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भाव स्पष्ट कीजिये
प्रभुता का शरण-बिंब केवल मृगतृष्णा है,
हर चंद्रिका में छिपी एक रात कृष्णा है।
कवि ने छायावादी काव्यधारा से प्रभावित होकर अपनी कविता में विशेषणों का विशिष्ट प्रयोग किया है, जैसे-
(i) सुरंग सुधियां = यादों की विविधता और मोहक सुंदरता की विशिष्टता।
(ii) छवियों की चित्र--गंध = सुंदर रूपों में मादक गंध की विशिष्टता।
(iii) तन-सुगंध = सुगंध के साकार रूप की विशिष्टता।
(iv) जीवित-क्षण = समय की सकारात्मकता की विशिष्टता।
(v) शरण-बिंब = जीवन में आधार बनने की विशिष्टता।
(vi) यथार्थ कठिन = जीवन की कठोर वास्तविकता की विशिष्टता।
(vii) दुविधा-हत साहस = साहस होते हुए भी दुविधाग्रस्त रहने की विशिष्टता।
(viii) शरद्-रात = रात में शरद् ऋतु की ठंडक की विशिष्टता।
(ix) रस-वसंत = वसंत ऋतु में मधुर रस के अहसास की विशिष्टता।
कवि ने ‘बीती ताहि बिसार दे आगे की सुधि ले’ के लिए अपनी कविता में जिस पंक्ति का प्रयोग किया हे, वह है-
जो न मिला भूल उसे कर तू भविष्य वरण ।
प्रत्येक व्यक्ति के जीवन में अनेक मधुर स्मृतियां सदा ही मन में छिपी रहती हैं जो समय-समय पर प्रकट होती रहती हैं। जब वे याद आती हैं तब अनायास ही होंठों पर मुस्कान बिखर जाती है। जब मैं छोटा था तब मेरी बुआ जी मेरे लिए मेरे जन्म दिन पर एक साथ दस उपहार लेकर आई थीं। मैंने हैरान होकर उनसे पूछा था कि एक साथ इतने उपहार वे क्यों ले आई थीं। उन्होंने मुस्कराकर कहा था कि वे पिछले दस वर्ष से विदेश में थी और मेरे जन्म दिन पर वे मुझे उपहार नहीं दे पाई थीं। इसलिए पिछले दस वर्षो के दस उपहार मुझे एक साथ दे रहीं थी। उपहार भी एक से बढ़कर एक सुंदर। मैं खुशी से झूम उठा था और आज भी मुझे वह घटना ऐसी लगती है जैसे उसे घटित हुए कुछ ही देर हुई हो। मैं इस घटना को कभी नहीं भूल सकता।
एक बार मैं पैदल ही स्कूल जा रहा था। एक नन्हा-सा पिल्ला मेरे पीछे-पीछे चलने लगा। मुझे उसका अपने पीछे आना अच्छा लगा। जब मैं स्कूल पहुँच गया तो स्कूल के चौकीदार ने उसे भगा दिया। छुट्टी के बाद जैसे ही मैं बाहर निकला वैसे ही न जाने कहाँ से वह भागता हुआ आया और फिर मेरे पीछे-पीछे मेरे घर तक आया। यह क्रम अगले दिन भी ऐसे चला और इसके बाद महीना भर मेरा और उसका स्कूल जाना-आना एक साथ हुआ। इसके बाद मुझे नहीं पता कि अचानक वह पिल्ला कहां चला गया। मैंने उसे ढूंढने की कोशिश की पर फिर वह मुझे कहीं नहीं दिखाई नहीं दिया। इस घटना को अनेक वर्ष बीत चुके हैं पर मुझे उसकी मधुर स्मृति कभी नहीं भूलती।
समय का विशेष महत्व है। बीत जाने पर हमें प्राय: दुःख ही उठाना पड़ता है। समय कभी किसी की प्रतीक्षा नहीं करता। यह तो लगातार आगे भागता ही जाता है। यदि हम इसके एक-एक क्षण को व्यर्थ गंवा देते हैं तो हमारा कल्याण संभव नहीं हो सकता। कहा भी तो जाता है-
‘अब पछताए होत क्या जब चिड़िया चुग गई खेत’
