमक कानून तोड़ने का फैसला इसलिए लिया कि उनके विचार में नमक पर टैक्स वसूलना पाप है क्योंकि यह हमारे भोजन का बुनियादी हिस्सा होता है। इसे अमीर और गरीब समान मात्रा में प्रयोग करते हैं।
1937-47 की उन घटनाओं पर चर्चा करें जिनके फलस्वरूप पाकिस्तान का जन्म हुआ?
(i)1930 के दशक में मुस्लिम जनता को अपने साथ लामबंद करने में कांग्रेस की विफलता ने भी लीग को अपना सामाजिक जनाधार फैलना में मदद की।
(ii) 1940 के दशक के शुरुआती सालों में जिस समय कांग्रेस के ज्यादातर नेता जेल में थे, उस समय लीग ने अपना प्रभाव फैलाने के लिए तेजी से प्रयास किए।
(iii) दूसरे विश्व युद्ध के बाद अंग्रेज़ों ने भारतीय स्वतंत्रता के लिए कांग्रेस और लीग से बातचीत शुरू कर दी। यह वार्ता असफल रही क्योंकि लीग का कहना था कि उसे भारतीय मुसलमानों का एकमात्र प्रतिनिधि माना जाए। कांग्रेस ने इस दावे को मंज़ूर नहीं किया।
(iv) 1946 के प्रांतीय चुनावों में लीग को मुसलमानों के लिए आरक्षित सीटों पर बेजोड़ सफलता मिली। इससे लीग 'पाकिस्तान' की माँग पर कायम रही।
(v) मार्च 1946 में ब्रिटिश कैबिनेट मिशन कांग्रेस और मुस्लिम लीग को प्रस्ताव के कुछ खास प्रावधनों पर सहमत नहीं कर सका। लीग ने 16 अगस्त 1946 को 'प्रत्यक्ष कार्रवाई दिवस' मनाने का आह्वान किया। इसी दिन कलकत्ता में दंगे भड़क उठे और मार्च 1947 तक हिंसा उत्तरी भारत के विभिन्न भागों में फैल गई।
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