क्षितिज भाग २ Chapter 7 गिरिजाकुमार माथुर - छाया मत छूना
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    NCERT Solution For Class 10 Hindi क्षितिज भाग २

    गिरिजाकुमार माथुर - छाया मत छूना Here is the CBSE Hindi Chapter 7 for Class 10 students. Summary and detailed explanation of the lesson, including the definitions of difficult words. All of the exercises and questions and answers from the lesson's back end have been completed. NCERT Solutions for Class 10 Hindi गिरिजाकुमार माथुर - छाया मत छूना Chapter 7 NCERT Solutions for Class 10 Hindi गिरिजाकुमार माथुर - छाया मत छूना Chapter 7 The following is a summary in Hindi and English for the academic year 2021-2022. You can save these solutions to your computer or use the Class 10 Hindi.

    Question 1
    CBSEENHN10001825

    कवि ने कठिन यथार्थ के पूजन की बात क्यों कही है?

    Solution
    मनुष्य का जीवन कल्पनाओं के आधार पर नहीं टिकता। वह जीवन के कठोर धरातल पर स्थित होकर ही आगे गीत करता है। पुरानी सुख भरी यादों से वर्तमान दुःखी हो जाता है। मन में पलायनवाद के भाव उत्पन्न हो जाते हैं। उसे कठिन यथार्थ से आमना-सामना कर के ही आगे बढ़ने की चेष्टा करनी चाहिए। कवि ने जीवन की कठिन-कठोर वास्तविकता को स्वीकार करने की बात इसीलिए कही है।
    Question 2
    CBSEENHN10001826

    भाव स्पष्ट कीजिये
    प्रभुता का शरण-बिंब केवल मृगतृष्णा है,
    हर चंद्रिका में छिपी एक रात कृष्णा है।

    Solution
    कवि ने माना है कि धन-दौलत और सुखों की प्राप्ति हर मनुष्य अपने जीवन में करना चाहता है पर सबके लिए ऐसा हो पाना संभव नहीं होता। वह तो उसके मृगतृष्णा के समान ही सिद्ध होकर जाता है। उसे केवल सुखों के प्राप्त हो जाने का झूठा आभास मात्र होता है। वह उसे प्राप्त कर नहीं पाता। जिस कारण उसका हृदय पीड़ा से भर जाता है। हर चांदनी रात के पीछे जिस तरह अमावस्या की अंधेरी रात छिपी रहती है उसी प्रकार हर सुख के बाद दु:ख का भाव भी निश्चित रूप से छिपा ही रहता है।
    Question 3
    CBSEENHN10001827

    ‘छाया’ शब्द यहाँ किस संदर्भ में प्रयुक्त हुआ है? कवि ने उसे छूने के लिए मना क्यों किया है?

    Solution
    ‘छाया’ शब्द में लाक्षणिकता विद्यमान है जो भ्रम और दुविधा की स्थिति को प्रकट करता है। यह सुखों के भावों को प्रकट करता है जो मनुष्य के जीवन में सदा नहीं रहते। सुख-दुःख दोनों मिलकर मानव जीवन को बनाते हैं। जब दुःख का भाव जीवन में आ जाता है तब मनुष्य बार-बार उन सुखों को याद करता है जिन्हें उसने कभी प्राप्त किया था। दुःख की घड़ियों में सुखद समय की स्मृतियों में डूबने से उसके दुःख दुगुने हो जाते हैं। इसीलिए कवि ने उसे छूने के लिए मना किया है।
    Question 4
    CBSEENHN10001828

    कविता में विशेषण के प्रयोग से शब्दों के अर्थ में विशेष प्रभाव पड़ता है, जैसे कठिन यथार्थ।
    कविता में आए ऐसे अन्य उदाहरण छाँटकर लिखिए और यह भी लिखिए कि इससे शब्दों के अर्थ में क्या विशिष्टता पैदा हुई?

