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बताएँ कि निम्नलिखित में से कौन-कौन सी विधाएँ और शैलियाँ अंग्रेज़ों के ज़रिए भारत में आई:
तैल चित्र
लघुचित्र
आदमकद छायाचित्र
परिप्रेक्ष्य विधा का प्रयोग
परिप्रेक्ष्य विधा का प्रयोग
A.
तैल चित्र
C.
आदमकद छायाचित्र
D.
परिप्रेक्ष्य विधा का प्रयोग
ख़र्रा चित्रकार और कुम्हार कलाकार कालीघाट क्यों आए? उन्होंने नए विषयों पर चित्र बनाना क्यों शुरू किया?
ख़र्रा चित्रकार और कुम्हार कलाकार 19 वी सदी की शुरुआत में ही कालीघाट आ गए थे। क्योंकि उस समय कलकत्ता एक वाणिज्यिक और प्रशासकीय केंद्र के रूप में फैल रहा था। नए-नए औपनिवेशिक कार्यालय खुल रहे थे, नई इमारतों और सड़कों का निर्माण चल रहा था, नए बाज़ार खुल रहे थे। शहर में तरह-तरह के नए मौके पैदा हो रहे थे जहाँ आकर लोग कमा-खा सकते थे।
ग्रामीण कलाकर भी नए ग्राहकों और नए सरक्षंकों की उम्मीद में शहर में आकर बसने लगे।
1840 के दशक के बाद कालीघाट कलाकारों में हम एक नया रुझान देखते हैं। जहाँ मूल्य- मान्यताएँ, रुचियाँ, सामाजिक कायदे - कानून और रीती-रिवाज़ इतनी तेज़ी से बदल रहे थे, ऐसे समाज में रहने वाले कालीघाट चित्रकारों ने भी अपने आसपास की दुनिया पर ध्यान दिया और सामाजिक व राजनीतिक विषयों पर चित्र बनाने लगे।
राजा रवि वर्मा के चित्रों को राष्टवादी भावना वाले चित्र कैसे कहा जा सकता है?
हम राजा रवि वर्मा के चित्रों को राष्टवादी भावना वाले चित्र इसलिए समझ सकते हैं क्योंकि उन्होंने भारतीय पुराणों के चित्र बनाए थे।
उन्होंने रामायण और महाभारत के अनगिनत दृश्यों को किरमिच पर उतारा। मुंबई प्रेज़िडेंसी की अपनी यात्रा के दौरान उन्होंने पौराणिक कहानियों को जिस तरह मंच पर देखा था, उसी से प्रेणा लेकर उन्होंने ये नाटकीय दृश्य बनाए थे।
भारत में ब्रिटिश इतिहास के चित्रों में साम्राज्यवादी विजेताओं के रवैये को किस तरह दर्शया जाता था?
भारत में ब्रिटिश इतिहास के चित्रों में साम्राज्यवादी विजेताओं के रवैये को निम्न रूप से दर्शया जाता था:
(1) भारत में अंग्रेज़ों की जीत ब्रिटेन के इतिहास चित्रकारों के लिए एक उपयोगी सामग्री थी। ये चित्रकार मुसाफिरों के ब्यौरों और रेखाचित्रों के आधार पर ब्रिटिश जनता को दिखने के लिए भारत में ब्रिटिश कार्रवाईयों की सुन्दर छवि तैयार करने की कोशिश करते थे।
(2) कई चित्रों में ब्रिटिश सैनिक विजय के उत्सव को देखा जा सकता है।
(3) इन चित्रों में सत्ता, विजय तथा ब्रिटिश सर्वोच्चता का उत्सव मनाया जाता था।
(4) ये चित्र घटनाओं को नाटकीय रूप देते थे तथा ब्रिटिश विजय का यशगान करते थे।
साम्राज्यवादी ऐतिहासिक चित्रों ने शाही फतह की लोकस्मृतियाँ गढ़ने का प्रयास किया ताकि अंग्रेज़ों को अजय और सर्वशक्तिमान साबित किया जा सके।
आपके अनुसार कुछ कलाकार एक राष्ट्रीय कला शैली क्यों विकसित करना चाहते थे?
