निम्नलिखित गद्यांशों को पढ़कर पूछे गये प्रश्नों के उत्तर दीजिए-
हमारा अन्न कीचड़ में से ही पैदा होता है इसका जाग्रत भान यदि हर एक मनुष्य को होता तो वह कभी कीचड़ का तिरस्कार न करता। एक अजीब बात तो देखिए। पैक शब्द घृणास्पद लगता है, जबकि पंकज शब्द सुनते ही कवि लोग डोलने और गाने लगते हैं। मन बिलकुल मलिन माना चाता है किंतु कमल शब्द सुनते ही चित्त में प्रसन्नता और आहृदकत्व फूट पड़ते हैं। कवियों की ऐसी युक्तिशून्य वृत्ति उनके सामने हम रखें तो वे कहेंगे कि “आप वासुदेव की पूजा करते हैं इसलिए, वसुदेव को तो नहीं पूजते हीरे का भारी मूल्य देते हैं किंतु कोयले या पत्थर का नहीं देते और मोती को कंठ में बाँधकर फिरते हैं किन्तु उसकी मातुश्री को गले में नहीं बाँधते!” कम-से-कम इस विषय पर कवियों के साथ तो चर्चा न करना ही उत्तम!
प्रशन:
(क) पाठ तथा लेखक का नाम लिखो।
(ख) किस अज्ञान के कारण मनुष्य कीचड़ का तिरस्कार करता है?
(ग) कवि की किस वृत्ति को मुक्ति शुन्य कहकर अपमानित किया गया है?
(घ) कवि कीचड़ के विरोध में क्या-क्यो तर्क देते है?
(क) पाठ-कीचड़ का काव्य, लेखक-काका कालेलकर।
(ख) अन्न कीचड़ से पैदा होता है। इस बात को न जानने के कारण मनुष्य कीचड़ का तिरस्कार करता है।
(ग) कवि मनमाने ढंग से कमल को अति सुन्दर कहकर प्रसन्नता प्रकट करते है और कीचड़ को घृणित कहकर अपमानित करते है। कवि की दृष्टि में उनकी यह भेद भावना युक्ति शून्य है अर्थात् तर्कहीन है और समझ से परे है।
(घ) कविजन कमल की प्रशंसा और मल की निन्दा करने के पीछे निम्नलिखित तर्क देते है:
- हम वासुदेव कृष्ण की पूजा करते है किन्तु उनके पिता वसुदेव की पूजा नहीं करते।
- हम हीरे को मूल्यवान समझते है किन्तु उनके स्रोत कोयले, पत्थर को मूल्यवान नहीं मानते।
- हम मोती को गले में धारण करते है किन्तु उसे जन्म देने वाली सीपी को गले में धारण नहीं करते।