भारतीय इतिहास के कुछ विषय Iii Chapter 15 संविधान का निर्माण
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    NCERT Solution For Class 12 इतिहास भारतीय इतिहास के कुछ विषय Iii

    संविधान का निर्माण Here is the CBSE इतिहास Chapter 15 for Class 12 students. Summary and detailed explanation of the lesson, including the definitions of difficult words. All of the exercises and questions and answers from the lesson's back end have been completed. NCERT Solutions for Class 12 इतिहास संविधान का निर्माण Chapter 15 NCERT Solutions for Class 12 इतिहास संविधान का निर्माण Chapter 15 The following is a summary in Hindi and English for the academic year 2021-2022. You can save these solutions to your computer or use the Class 12 इतिहास.

    Question 1
    CBSEHHIHSH12028371

    उद्देश्य प्रस्ताव में किन आदर्शो पर ज़ोर दिया गया था?

    Solution

    13 दिसंबर 1946 को जवाहर लाल नेहरू ने संविधान सभा के सामने ''उद्देश्य प्रस्ताव'' पेश किया। इस उद्देश्य प्रस्ताव में निम्नलिखित बातों पर बल दिया गया था:

    1. इसमें यह घोषणा की गई कि भारत एक स्वतंत्र प्रभुसत्ता संपन्न गणराज्य होगा।
    2. भारत राज्यों का एक संघ होगा, जिसमें ब्रिटेन के अधीन रहे भारतीय क्षेत्र, भारतीय राज्य तथा भारत संघ में सम्मिलित होने की इच्छा रखने वाले अन्य राज्य सम्मिलित होंगे।
    3. प्रस्ताव में यह कहा गया कि भारत के समस्त लोगों के लिए सामाजिक, आर्थिक एवं राजनीतिक प्रतिष्ठा, अवसर तथा न्याय की समानता प्राप्त होंगी। सभी को धर्म, विचार अभिव्यक्ति, उपासना, व्यवसाय आदि की मौलिक स्वतंत्रता होगी।
    4. समस्त अल्पसंख्यकों, पिछड़े व जनजातीय क्षेत्रों एवं दमित व अन्य पिछड़े वर्गो के लिए पर्याप्त रक्षात्मक प्रावधान किए जाएँगे।
    5. भारतीय गणतंत्र के प्रदेश तथा उसकी अखंडता और इसके प्रभुसत्ता संबंधी सभी अधिकारों को सभ्य राष्ट्रों के नियमों तथा न्याय के अनुसार बनाए रखा जाएगा।

    Question 2
    CBSEHHIHSH12028372

    विभिन्न समूह 'अल्पसंख्यक' शब्द को किस तरह परिभाषित कर रहे थे?

    Solution

    संविधान सभा में विभिन्न समूह 'अल्पसंख्यक' शब्द को अलग-अलग प्रकार से परिभाषित कर रहे थे:

    1. संविधान सभा के मद्रास के बी. पोकर बहादुर ने मुस्लिम समुदाय को अल्पसंख्यक बताया तथा अल्पसंख्यकों के लिए पृथक् निर्वाचन प्रणाली को जारी रखने की माँग रखी। उन्होंने जोर दिया कि इस राजनीतिक प्रणाली में अल्पसंख्यकों को पूर्ण प्रतिनिधित्व दिया जाए।
    2. किसान आंदोलन के नेता और समाजवादी विचारों के समर्थक एनजी रंगा ने देश की दबी-कुचली और उत्पीड़ित जनता को 'अल्पसंख्यक' बताया जिन्हे सामान्य नागरिक के अधिकारों का लाभ भी नहीं मिल पा रहा था। उनका सन्देश विशेष रूप से आदिवासियों की ओर था। उन्हें सुरक्षा का आश्वासन मिलना चाहिए।
    3. आदिवासी समूह के प्रतिनिधि सदस्य जयपाल सिंह ने आदिवासियों को अल्पसंख्यक बताया। उन्होंने कहा कि यदि भारतीय जनता में ऐसा कोई समूह हैं जिसके साथ सही बर्ताव नहीं किया गया है, तो वह मेरा ही समूह है। उन्होंने पिछले 6,000 वर्षों से अपमानित किया जा रहा है, उपेक्षित किया जा रहा है।
    4. दलित समूहों के नेताओं ने दलितों को वास्तविक रूप से अल्पसंख्यक बताया। खाण्डेलकर ने कहा था: हमें हजारों साल तक दबाया गया है।... दबाया गया... इस हद तक दबाया कि हमारेदिमाग, हमारी देह काम नहीं करती और अब हमारा हृदय भी भावशून्य हो चुका है।

    Question 3
    CBSEHHIHSH12028373

    महात्मा गाँधी को ऐसा क्यों लगता था कि हिंदुस्तानी राष्ट्रीय भाषा होनी चाहिए?

