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(क) पाठ-कीचड़ का काव्य, लेखक-काका कालेलकर।
(ख) लोग कीचड़ को गंदा मानते है। उसको छूने से कपड़े मैले हो जाते है। कोई न तो अपने कपड़ों पर कीचड़ के छीटें देखना चाहता है, न ही उसमें पैर डालना पसन्द करता है। कारण एक ही है हम उसे गंदा समझते है।
(ग) इसमें प्रकृति के सुन्दर रूपों को वर्णन किया गया है। वर्णन करने वाले अर्थात् वर्णनकर्ता आकाश की नीलिका का पृथ्वी की हरियाली का या सरोवरों की स्वच्छता का वर्णन करते है।
(घ) हम आनजाने में कीचड़ के रंगों का प्रयोग निम्न स्थलों पर करते है।
(i) पुस्तकों के गत्तों पर (ii) घरों की दीवारों पर (iii) कीमती कपड़ों पर
(क) पाठ-कीचड़ का काव्य, लेखक-काका कालेलकर।
(ख) जब कीचड़ सूख जाती है तो उस पर गाय, बैल, पाड़े, भैंस, भेड़, बकरे आदि खूब चलते-फिरते तथा उठा-पटक करते हैं। भैसों के पाड़े तो सींग भिड़ाकर युद्ध करते हैं। तब सूखी कीचड़ पर जो निशान पड़ जाते है वे बहुत शोभाशाली प्रतीत होते है?
(ग) कीचड़ के सौन्दर्य का दर्शन निम्नलिखित स्थलों पर किए जा सकते हैं-
1. गंगा का किनारा 2. सिंधु का किनारा 3. खंभात में मही नदी के मुख पर
(घ) खंभात में मही नदी के मुख पर अथाह कीचड़ है। उस कीचड़ की गहराई इतनी अधिक है कि बड़े-बड़े हाथी ही नहीं, पूरे के पूरे पहाड़ उसमे समा सकते हैं।
(क) पाठ-कीचड़ का काव्य, लेखक-काका कालेलकर।
(ख) अन्न कीचड़ से पैदा होता है। इस बात को न जानने के कारण मनुष्य कीचड़ का तिरस्कार करता है।
(ग) कवि मनमाने ढंग से कमल को अति सुन्दर कहकर प्रसन्नता प्रकट करते है और कीचड़ को घृणित कहकर अपमानित करते है। कवि की दृष्टि में उनकी यह भेद भावना युक्ति शून्य है अर्थात् तर्कहीन है और समझ से परे है।
(घ) कविजन कमल की प्रशंसा और मल की निन्दा करने के पीछे निम्नलिखित तर्क देते है:
- हम वासुदेव कृष्ण की पूजा करते है किन्तु उनके पिता वसुदेव की पूजा नहीं करते।
- हम हीरे को मूल्यवान समझते है किन्तु उनके स्रोत कोयले, पत्थर को मूल्यवान नहीं मानते।
- हम मोती को गले में धारण करते है किन्तु उसे जन्म देने वाली सीपी को गले में धारण नहीं करते।
ज़मीन ठोस होने पर उस पर गाय, बैल, भैंस, बकरी आदि के पद-चिह्न अंकित होते हैं। ये जानवर, कीचड़ की ठोस जमीन पर ही अपने पैरों के निशान अंकित करते हैं तब वह शोभा देखते ही बनती है। इस जमीन पर जब दो मदमस्त पाड़े लड़ते है तब उनके पद्चिह्न और सींगों के चिहन अनोखी शोभा उत्पन्न करते हैं। ये चिहन ऐसे प्रतीत होते है जैसे महिषकुल के भारतीय युद्ध का पूरा इतिहास लिख दिया गया हो। इसकी शोभा अलग सी प्रतीत होती है।
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जलाशय - सर, सरोवर, तालाब
सिंधु - सागर, समुंदर, रत्नाकर
पंकज - नीरज, जलज, कमल
पृथ्वी - धरा, भूमि, धरती
आकाश - अम्बर, नभ, व्योम
(क) का - सम्बन्ध कारक।
(ख) का - सम्बन्ध कारक, ने-कर्ता कारक।
(ग) से - करण कारक।
(घ) पर - अधिकरण कारक।
(ङ) की - कर्म कारक।
आकर्षक - नायक के आकर्षक व्यक्तित्व को देखकर सभी दर्शक प्रभावित हुए बिना न रह सके।
यथार्थ - हमें कल्पना नहीं यथार्थ को महत्व देना चाहिए।
तटस्थता - न्याय करते हुए हमें तटस्थता की नीति अपनानी चाहिए।
कलाभिज्ञ - प्रदर्शनी में बड़े-बड़े कलाभिज्ञों ने उपस्थित होकर अपने विचार प्रस्तुत किए।
पदचिहन - महापुरुषों के पद्चिहनों पर चलकर ही हम अपना जीवन महान बना सकते हैं।
अंकित - नेताजी का नाम हमारे देश के इतिहास में स्वर्णाक्षरों में अंकित है।
तृप्ति - स्वादिष्ट भोज पाकर संन्यासी को तृप्ति हुई।
सनातन - हमें अपनी सनातन परम्पराओं का पालन करना चाहिए।
लुप्त - आज शेर संसार से धीरे-धीरे लुप्त होते जा रहे हैं।
जाग्रत - आज भारत अपने विकास के लिए जाग्रत हो चुका है।
घृणास्पद - कीचड से लथपथ मनुष्य घृणास्पद प्रतीत होता है।
युक्तिशून्य - नेताजी के सभी तर्क युक्तिशून्य थे।
वृत्ति - मदन विनम्र वृत्ति का बालक है।
(क) देखते-देखते मेरा मित्र मेरी आँखों से ओझल हो गया।
(ख) हम सभी को शीघ्रता से अब घर पहुंचना चाहिए।
(ग) कमल कीचड़ से ही पैदा होता है।
न, नहीं, मत का सही प्रयोग रिक्त स्थानों में पर कीजिए -
(क) तुम घर ..................... जाओ।
(ख) मोहन कल ..................... आएगा।
(ग) उसे ..................... जाने क्या हो गया है?
(घ) डाँटना ..................... प्यार से कहो।
(ङ) मैं वहां कभी ..................... जाऊंगा।
(च) ..................... वह बोला ..................... मैं ।
विद्यार्थी सूर्योदय और सूर्यास्त के दृश्य देखें तथा अपने अनुभवों को लिखें।
छात्र स्वयं करे ।
परीक्षोपयोगी नहीं।
छात्र स्वयं करे ।
परीक्षोपयोगी नहीं।
छात्र स्वयं करे ।
परीक्षोपयोगी नहीं।
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