    Solution

    कवि ने छायावादी काव्यधारा से प्रभावित होकर अपनी कविता में विशेषणों का विशिष्ट प्रयोग किया है, जैसे-
    (i) सुरंग सुधियां = यादों की विविधता और मोहक सुंदरता की विशिष्टता।
    (ii) छवियों की चित्र--गंध = सुंदर रूपों में मादक गंध की विशिष्टता।
    (iii) तन-सुगंध = सुगंध के साकार रूप की विशिष्टता।
    (iv) जीवित-क्षण = समय की सकारात्मकता की विशिष्टता।
    (v) शरण-बिंब = जीवन में आधार बनने की विशिष्टता।
    (vi) यथार्थ कठिन = जीवन की कठोर वास्तविकता की विशिष्टता।
    (vii) दुविधा-हत साहस = साहस होते हुए भी दुविधाग्रस्त रहने की विशिष्टता।
    (viii) शरद्-रात = रात में शरद् ऋतु की ठंडक की विशिष्टता।
    (ix) रस-वसंत = वसंत ऋतु में मधुर रस के अहसास की विशिष्टता।
     

    Question 5
    CBSEENHN10001829

    ‘मृगतृष्णा’ किसे कहते हैं, कविता में इसका प्रयोग किस अर्थ में हुआ है?

    Solution
    ‘मृगतृष्णा’ का शाब्दिक अर्थ है- धोखा। जो न होकर भी होने का प्रकट करता है वही मृगतृष्णा है। कवि ने कविता में सुख संपदाओं की प्राप्ति से मानसिक सुख की प्राप्ति के लिए ‘मृगतृष्णा’ शब्द का प्रयोग किया है। किसी व्यक्ति के पास चाहे अपार भौतिक सुख हो पर उन सब से मानसिक सुख और शांति की प्राप्ति हो जाना संभव नहीं होता चाहे उसकी संपन्नता को देखकर लोग उसे सुखी मानते रहें।
    Question 6
    CBSEENHN10001830

    ‘बीती ताहि बिसार दे आगे की सुधि ले’ - यह भाव कविता की किस पंक्ति से झलकता है?

    Solution

    कवि ने ‘बीती ताहि बिसार दे आगे की सुधि ले’ के लिए अपनी कविता में जिस पंक्ति का प्रयोग किया हे, वह है-
    जो न मिला भूल उसे कर तू भविष्य वरण । 

    Question 7
    CBSEENHN10001831

    कविता में व्यक्त दु:ख के कारणों को स्पष्ट कीजिए।

    Solution
    हर व्यक्ति का जीवन सुख और दुःखों के मेल से बना है। सुख के बाद दुःख आते हैं तो दुःखों के बाद सुख। हमें सुख आनंद का अहसास कराते हैं तो दु:ख पीड़ा देते हैं। हम पीड़ा से मुक्ति पाने की चेष्टा करते हैं और सुख की घड़ियों को बार-बार याद करने लगते हैं जिससे पीड़ा कम होने की अपेक्षा बढ़ जाती है; वह दोगुनी हो जाती है। हम धन-दौलत प्राप्त कर अपना जीवन सुखमय बनाने की कोशिश करते हैं पर धन की प्राप्ति से सभी सुख प्राप्त नहीं होते। सुख का आधार तो मन की शांति है। हमें मन की शांति के लिए प्रयत्नशील हो जाना चाहिए। जो बातें बीत चुकी हों उन्हें भुला देना चाहिए और सुखद भविष्य के लिए प्रयासरत हो जाना चाहिए। दुःख के कारण पुरानी सुखद बातों को मन ही मन दोहराते नहीं रहना चाहिए।
    Question 8
    CBSEENHN10001832

    ‘जीवन में है सुरंग सुधियाँ सुहावनी’ से कवि का अभिप्राय जीवन की मधुर स्मृतियों से है। आपने अपने जीवन की कौन-कौन सी स्मृतियां संजो रखी हैं?