    Solution

    राष्ट्रीय कोंग्रस ने तीस के दशक में यह स्वीकार कर लिया था कि हिंदुस्तानी को राष्ट्रीय भाषा का दर्जा मिलना चाहिए। गाँधीजी जी भी हिंदुस्तानी को राष्ट्र कि भाषा बनाने के पक्ष में थे। महात्मा गाँधी का मानना था कि हरेक को एक ऐसी भाषा बोलनी चाहिए जिसे लोग आसानी से समझ सकें। उनका मानना था कि हिंदुस्तानी भाषा में हिंदी के साथ-साथ उर्दू भी शामिल है और ये दो भाषाएँ मिलकर हिंदुस्तानी भाषा बनी है तथा यह हिंदू और मुसलमान दोनों के द्वारा प्रयोग में लाई जाती है।
    दोनों को बोलने वालों की संख्या अन्य सभी भाषाओं की तुलना में बहुत अधिक है। महात्मा गाँधी को लगता था कि यह बहुसांस्कृतिक भाषा विविध समुदायों के बीच संचार की आदर्श भाषा हो सकती है: वह हिंदुओं और मुसलमानों को, उत्तर और दक्षिण के लोगों को एकजुट कर सकती है। इसलिए उन्हें हिंदुस्तानी भाषा में राष्ट्रिय भाषा होने के सभी गुण दिखाई देते थे।

    Question 4
    CBSEHHIHSH12028374

    वे कौन सी ऐतिहासिक ताकतें थीं जिन्होंने संविधान का स्वरूप तय किया?

    Solution

    अनेक ऐतहासिक ताकतों ने भारतीय संविधान के स्वरूप निर्धारण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। इसका विवरण निम्नलिखित प्रकार से हैं:

    1. ब्रिटिश राज: भारत के संविधान पर औपनिवेशिक शासन के दौरान पास किए गए अधिनियम का व्यापक प्रभाव देखा जा सकता है। उदाहरण के लिए भारतीय संविधान में स्थापित शासन व्यवस्था पर 1935 के भारत सरकार अधिनियम का प्रभाव है।
    2. भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन: संविधान में जिस प्रजातांत्रिक, धर्मनिरपेक्ष व समाजवादी सिद्धांतों को अपनाया गया उस पर राष्ट्रीय आंदोलन की गहरी छाप है। राष्ट्रीय आंदोलन में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। कांग्रेस में विभिन्न विचारधाराओं से संबंधित लोग सदस्य थे। उनका प्रभाव संविधान पर देखा जा सकता है।
    3. संविधान सभा का गठन कैबिनेट मिशन योजना के अनुसार अक्टूबर 1946 ई० को किया गया था। इसके सदस्यों का चुनाव 1946 ई० के प्रान्तीय चुनावों के आधार पर किया गया था। संविधान सभा में ब्रिटिश भारतीय प्रान्तों द्वारा भेजे गए सदस्यों के साथ-साथ रियासतों के प्रतिनिधियों को भी सम्मिलित किया गया था। मुस्लिम लीग ने संविधान सभा की प्रारम्भिक बैठकों में ( अर्थात् 15 अगस्त, 1947 ई० से पहले ) भाग नहीं लिया। इस प्रकार संविधान सभा पर विशेष रूप से भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के सदस्यों का प्रभाव था। इसके 82 प्रतिशत सदस्य कांग्रेस के भी सदस्य थे।
    4. जनमत का प्रभाव: संविधान का स्वरूप निर्धारित करने में जनमत का भी महत्त्वपूर्ण स्थान था। उल्लेखनीय है कि संविधान सभा में होने वाली चर्चाओं पर जनमत का भी पर्याप्त प्रभाव होता था। जनसामान्य के सुझावों को भी आमंत्रित किया जाता था, जिसके परिणामस्वरूप सामूहिक सहभागिता का भाव उत्पन्न होता था। जनमत के महत्व पर प्रकाश डालते हुए जवाहरलाल नेहरू ने कहा था, 'सरकारें कागजों से नहीं बनती। सरकार जनता की इच्छा की अभिव्यक्ति होती है। हम यहाँ इसलिए जुटे हैं, क्योंकि हमारे पास जनता की ताकत है और हम उतनी दूर तक ही जाएँगे, जितनी दूर तक लोग हमें ले जाना चाहेंगे, फिर चाहे वे किसी भी समूह अथवा पार्टी से संबंधित क्यों न हों। इसलिए हमें भारतीय जनता की आकांक्षाओं एवं भावनाओं को हमेशा अपने जेहन में रखना चाहिए और उन्हें पूरा करने का प्रयास करना चाहिए।'
    5. प्रमुख सदस्यों का प्रभाव: भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस द्वारा विधि-विशेषज्ञों को संविधान सभा में स्थान दिए जाने पर विशेष ध्यान दिया गया था। सुप्रसिद्ध विधिवेत्ता एवं अर्थशास्त्री बी०आर० अम्बेडकर संविधान सभा के सर्वाधिक प्रभावशाली सदस्यों में से एक थे। उन्होंने संविधान की प्रारूप समिति के अध्यक्ष के रूप में सराहनीय कार्य किया। गुजरात के वकील के०के०एम० तथा मद्रास के वकील अल्लादि कृष्ण स्वामी अय्यर बी०आर० अम्बेडकर के प्रमुख सहयोगी थे। इन दोनों के द्वारा संविधान के प्रारूप पर महत्त्वपूर्ण सुझाव प्रस्तुत किए गए।

