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'शहरवासी सिर्फ़ माटी वाली को नहीं, उसके कंटर को भी अच्छी तरह पहचानते हैं।' आपकी समझ से वे कौन से कारण रहे होंगे जिनके रहते 'माटी वाली' को सब पहचानते थे?
शहरवासी माटी वाली तथा उसके कंटर को इसलिए जानते होंगे क्योंकि पूरे टिहरी शहर में केवल वही अकेली माटी वाली थी। उसका कोई प्रतियोगी नहीं था। माटीवाली की लाल मिट्टी हर घर की आवश्यकता थी, जिससे चूल्हे-चौके की पुताई की जाती थी। इसके बिना किसी काम नहीं चलता था। इसलिए सभी उसे जानते थे तथा उसके ग्राहक थे। वह पिछले अनेक वर्षों से शहर की सेवा कर रही थी। इस कारण स्वाभाविक रूप से सभी लोग उसे जानते थे। माटी वाली की गरीबी, फटेहाली और बेचारगी भी उसकी पहचान का एक कारण रही होगी।
माटी वाली के पास अपने अच्छे या बुरे भाग्य के बारे में ज़्यादा सोचने का समय क्यों नहीं था?
माटीवाली अपनी आर्थिक और पारिवारिक उलझनों में उलझी, निम्न स्तर का जीवन जीने वाली महिला थी। अपना तथा बुड्ढे का पेट पालना ही उसके सामने सबसे बड़ी समस्या थी। सुबह उठकर माटाखाना जाना और दिनभर उस मिट्टी को बेचना इसी में उसका सारा समय बीत जाता था। अपनी इसी दिनचर्या को वह नियति मानकर चले जा रही थी। ऐसे में माटीवाली के पास अच्छे और बुरे भाग्य के बारे में सोचने का समय नहीं था।
'भूख मीठी कि भोजन मीठा' से क्या अभिप्राय है?
भूख और भोजन का आपस में गहरा सम्बन्ध है। इस बात का आशय है जब मनुष्य भूखा होता है तो उसे भूख के कारण उसे बासी रोटी भी मीठी लगती है। यदि मनुष्य को भूख न हो तो उसे कुछ भी स्वादिष्ट भोजन या खाने की वस्तु दे दी जाए तो वह उसमें नुक्स निकाल ही देता है। परन्तु भूख लगने पर साधारण खाना या बासी खाना भी उसे स्वादिष्ट व मीठा लगेगा। इसलिए बुजुर्गों ने कहा है - भूख मीठी की भोजन मीठा। अर्थात् स्वाद भोजन में नहीं बल्कि मनुष्य को लगने वाली भूख से होता है। भूख लगने पर रूखा-सूखा भोजन भी स्वादिष्ट लगता है। भूख न होने पर स्वादिष्ट भोजन भी बे-स्वाद लगता है।
'पुरखों की गाढ़ी कमाई से हासिल की गयी चीज़ों को हराम के भाव बेचने को मेरा दिल गवाही नहीं देता।' - मालकिन के इस कथन के आलोक में विरासत के बारे में अपने विचार व्यक्त कीजिए।
हमारे पुरखों ने अनेकों संघर्ष के बाद चीजों को पाया है। पीढ़ियों से चली आ रही धरोहर ही हमारी विरासत है। यह अमूल्य है। इसका मूल्य रूपये-पैसों में नहीं आँका जा सकता। हम चाहे इन वस्तुओं में वृद्धि न कर पाएँ परन्तु इन वस्तुओं को कौडियों के दाम पर तो न बेचे। कुछ लोग स्वार्थवश इसे औने-पौने दामों में बेच देते हैं, जो कभी भी उचित नहीं है। हमें इनके पीछे छिपी भावना को समझना चाहिए। यह हमारे पूर्वजों की धरोहर है जिसे संभालकर रखना हमारा कर्तव्य है। यही धरोहर किसी दिन हमारे लिए गर्व का विषय बन जाता है।
माटी वाली का रोटियों का इस तरह हिसाब लगाना उसकी किस मजबूरी को प्रकट करता है?