    Solution

    प्रत्येक व्यक्ति के जीवन में अनेक मधुर स्मृतियां सदा ही मन में छिपी रहती हैं जो समय-समय पर प्रकट होती रहती हैं। जब वे याद आती हैं तब अनायास ही होंठों पर मुस्कान बिखर जाती है। जब मैं छोटा था तब मेरी बुआ जी मेरे लिए मेरे जन्म दिन पर एक साथ दस उपहार लेकर आई थीं। मैंने हैरान होकर उनसे पूछा था कि एक साथ इतने उपहार वे क्यों ले आई थीं। उन्होंने मुस्कराकर कहा था कि वे पिछले दस वर्ष से विदेश में थी और मेरे जन्म दिन पर वे मुझे उपहार नहीं दे पाई थीं। इसलिए पिछले दस वर्षो के दस उपहार मुझे एक साथ दे रहीं थी। उपहार भी एक से बढ़कर एक सुंदर। मैं खुशी से झूम उठा था और आज भी मुझे वह घटना ऐसी लगती है जैसे उसे घटित हुए कुछ ही देर हुई हो। मैं इस घटना को कभी नहीं भूल सकता।
    एक बार मैं पैदल ही स्कूल जा रहा था। एक नन्हा-सा पिल्ला मेरे पीछे-पीछे चलने लगा। मुझे उसका अपने पीछे आना अच्छा लगा। जब मैं स्कूल पहुँच गया तो स्कूल के चौकीदार ने उसे भगा दिया। छुट्‌टी के बाद जैसे ही मैं बाहर निकला वैसे ही न जाने कहाँ से वह भागता हुआ आया और फिर मेरे पीछे-पीछे मेरे घर तक आया। यह क्रम अगले दिन भी ऐसे चला और इसके बाद महीना भर मेरा और उसका स्कूल जाना-आना एक साथ हुआ। इसके बाद मुझे नहीं पता कि अचानक वह पिल्ला कहां चला गया। मैंने उसे ढूंढने की कोशिश की पर फिर वह मुझे कहीं नहीं दिखाई नहीं दिया। इस घटना को अनेक वर्ष बीत चुके हैं पर मुझे उसकी मधुर स्मृति कभी नहीं भूलती।

    Question 9
    CBSEENHN10001833

    ‘क्या हुआ जो खिला फूल रस बसंत जाने पर?’ कवि का मानना है कि समय बीत जाने पर भी उपलब्धि मनुष्य को आनंद देती है। क्या आप ऐसा मानते हैं? तर्क सहित लिखिए।

    Solution

    समय का विशेष महत्व है। बीत जाने पर हमें प्राय: दुःख ही उठाना पड़ता है। समय कभी किसी की प्रतीक्षा नहीं करता। यह तो लगातार आगे भागता ही जाता है। यदि हम इसके एक-एक क्षण को व्यर्थ गंवा देते हैं तो हमारा कल्याण संभव नहीं हो सकता। कहा भी तो जाता है-
    ‘अब पछताए होत क्या जब चिड़िया चुग गई खेत’
    प्राय: माना जाता है कि धन सबसे कीमती वस्तु है पर यदि ध्यान से सोचा जाए तो समय धन से भी अधिक उपयोगी और मूल्यवान है। धन से हर वस्तु खरीदी जा सकती है पर समय नहीं खरीदा जा सकता। यह तो घड़ी की टिक-टिक के साथ भागता भी जाता है। यदि किसी बीमार व्यक्ति को समय पर उपचार न मिले तो उसका जीवन नहीं बचाया जा सकता। यदि समय पर विद्यार्थी पढ़ाई न करें तो वे परीक्षा में पास नहीं हो सकते। यदि किसान समय पर अपने खेत की सिंचाई न करे तो उसे उपज प्राप्त नहीं हो सकती। रेलगाड़ी, बस, वायुयान आदि किसी के लिए प्रतीक्षा नहीं करते। समय चूक जाने पर वे तो अपने गंतव्य की ओर जाते हैं।
    यदि किसी उपलब्धि की हमें समय के बाद प्राप्ति हो भी जाती है तो उसका कोई उपयोग नहीं रहता। फसल के सूख जाने के बाद वर्षा हो भी जाए तो उसका क्या लाभ? हमें चाहिए कि हम हर कार्य उचित समय पर ही करें ताकि इससे समय की उपलब्धि की उपादेयता बनी रहे।

    Question 10
    CBSEENHN10001834

    आप गर्मी की चिलचिलाती धूप में कभी सफ़र करें तो दूर सड़क पर आपको पानी जैसा दिखाई देगा पर पास पहुँचने पर वहाँ कुछ नहीं होता। अपने जीवन में भी कभी-कभी हम सोचते कुछ हैं, दिखता कुछ है लेकिन वास्तविकता कुछ और होती है। आपके जीवन में घटे ऐसे किसी अनुभव को अपने प्रिय मित्र को पत्र लिखकर अभिव्यक्त कीजिए।