    Question 5
    CBSEHHIHSH12028375

    दलित समूहों की सुरक्षा के पक्ष में किए गए विभिन्न दावों पर चर्चा कीजिए।

    Solution

    दमित (दलित) समूहों की सुरक्षा के पक्ष में अनेक दावे प्रस्तुत किए गए। उल्लेखनीय है कि राष्ट्रीय आंदोलन के काल में बी०आर० अम्बेडर ने दलित जातियों के लिए पृथक् निर्वाचिकाओं की माँग की थी। किन्तु गाँधी जी ने इसका विरोध किया था, क्योंकि उन्हें लगता था कि ऐसा करने से ये समुदाय सदा के लिए शेष समाज से पृथक् हो जाएँगे। संविधान सभा में इस प्रश्न पर काफ़ी वाद-विवाद हुआ।

    1. दमित जातियों के कुछ सदस्यों का आग्रह था कि ''अस्पृश्यों'' (अछूतों) की समस्या को केवल संरक्षण और बचाव के जरिए हल नहीं किया जा सकता। उनकी अपंगता के पीछे जाति विभाजित समाज के सामाजिक कायदे-कानूनों और नैतिक मूल्य-मान्यताओं का हाथ हैं परंतु उन्हें सामाजिक तौर पर खुद से दूर रखा है। अन्य जातियों के लोग उनके साथ घुलने-मिलने से कतराते हैं। उनके साथ खाना नहीं खाते और उन्हें मंदिरों में नहीं जाने दिया जाता।
    2. मद्रास के सदस्य जे. नागप्पा ने कहा था, ''हम सदा कष्ट उठाते रहे हैं परन्तु अब हम और अधिक कष्ट उठाने को तैयार नहीं हैं। हमें अपनी जिम्मेदारियों का अहसास हो गया है। हम जानते हैं की हमें अपनी बात कैसे मनवानी हैं।' 
    3. मध्य प्रांत के सदस्य श्री के.जे. खाण्डेलकर ने दलितों की स्थिति का अपने शब्दों में बयान करते हुए कहा था:
      'हमें हजारों साल तक दबाया गया है।... दबाया गया... इस हद तक दबाया कि हमारे दिमाग, हमारी देह काम नहीं करती और अब हमारा हृदय भी भाव-शून्य हो चुका है। न ही हम आगे बढ़ने के लायक रह गए हैं। यही हमारी स्थिति है।'
    4. भारत विभाजन के बाद डॉ आंबेडकर ने भी दलितों के लिए निर्वाचिका की माँग छोड़ दी थी। अंतत: संविधान सभा में दलितों के उत्थान के लिए निम्नलिखित सुझाव स्वीकार किए गए:
    5. अस्पृश्यता का उन्यूलन किया जाए;
    6. हिंदू मंदिरों को सभी जातियों के लिए खोल दिया जाए; और
    7. दलित जातियों को विधानमंडलों व सरकारी नौकरियों में आरक्षण दिया जाए।

    यद्यपि बहुत- से लोगों का यह मानना था कि इससे भी सभी सभी समस्याएँ हल नहीं हो पाएँगी। उन्होंने कानूनी प्रावधानों के साथ-साथ समाज की सोच में बदलाव लाने पर बल दिया, तथापि लोकतांत्रिक जनता ने इसे संवैधानिक प्रावधानों का स्वागत किया।

    Question 6
    CBSEHHIHSH12028376

    संविधान सभा के कुछ सदस्यों ने उस समय की राजनीतिक परिस्थिति और एक मजबूत केंद्र सरकार की जरूरत के बीच क्या संबंध देखा?