माटी वाली का रोटियों का हिसाब लगाना उसकी गरीबी, फटेहाली और आवश्यकता की मजबूरी को प्रकट करता है। माटीवाली दिनभर के अथक परिश्रम के बाद भी इतना नहीं कमा पाती थी कि जिससे वह अपना तथा अपने बूढ़े बीमार पति का पेट भर सकें। इस प्रकार की मजदूरी से उसका जीवन-निर्वाह तक कठिन हो जाता है। यह माटीवाली की विवशता ही थी कि रोटियों का हिसाब लगाकर वह स्वयं खाती थी तथा बाकी बची रोटियाँ अपने बीमार बूढ़े पति के लिए रख लेती थी।
'आज माटी वाली बुड्ढे को कोरी रोटियाँ नहीं देगी।' - इस कथन के आधार पर माटी वाली के ह्रदय के भावों को अपने शब्दों में लिखिए।
माटी वाली का उसके पति के अलावा अन्य कोई नहीं है। दूसरा उसका पति अत्याधिक वद्ध होने के कारण बीमारियों से ग्रस्त है, उसका लीवर खराब होने के कारण उसका पाचनतंत्र भी भली-भाँति से काम नहीं करता है। इसलिए वह निर्णय लेती है कि वह बाज़ार से प्याज लेकर जायेगी व रोटी को रुखा देने के बजाए उसको प्याज की सब्जी बनाकर रोटी के साथ देगी इससे उसका असीम प्रेम झलकता है कि वह उसका इतना ध्यान रखती है कि उसे रुखी रोटियाँ नहीं देना चाहती। वह हर हाल में बूढ़े को खुश देखना चाहती है। उसे बूढ़े के प्रति दया, वात्सल्य और सहानुभूति है।
गरीब आदमी का श्मशान नहीं उजड़ना चाहिए। इस कथन का आशय स्पष्ट कीजिए।
गरीब आदमी का श्मशान नहीं उजड़ना चाहिए - इस कथन का आशय यह है कि गरीबों के रहने का आसरा नहीं छिनना चाहिए। माटीवाली जब एक दिन मजदूरी करके घर पहुँचती है तो उसके पति की मृत्यु हो चुकी होती है। अब उसके सामने विस्थापन से ज्यादा पति के अंतिम संस्कार की चिंता होती है, बाँध के कारण सारे श्मशान पानी में डूब चूके होते हैं। उसके लिए घर और श्मशान में कोई अंतर नहीं रह जाता है। इसी दुःख के आवेश में वह यह वाक्य कहती है।
'विस्थापन की समस्या' पर एक अनुच्छेद लिखिए।
विस्थापन का अर्थ है किसी स्थान पर बसे हुए लोगों को कहीं से बलपूर्वक हटाना और वह जगह उनसे खाली करा लेना। भारत जिस रफ्तार से 'विकास' और आर्थिक लाभ की दौड़ में भाग ले रहा है उसी भागमभाग में शहरों और गाँवों में हाशिए पर रह रहे लोगों को विस्थापन नाम की समस्या को झेलना पड़ रहा है और जो भी थोड़ा बहुत सामान या अन्य वस्तु उनके पास हैं वो सब उनसे छिन जाता है। बिजली व पानी आदि अन्य समस्याओं से जूझने के लिए नदियों पर बनाए गए बाँध द्वारा उत्पन्न विस्थापन सबसे बड़ी समस्या आई है। सरकार उनकी ज़मीन और रोजी रोटी को तो छीन लेती है पर उन्हें विस्थापित करने के नाम पर अपने कर्त्तव्यों से तिलांजलि दे देते हैं। कुछ करते भी हैं तो वह लोगों के घावों पर छिड़के नमक से ज़्यादा कुछ नहीं होता। भारत की दोनों अदालतों ने भी इस पर चिंता जताई है। इसके कारण जनता में आक्रोश की भावना ने जन्म लिया है। टिहरी बाँध इस बात का ज्वलंत उदाहरण है। लोग पुराने टिहरी को नहीं छोड़ना चाहते थे। इसके लिए कितने ही विरोध हुए, जूलूस निकाले गए पर सरकार के दबाव के कारण उन्हें नए टिहरी में विस्थापित होना पड़ा। अपने पूर्वजों की उस विरासत को छोड़कर जाने में उन्हें किस दु:ख से गुजरना पड़ा होगा उस वेदना को वही जानते हैं। सरकार को चाहिए कि इस विषय में गंभीरता से सोचे व विस्थापन की स्थिति न आए ऐसे कार्य करने चाहिए।विस्थापन का अर्थ है किसी स्थान पर बसे हुए लोगों को कहीं से बलपूर्वक हटाना और वह जगह उनसे खाली करा लेना। भारत जिस रफ्तार से 'विकास' और आर्थिक लाभ की दौड़ में भाग ले रहा है उसी भागमभाग में शहरों और गाँवों में हाशिए पर रह रहे लोगों को विस्थापन नाम की समस्या को झेलना पड़ रहा है और जो भी थोड़ा बहुत सामान या अन्य वस्तु उनके पास हैं वो सब उनसे छिन जाता है। बिजली व पानी आदि अन्य समस्याओं से जूझने के लिए नदियों पर बनाए गए बाँध द्वारा उत्पन्न विस्थापन सबसे बड़ी समस्या आई है। सरकार उनकी ज़मीन और रोजी रोटी को तो छीन लेती है पर उन्हें विस्थापित करने के नाम पर अपने कर्त्तव्यों से तिलांजलि दे देते हैं। कुछ करते भी हैं तो वह लोगों के घावों पर छिड़के नमक से ज़्यादा कुछ नहीं होता। भारत की दोनों अदालतों ने भी इस पर चिंता जताई है। इसके कारण जनता में आक्रोश की भावना ने जन्म लिया है। टिहरी बाँध इस बात का ज्वलंत उदाहरण है। लोग पुराने टिहरी को नहीं छोड़ना चाहते थे। इसके लिए कितने ही विरोध हुए, जूलूस निकाले गए पर सरकार के दबाव के कारण उन्हें नए टिहरी में विस्थापित होना पड़ा। अपने पूर्वजों की उस विरासत को छोड़कर जाने में उन्हें किस दु:ख से गुजरना पड़ा होगा उस वेदना को वही जानते हैं। सरकार को चाहिए कि इस विषय में गंभीरता से सोचे व विस्थापन की स्थिति न आए ऐसे कार्य करने चाहिए।
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