    Solution

    48 -दुग्गल कॉलोनी,
    कानपुर।
    15 सितंबर, 20.........
    प्रिय अंकुश,
    मुझे तुम्हारा पत्र प्राप्त हो गया था पर मैं समय पर उसका उत्तर नहीं दे पाया। इस बात का खेद है। वास्तव में पिछले दिनों मेरे साथ कुछ ऐसा घटित हो गया था जिसकी मुझे अभी उम्मीद नहीं थी।

    तुम्हें याद होगा कि मैंने तुम्हारा अपने एक मित्र से परिचय कराया था, जब तुम पिछली छुट्‌टियों में घर आए थे। उसका नाम कपिल था। वह मेरी ही कक्षा में पढ़ता था और मेरे साथ प्राय: मेरे घर आया करता था। वह होस्टल में रहता था। उसके माता-पिता किसी दूर के गांव में रहते हैं। मेरे मम्मी-पापा तो उसे अपने बेटे के समान ही प्यार करते थे। यदि मेरे लिए वे बाजार से कुछ लाते थे तो उसके लिए भी वही लाना नहीं भूलते थे। कहते थे कि कितना होनहार बच्चा है। होशियार है, मीठा बोलता है, भोला-भाला है। पिछले सप्ताह उसने ही अपने गांव के कुछ लोगों के साथ मिलकर हमारे घर में चोरी करवा दी। हमारा लगभग पांच लाख रुपये का हो गया है। उसे तो हमारे घर की एक-एक चीज पता थी। लगभग हर रोज ही तो हमारे घर आता था। अगले महीने रीमा दीदी की शादी थी इसलिए घर में बहुत-सा उसके दहेज का नया सामान था, नकदी थी सब चोरी चला गया। हमें तो विश्वास ही नहीं हुआ जब उसे उसके गाँव से पकड़ कर हमारे सामने खड़ा कर दिया। उसने अपना अपराध कबूल कर लिया पर न तो उसके साथी पुलिस की पकड़ में आए हैं और न ही हमारा सामान बरामद हुआ है। देखो क्या होता है। शायद हमारा सामान हमें वापिस मिल जाए। उसकी शक्ल तो कितनी भोली थी और मन का कितना काला निकला। सच है की कई हमें कई लोगों के बारे मे सोचते कुछ हैं, वे निकलते कुछ हैं।

    ठीक है। अंकल-आंटी को मेरी ओर से नमस्ते कहना।
    तुम्हारा मित्र,
    अनुज

     

    Question 11
    CBSEENHN10001835

    ‘छाया मत छूना’ कविता के आधार पर श्री गिरिजा कुमार माथुर की मानसिक सबलता पर टिप्पणी कीजिए।

    Solution

    श्री गिरिजा कुमार माथुर छायावादी काव्य धारा से प्रभावित थे और उनकी कविता में प्रेम-सौंदर्य और कल्पना की अधिकता है पर कवि ने ‘छाया मत छूना’ कविता में कल्पना की उड़ान से बहुत दूर होकर अपनी मानसिक सबलता का परिचय दिया है, कोरी कल्पनाएँ जीवन में किसी काम की नहीं होती। इनसे सुखों की अनुभूति होती है लेकिन जीवन का वास्तविक सुख प्राप्त नहीं होता। जीवन में सुख-दुःख तो दोनों आते हैं लेकिन दुःख की घड़ियों में हम सुखों को याद करके अपनी पीड़ा को बढ़ा लेते हैं। जीवन में केवल मधुर सपने नहीं हैं। इसमें कठोरता भी बसती है। हमें पुरानी बातों को भुलाकर भविष्य की ओर मजबूत कदमों से बढ़ने की कोशिश करनी चाहिए।
    क्या हुआ जो खिला फूल रस-बसंत जाने पर?
    जो न मिला भूल उसे कर तू भविष्य वरण।