    Solution
    1. संविधान सभा के कुछ सदस्य केन्द्र सरकार को अधिकाधिक शक्तिशाली देखना चाहते थे। ऐसे सदस्यों के विचारानुसार तत्कालीन राजनैतिक परिस्थिति में एक शक्तिशाली केंद्र सरकार की नितांत आवश्यकता थी। बी०आर० अम्बेडकर के मतानुसार एक मज़बूत केंद्र ही देश में शान्ति और सुव्यवस्था की स्थापना करने में समर्थ हो सकता था।
    2. उन्होंने घोषणा की कि वह एक शक्तिशाली और एकीकृत केंद्र (सुनिए, सुनिए); 1935 के गवर्नमेंट एक्ट में हमने जो केंद्र बनाया था, उससे भी अधिक शक्तिशाली केंद्र चाहते हैं। केंद्र की शक्तियों में वृद्धि किए जाने के समर्थक सदस्यों का विचार था कि एक शक्तिशाली केंद्र ही सांप्रदायिक हिंसा को रोकने में समर्थ हो सकता था।
    3. गोपालस्वामी अय्यर प्रांतों की शक्तियों में वृद्धि किए जाने के स्थान पर केंद्र को अधिक शक्तिशाली देखना चाहते थे। उनका विचार था कि केंद्र अधिक-से-अधिक मज़बूत होना चाहिए।”
    4. संयुक्त प्रांत (आधुनिक उत्तर प्रदेश) के एक सदस्य बालकृष्ण शर्मा ने भी एक शक्तिशाली केन्द्र की आवश्यकता पर बल दिया। उनकी दलील थी कि (1) देश के हित में योजना बनाने के लिए; (2) उपलब्ध आर्थिक संसाधनों को जुटाने के लिए; (3) उचित शासन व्यवस्था की स्थापना करने के लिए एवं (4) विदेशी आक्रमण से देश की रक्षा के लिए एक शक्तिशाली केन्द्र नितांत आवश्यक है।
    5. विभाजन से पहले कांग्रेस ने प्रांतों को पर्याप्त स्वायत्तता देने पर अपनी सहमति व्यक्त की थी। कुछ सीमा तक मुस्लिम लीग को इस बात का भरोसा दिलाने का प्रयास था कि जिन प्रांतों में लीग की सरकार बनी है वहाँ केंद्र द्वारा हस्तक्षेप नहीं किया जाएगा। परंतु विभाजन को देखते हुए अधिकतर राष्ट्रीयवादियों की सोच बदल चुकी थी। उनका कहना था कि आप सत्ता के विकेंद्रीकरण के लिए पहले जैसी नहीं रही है।
    6. औपनिवेशीक शासन द्वारा थोपी गई एकात्मक शासन-व्यवस्था पहले से ही विद्यमान थी। उस समय में हुई घटनाओं से केंद्र को बढ़ावा मिला। इसे अराजकता पर अंकुश लगाने तथा देश के आर्थिक विकास की योजना बनाने के लिए और भी आवश्यक माना जाने लगा। इस प्रकार संविधान में भारतीय संघ के घटक राज्यों की तुलना में केंद्र को अधिक शक्तिशाली बनाया गया।
    Question 7
    CBSEHHIHSH12028377

    संविधान सभा ने भाषा के विवाद को हल करने के लिए क्या रास्ता निकाला?

    Solution

    भारत जैसे विशाल देश में सभी स्थानों पर एक भाषा जैसा प्रचलन नहीं था। अत: संविधान सभा में भाषा के मुद्दे पर कई महीनों तक वाद-विवाद हुआ और कई बार तनातनी भी पैदा हो गई।