कुछ कलाकार एक राष्ट्रीय कला को विकसित करना चाहते थे क्योंकि उन्होंने रवि वर्मा की कला को नकल आधारित और पश्चिमी रंग-ढंग की कहकर खारिज कर दिया और ऐलान किया कि इस तरह कि शैली राष्ट्र के प्राचीन मिथिकों और जनश्रुतियों को चित्रित करने के लिए उपयुक्त नहीं हैं।
उनका मानना था कि पेंटिंग की असली भारतीय शैली गैर-पश्चिमी कला परंपराओं पर आधारित होना चाहिए और उसे पूर्वी दुनिया के आध्यात्मिक तत्व को पकड़ना चाहिए ।
कुछ कलाकारों ने सस्ती कीमत वाले छपे हुए चित्र क्यों बनाए? इस तरह के चित्रों को देखने से लोगों के मस्तिष्क पर क्या असर पड़ते थे?
कुछ कलाकारों ने सस्ती कीमत वाले छपे हुए चित्र बनाए ताकि गरीब लोग भी उन्हें आसानी से खरीद सके। इस तरह के चित्रों को देखने से लोगों के मस्तिष्क पर रचनात्मक प्रभाव पड़ता था।
कुछ लोगों को यह कलाशैली भावनात्मक दिखाई देती थी जबकि कुछ का मानना था कि आध्यात्मिकता भारतीय संस्कृति का केंद्रीय पहलू नहीं हो सकती, उनका मानना था कि कलाकारों को प्राचीन ग्रंथो की तस्वीरें बनाने की बजाए असली जीवन को देखना चाहिए और प्राचीन कला रूपों की बजाय जीवित लोक कला एवं जनजातीय डिज़ाइनो से प्रेरणा लेनी चाहिए। जैसे-जैसे यह बहस चलती रही, कला के क्षेत्र में नए आंदोलन उठे और नई-नई कलशैलियाँ आती रहीं।
इस अध्याय में दिए गए किसी एक ऐसे चित्र का अपने शब्दों में वर्णन करें जिसमें दिखाया गया है कि अंग्रेज़ भारतीयों से ज्यादा ताकतवर थे। कलाकार ने यह बात किस तरह दिखाई है?
ऐसी ही एक चित्र, चित्र संख्या 4 है। इस चित्र में गवर्नर जनरल हेस्टिंग्स और उसकी पत्नी का बेलवेडेयर एस्टेट में आदमकद तैल चित्र दर्शाया गया है। इस चित्र को योहान जोफनी द्वारा तैयार किया गया था। इसमें मैं पाता हूँ कि ब्रिटिश भारतीयों से अधिक शक्तिशाली थे। कलाकार ने इसे निम्नलिखित रूप में दर्शाया है -
(1) इस पेंटिंग का आकार ही उस अंग्रेज़ के महत्व को दर्शाता है जिसनें इस पोर्ट्रेट को कमीशन किया था।
(2) चित्रकार ने पृष्ठभूमि में शानदार औपनिवेशिक महल को दर्शाया है।
(3) इस पोट्रैट में औपनिवेशिक भवन में लम्बें - चौड़े लॉन को भी देखा जा सकता है ।
(4) इसमें अंग्रेज़ों को श्रेष्टतर और मालिकों के अंदाज में दर्शाया गया है। वे अपने कपड़ों का प्रदर्शन कर रहे हैं, शाही अंदाज में खड़े हैं तथा ऐश्वर्य भरा जीवन जीते हैं।
(5) भारतीय लड़की को दब्बू तथा कमतर हैसियत का दर्शाया गया है। वह अपने गोरे मालिकों की सेवा कर रही है।
(6) भारतीय लड़की को केंद्र में नहीं दर्शाकर एक धुँधली पृष्ठभूमि में दर्शाया गया है।
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