    जीवन की सार्थकता इसी में है कि हम अपने लक्ष्य की ओर अपनी दृष्टि जमाएं रखें और आगे बढ़ते जाएं न कि पिछले सुखों को याद कर-कर आसू बहाते रहें।

    Question 12
    CBSEENHN10001836

    कवि गिरिजाकुमार माथुर की  ‘पंद्रह अगस्त’ कविता खोजकर पढ़िए और उस पर चर्चा कीजिए।

    Solution

    अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से स्वयं कीजिए।
    यह भी जानें
    प्रसिद्ध गीत ‘We shall overcome’ का हिंदी अनुवाद ‘होंगे कामयाब’ शीर्षक से कवि गिरिजा कुमार माथूर ने किया है।

    Question 13
    CBSEENHN10001837

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर उसकी सप्रसंग व्याख्या कीजिये:
    छाया मत छूना
    मन, होगा दु:ख दूना।
    जीबन में हैं सुरंग सुधियाँ सुहावनी
    छवियों की चित्र-गंध फैली मनभावनी:
    तन-सुगंध शेष रही, बीत गई यामिनी,
    कुंतल के फूलों की याद बनी चाँदनी।
    भूली-सी एक छुअन बनता हर जीवित क्षण

    Solution

    प्रसंग- प्रस्तुत अवतरण हमारी पाठ्‌य-पुस्तक क्षितिज भाग-2 में संकलित कविता छाया मत छूना से अवतरित किया गया है जिसके रचयिता श्री गिरिजा कुमार माथुर हैं। कवि ने पुरानी सुखद बातों को बार-बार याद करने को उचित नहीं माना क्योंकि ऐसा करने से जीवन में आए दुःख दुगुने हो जाते हैं।

    व्याख्या-कवि कहता है कि हे मेरे मन, तू पुरानी सुख भरी यादों को बार-बार अपने मन में मत ला; उन्हें याद मत कर। ऐसा करने से मन में छिपा दुःख बढ़ जाएगा; वह दुगुना हो जाएगा। हम मानवों के जीवन में, न जाने कितनी सुख भरी यादें मन में छिपी रहती हैं। वे सुखद रंग-बिरंगी छवियों की झलक और उनके आस-पास मधुर यादों रूपी गंध सदा ही मन को मोहती रहती हैं। वे सदा ही अच्छी लगती हैं। जब सुखद बात बीत जाती है तब केवल शरीर की मादक-मोहक सुगंध ही यादों में शेष रह जाती है। जब तारों से भरी सुखद चाँदनी रात बीत जाती है तब यादें शेष रह जाती हैं। लंबे सुंदर फूलों में लगे फूलों की याद ही चांदनी के समान मन में छाई रहती हैं। सुख भरे समय में भूल से किया गया एक स्पर्श भी जीवित क्षण के समान सुंदर और मादक प्रतीत होता है। उसे भुलाने की बात मन मैं कभी नहीं आती। वही सुखद पल जीवन के लिए सुखदायी बन कर मन में छिपा रहता है।

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    Question 37
    CBSEENHN10001861

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर उसकी सप्रसंग व्याख्या कीजिये:
    छाया मत छूना
    मन, होगा दु :ख दूना।।
    यश है या न वैभव है, मान है न सरमाया;
    जितना ही दौड़ा तू उतना ही भरमाया।
    प्रभुता का शरण-बिंब केवल मृगतृष्णा है,
    हर चंद्रिका में छिपी एक रात कृष्णा है।
    जो है यथार्थ कठिन उस का तू कर पूजन

    Solution

    प्रसंग- प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्‌य-पुस्तक क्षितिज भाग-2 में संकलित कविता ‘छाया मत छूना’ से ली गई हैं जिसके रचयिता श्री गिरिजा कुमार माथुर हैं। कवि का मानना है कि जीवन में दुःख. और सुख तो आते रहते हैं, पर दु:ख की घड़ियों में सुखों को याद नहीं करना चाहिए।