    1. शुरुआत में कांग्रेस तथा महात्मा गाँधी हिंदुस्तानी भाषा को राष्ट्रभाषा बनाने के पक्ष में थे। यह हिंदी तथा उर्दू के मेल से बनी एक समृद्ध भाषा थी जिसे भारत की जनसंख्या का एक बहुत बड़ा भाग बोलता और समझता था। परन्तु उन्नीसवीं शताब्दी के अंत में ये भाषाएँ धर्मों के साथ जुड़ गई। फिर भी महात्मा गाँधी और कांग्रेस का इस भाषा के प्रति मोह कम नहीं हुआ।
    2. संविधान सभा के अनेक सदस्य हिन्दी को राष्ट्रभाषा का दर्जा दिलवाना चाहते थे। संयुक्त प्रांत के एक कांग्रेसी सदस्य आर०वी० धुलेकर ने संविधान सभा के एक प्रारंभिक सत्र में ही हिन्दी को संविधान निर्माण की भाषा के रूप में प्रयोग किए जाने की माँग की थी। धुलेकर की इस माँग का कुछ अन्य सदस्यों द्वारा विरोध किया गया। उनका तर्क था कि क्योंकि सभा के सभी सदस्य हिन्दी नहीं समझते, इसलिए हिंदी संविधान निर्माण की भाषा नहीं हो सकती थी।
    3. इस प्रकार भाषा का मुद्दा तनाव का कारण बन गया और यह आगामी तीन वर्षों तक सदस्यों को उत्तेजित करता रहा। 12 सितम्बर, 1947 ई० को राष्ट्रभाषा के मुद्दे पर धुलेकर के भाषण से एक बार फिर तूफान उत्पन्न हो गया। इस बीच संविधान सभा की भाषा समिति द्वारा अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की जा चुकी थी।
    4. समिति ने राष्ट्रभाषा के मुद्दे पर हिन्दी समर्थकों तथा हिंदी विरोधियों के मध्य उत्पन्न हुए गतिरोध को समाप्त करने के लिए एक फार्मूला विकसित कर दिया था। समिति का सुझाव था कि देवनागरी लिपि में लिखी हिन्दी को भारत की राजकीय भाषा का दर्जा दिया जाए, किन्तु समिति द्वारा इस फार्मूले की घोषणा नहीं की गई, क्योंकि उसका विचार था कि हिन्दी को राष्ट्रभाषा बनाने के लिए क्रमशः आगे बढ़ना चाहिए।
    5. फार्मूले के अनुसार (1) यह निश्चित किया गया कि पहले 15 वर्षों तक सरकारी कार्यों में अंग्रेजी भाषा का प्रयोग जारी रखा जाएगा। (2) प्रत्येक प्रांत को अपने सरकारी कार्यों के लिए किसी एक क्षेत्रीय भाषा के चुनाव का अधिकार होगा। इस प्रकार, संविधान सभा की भाषा समिति ने विभिन्न पक्षों की भावनाओं को संतुष्ट करने तथा एक सर्वस्वीकृत समाधान प्रस्तुत करने के उद्देश्य से हिंदी को राष्ट्रभाषा के स्थान पर राजभाषा घोषित किया।

    Question 8
    CBSEHHIHSH12028378

    प्रांतों के लिए ज़्यादा शक्तियों के पक्ष में क्या तर्क दिए गए?

    Solution

    संविधान सभा में केंद्र व प्रांतों के अधिकारों के प्रश्न पर काफ़ी बहस हुई। कुछ सदस्य केंद्र को शक्तिशाली बनाने के पक्ष में थे, तो कुछ सदस्यों ने राज्यों के अधिक अधिकारों की शक्तिशाली पैरवी की। प्रांतो के अधिकारों का सबसे शक्तिशाली समर्थन मद्रास के. सन्तनम ने किया।

    1. सन्तनम ने कहा कि तमाम शक्तियां केंद्र को सौंप देने से वह मजबूत हो जाएगा यह हमारी गलतफहमी है। अधिक जिम्मेदारियों के होने पर केंद्र प्रभावी ढंग से काम नहीं कर पाएगा। उसके कुछ दायित्व को राज्यों को सौंप देने से केंद्र अधिक मजबूत हो सकता है।
    2. सन्तनम ने तर्क दिया कि शक्तियों का मौजूदा वितरण राज्यों को पंगु बना देगा। राजकोषीय प्रावधान राज्यों को खोखला कर देंगे और यदि पैसा नहीं होगा तो राज्य अपनी विकास योजनाएँ कैसे चलाएगा। उड़ीसा के एक सदस्य ने भी राज्यों के अधिकारों की वकालत की तथा उन्होंने यहाँ तक चेतावनी दे डाली के संविधान में शक्तियों के अति केंद्रीयकरण के कारण 'केंद्र बिखर जाएगा'।
    3. सन्तनम ने कहा कि यदि पर्याप्त जाँच -पड़ताल किए बिना शक्तियों का प्रस्तावित वितरण लागू किया गया तो हमारा भविष्य अंधकार में पड़ जाएगा। ऐसी स्थिति में कुछ ही सालों में सारे प्रांत 'केंद्र के विरुद्ध' उठ खड़े होंगे।

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