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कवि को दक्षिण दिशा पहचानने में कभी मुश्किल क्यों नही हुई?
कवि को बचपन में माँ ने यह सिखाया था कि दक्षिण दिशा की ओर यमराज का घर होता है अत: वहाँ पर पैर करके सोना उन्हें नाराज करने के समान है। इससे वह रुष्ट होते हैं। माँ द्वारा मिली इस सीख के कारण कवि को दक्षिण दिशा पहचानने में कभी मुश्किल नहीं हुई। तथा उन्होंने इसका जीवन भर पालन किया।
कवि ने ऐसा क्यों कहा कि दक्षिण को लाँघ लेना संभव नहीं था?
बचपन में कवि की माँ ने उससे बताया था कि दक्षिण दिशा की ओर पैर करके सोने से मृत्यु की प्राप्ति होती है। क्योंकि दक्षिण दिशा में यमराज का घर होता हैं। यह बात उसके मन में घर कर गयी थी तथा उसका मन आजीवन आशंकित रहा। इसके साथ उसने दक्षिण दिशा को एक प्रतीक के रूप में शोषण से जोड़ा है कि शोषण का भी कोई ओर-छोर नहीं होता। इससे हम बच नहीं सकते हैं। इसलिए कवि ने ऐसा कहा कि दक्षिण को लाँघ लेना संभव नहीं था।
कवि के अनुसार आज हर दिशा दक्षिण दिशा क्यों हो गई है?
यहाँ पर कवि ने हर दिशा की तुलना दक्षिण दिशा इसलिए की हैं दक्षिण दिशा का आशय मृत्यु की दिशा से है, यह दिशा यमराज का घर हैं। समाज में चारों ओर हिंसा, असंतोष का बोल-बाला हैं। कोई भी इससे अछुता नही है। एक ओर जहाँ विज्ञान ने आविष्कारों द्वारा समाज को प्रगतिशील बनाया है वही उसका यह आविष्कार समाज के लिए एक विस्फोट साबित हो रहा हैं। विध्वंसक हथियारों द्वारा चारों ओर हिंसा और आंतक फ़ैल रहा हैं। एक देश दूसरे देश का दुश्मन बनता जा रहा हैं। कोई भी स्थान संसार में सुरक्षित नही रह गया है। संसार के हर एक कोने में मौत अपना डेरा जमाए बैठी है।कवि सभ्यता के विकास की इसी खतरनाक दिशा के कारण कह रहा है कि आज हर दिशा दक्षिण दिशा बन गई है।
भाव स्पष्ट कीजिए -
सभी दिशाओं में यमराज के आलीशान महल हैं
और वे सभी में एक साथ
अपनी दहकती आँखों सहित विराजते हैं
प्रस्तुत पंक्तियों का भाव यह यह कि आज मनुष्य समाज के किसी भी कोने में सुरक्षित नही हैं। आज आतंक तथा हिंसा यमराज का चेहरा बने बैठे हैं। उन्होंने यमराज के रुप में आज संपूर्ण सृष्टि पर अपना कब्जा कर लिया है। इस प्रकार आज के समय में यमराज का चेहरा भी बदल गया है और वह सभी जगह विराजमान भी है।
कवि की माँ ईश्वर से प्रेरणा पाकर उसे कुछ मार्ग-निर्देश देती है। आपकी माँ भी समय-समय पर आपको सीख देती होंगी-
वह आपको क्या सीख देती हैं?
माँ सदैव ही अपनी संतान का हित सोचती हैं। मेरी माँ भी अपने अनुभवो के आधार पर मुझे समय समय पर समाज में व्यापत सही ओर गलत की नसीहयत देती रहती हैं। इसके साथ साथ वह मुझे छोटों-बड़ों का उचित सम्मान करना, जीवन मूल्यों को जीवन में उतारना इत्यादि शिक्षा देती रहती हैं।
कवि की माँ ईश्वर से प्रेरणा पाकर उसे कुछ मार्ग-निर्देश देती है। आपकी माँ भी समय-समय पर आपको सीख देती होंगी -
क्या उसकी हर सीख आपको उचित जान पड़ती है? यदि हाँ तो क्यों और नहीं तो क्यों नहीं ?
माँ तो माँ ही होती हैं। वह सदैव अपनी संतान का हित ही चाहती है। वह अपने अनुभव के आधार पर ही जो कुछ उसने सीखा या समाज में देखा है उसी के आधार पर वह हमें जीवन की सही राह पर चलना सिखाती है।
कभी-कभी उचित-अनुचित निर्णय के पीछे ईश्वर का भय दिखाना आवश्यक हो जाता है, इसके क्या कारण हो सकते हैं?
माँ कितना भी हमें डाँट दे वह सदैव हमारा भला ही चाहयेगी। अक्सर बच्चे अपनी माँ की बातों को अनदेखा कर देते हैं या माँ के डाँट ने पर उन्हें भला बुरा भी कह देते हैं। इसलिए माँ उन्हें सही रास्ता दिखाने के लिए ईश्वर का भय दिखाती हैं। जिससे उनकी ईश्वर के प्रति आस्था बनी रहे, वह बुराइयों और अनैतिक कृत्यों से दूर रहे, तथा मर्यादित जीवन जिएं।
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