    व्याख्या- कवि कहता है कि हे मेरे मन, जीवन में आने वाले दु:ख के समय छाया रूपी सुख को मत छूना क्योंकि इससे दु:ख कम नहीं होता बल्कि वह दो गुना बढ़ जाता है। मेरे जीवन में न तो शान- शौकत है और न ही धन-दौलत। मेरे पास न तो मान-सम्मान है और न ही किसी प्रकार की पूंजी। श्रेष्ठता और प्रभुता की प्राप्ति की इच्छा तो केवल धोखे के पीछे भागना है। जो नहीं है उसे प्राप्त करने की इच्छा है। हर सुख के पीछे दुःख छिपा रहता है। ठीक उसी प्रकार जैसे चांदनी रात के पीछे अमावस्या की अंधेरी रात छिपी रहती है। हे मेरे मन, जो अति मुश्किल सच्चाई है; वास्तविकता है- तू उसकी पूजा कर। उसे प्राप्त करने का प्रयत्न कर।

    Question 38
    CBSEENHN10001862

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
    छाया मत छूना
    मन, होगा दु :ख दूना।।
    यश है या न वैभव है, मान है न सरमाया;
    जितना ही दौड़ा तू उतना ही भरमाया।
    प्रभुता का शरण-बिंब केवल मृगतृष्णा है,
    हर चंद्रिका में छिपी एक रात कृष्णा है।
    जो है यथार्थ कठिन उस का तू कर पूजन

    अवतरण में निहित भावार्थ स्पष्ट कीजिए 


    Solution
    कवि ने प्रकट किया है कि दुःख की घड़ियों में बीते समय के सुखों को याद करने से दुःख कम नहीं होते बल्कि बढ़ जाते हैं। हर व्यक्ति सुख पाना चाहता है; धन-दौलत प्राप्त करना चाहता है पर जितना भी हम सुखों के पीछे भागते हैं, वे मृगतृष्णा के समान ही सिद्ध होते हैं। हमें उनकी प्राप्ति सरलता से नहीं होती। हर सुख के पीछे दुःख तो अवश्य छिपा रहता है। हमें जीवन की कठोर सच्चाइयों को ही मन में रखना चाहिए।

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    Question 41
    CBSEENHN10001865

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
    छाया मत छूना
    मन, होगा दु :ख दूना।।
    यश है या न वैभव है, मान है न सरमाया;
    जितना ही दौड़ा तू उतना ही भरमाया।
    प्रभुता का शरण-बिंब केवल मृगतृष्णा है,
    हर चंद्रिका में छिपी एक रात कृष्णा है।
    जो है यथार्थ कठिन उस का तू कर पूजन

    ‘भरमाया’ में निहित अर्थ स्पष्ट कीजिए।

    Solution
    ‘भरमाया’ का अर्थ है - भ्रम में पड़ना। सुख-संपत्तियों और सुखों को प्राप्त करने के लिए हम जितनी अधिक भाग-दौड़ करते हैं, यह उतना ही अधिक हमें भ्रम में डालते जाते हैं। हमारी परेशानियां इससे बढ़ती ही जाती हैं।
    Question 58
    CBSEENHN10001882

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर उसकी सप्रसंग व्याख्या कीजिये:
    छाया मत छूना
    मन, होगा दुख दूना।
    दुविधा-हत साहस है, दिखता है पंथ नहीं,
    देह सुखी हो पर मन के दुख का अंत नहीं।
    दुख है न चाँद खिला शरद-रात आने पर,
    क्या हुआ जो खिला फूल रस-बसंत जाने पर?
    जो न मिला भूल उसे कर तू भविष्य वरण,
    छाया मत छूना
    मन, होगा दुख दूना।

    Solution

    प्रसंग- प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्‌य-पुस्तक क्षितिज भाग-2 में संकलित कविता ‘छाया मत छूना’ से ली गई हैं जिसके रचयिता श्री गिरिजा कुमार माथुर हैं। कवि का मानना है कि जीवन में दुःख और सुख तो आते रहते हैं, पर दुख की घड़ियों में सुखों को याद नहीं करना चाहिए।

    व्याख्या- कवि कहता है कि हे मेरे मन, जीवन में आने वाले दुख के समय छाया रूपी सुख को मत छूना क्योंकि इससे दु:ख कम नहीं होता बल्कि वह दो गुना बढ़ जाता है। मेरे जीवन में न तो शान- शौकत है और न ही धन-दौलत। मेरे पास न तो मान-सम्मान है और न ही किसी प्रकार की पूंजी। श्रेष्ठता और प्रभुता की प्राप्ति की इच्छा तो केवल धोखे के पीछे भागना है। जो नहीं है उसे प्राप्त करने की इच्छा है। हर सुख के पीछे दुख छिपा रहता है। ठीक उसी प्रकार जैसे चांदनी रात के पीछे अमावस्या की अंधेरी रात छिपी रहती है। हे मेरे मन, जो अति मुश्किल सच्चाई है; वास्तविकता है- तू उसकी पूजा कर। उसे प्राप्त करने का प्रयत्न कर।

    Question 59
    CBSEENHN10001883

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
    छाया मत छूना
    मन, होगा दुख दूना।
    दुविधा-हत साहस है, दिखता है पंथ नहीं,
    देह सुखी हो पर मन के दुख का अंत नहीं।
    दुख है न चाँद खिला शरद-रात आने पर,
    क्या हुआ जो खिला फूल रस-बसंत जाने पर?
    जो न मिला भूल उसे कर तू भविष्य वरण,
    छाया मत छूना
    मन, होगा दुख दूना।

    अवतरण में निहित भावार्थ स्पष्ट कीजिए।

    Solution
    कवि ने प्रकट किया है कि दुःख की घड़ियों में बीते समय के सुखों को याद करने से दुःख कम नहीं होते बल्कि बढ़ जाते हैं। हर व्यक्ति सुख पाना चाहता है; धन-दौलत प्राप्त करना चाहता है पर जितना भी हम सुखों के पीछे भागते हैं, वे मृगतृष्णा के समान ही सिद्ध होते हैं। हमें उनकी प्राप्ति सरलता से नहीं होती। हर सुख के पीछे दुःख तो अवश्य छिपा रहता है। हमें जीवन की कठोर सच्चाइयों को ही मन में रखना चाहिए।
    Question 63
    CBSEENHN100018865

    निम्नलिखितकाव्यांशको ध्यानपूर्वकपढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए  [1 × 5 = 5]

    यश है या न वैभव है, मान है न सरमायाः
    जितनी ही दौड़ा तू उतना ही भरमाया।
    प्रभुता का शरण-बिंब केवल मृगतृष्णा है,
    हर चंद्रिका में छिपी एक रात कृष्णा है।
    जो है यथार्थ कठिन उसका तू कर पूजन
    छाया मत छूना
    मन, होगा दुख दूना।

    (क) ‘हर चंद्रिका में छिपी एक रात कृष्णा है’— इस पंक्ति से
    कवि किस तथ्य से अवगत करवाना चाहता है ?
    (ख) कवि ने यथार्थ के पूजन की बात क्यों कही है?
    (ग) “मृगतृष्णा’ का प्रतीकात्मक अर्थ लिखिए।

    Solution

    (क) ‘हर चंद्रिका में छिपी एक रात कृष्णा है— इस पंक्ति में कवि यह तथ्य अवगत कराना चाहते हैं कि मनुष्य को इस यथार्थ को स्वीकार कर लेना चाहिए कि जीवन में सुख-दुख का चोली दामन का साथ होता है। जीवन में केवल सुख रूपी चाँदनी रातें ही नहीं अपितु दुख रूपी अमावस्या भी आती है।

    (ख) कवि ने यथार्थ पूजन की बात इसलिए कही है क्योंकि यथार्थ ही जीवन की वास्तविकता है, इसका सामना हर किसी को करना पड़ता है। भविष्य को सुंदर बनाने के लिए वर्तमान में परिश्रम करना पड़ता है।

    (ग) ‘मृगतृष्णा’ का शाब्दिक अर्थ है-धोखा या भ्रम रेगिस्तान में रेत के टीलों पर चिलचिलाती धूप को पानी समझकर हिरण प्यास बुझाने दौड़ता है। इसी को मृगतृष्णा कहते हैं। इसका प्रतीकात्मक अर्थ भ्रमक चीजों से है जो सुख का भ्रम पैदा करती है। जो न होकर भी होने का आभास कराती है वही मृगतृष्णा है।

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