प्राय: माना जाता है कि धन सबसे कीमती वस्तु है पर यदि ध्यान से सोचा जाए तो समय धन से भी अधिक उपयोगी और मूल्यवान है। धन से हर वस्तु खरीदी जा सकती है पर समय नहीं खरीदा जा सकता। यह तो घड़ी की टिक-टिक के साथ भागता भी जाता है। यदि किसी बीमार व्यक्ति को समय पर उपचार न मिले तो उसका जीवन नहीं बचाया जा सकता। यदि समय पर विद्यार्थी पढ़ाई न करें तो वे परीक्षा में पास नहीं हो सकते। यदि किसान समय पर अपने खेत की सिंचाई न करे तो उसे उपज प्राप्त नहीं हो सकती। रेलगाड़ी, बस, वायुयान आदि किसी के लिए प्रतीक्षा नहीं करते। समय चूक जाने पर वे तो अपने गंतव्य की ओर जाते हैं।
यदि किसी उपलब्धि की हमें समय के बाद प्राप्ति हो भी जाती है तो उसका कोई उपयोग नहीं रहता। फसल के सूख जाने के बाद वर्षा हो भी जाए तो उसका क्या लाभ? हमें चाहिए कि हम हर कार्य उचित समय पर ही करें ताकि इससे समय की उपलब्धि की उपादेयता बनी रहे।
48 -दुग्गल कॉलोनी,
कानपुर।
15 सितंबर, 20.........
प्रिय अंकुश,
मुझे तुम्हारा पत्र प्राप्त हो गया था पर मैं समय पर उसका उत्तर नहीं दे पाया। इस बात का खेद है। वास्तव में पिछले दिनों मेरे साथ कुछ ऐसा घटित हो गया था जिसकी मुझे अभी उम्मीद नहीं थी।
तुम्हें याद होगा कि मैंने तुम्हारा अपने एक मित्र से परिचय कराया था, जब तुम पिछली छुट्टियों में घर आए थे। उसका नाम कपिल था। वह मेरी ही कक्षा में पढ़ता था और मेरे साथ प्राय: मेरे घर आया करता था। वह होस्टल में रहता था। उसके माता-पिता किसी दूर के गांव में रहते हैं। मेरे मम्मी-पापा तो उसे अपने बेटे के समान ही प्यार करते थे। यदि मेरे लिए वे बाजार से कुछ लाते थे तो उसके लिए भी वही लाना नहीं भूलते थे। कहते थे कि कितना होनहार बच्चा है। होशियार है, मीठा बोलता है, भोला-भाला है। पिछले सप्ताह उसने ही अपने गांव के कुछ लोगों के साथ मिलकर हमारे घर में चोरी करवा दी। हमारा लगभग पांच लाख रुपये का हो गया है। उसे तो हमारे घर की एक-एक चीज पता थी। लगभग हर रोज ही तो हमारे घर आता था। अगले महीने रीमा दीदी की शादी थी इसलिए घर में बहुत-सा उसके दहेज का नया सामान था, नकदी थी सब चोरी चला गया। हमें तो विश्वास ही नहीं हुआ जब उसे उसके गाँव से पकड़ कर हमारे सामने खड़ा कर दिया। उसने अपना अपराध कबूल कर लिया पर न तो उसके साथी पुलिस की पकड़ में आए हैं और न ही हमारा सामान बरामद हुआ है। देखो क्या होता है। शायद हमारा सामान हमें वापिस मिल जाए। उसकी शक्ल तो कितनी भोली थी और मन का कितना काला निकला। सच है की कई हमें कई लोगों के बारे मे सोचते कुछ हैं, वे निकलते कुछ हैं।
ठीक है। अंकल-आंटी को मेरी ओर से नमस्ते कहना।
तुम्हारा मित्र,
अनुज
श्री गिरिजा कुमार माथुर छायावादी काव्य धारा से प्रभावित थे और उनकी कविता में प्रेम-सौंदर्य और कल्पना की अधिकता है पर कवि ने ‘छाया मत छूना’ कविता में कल्पना की उड़ान से बहुत दूर होकर अपनी मानसिक सबलता का परिचय दिया है, कोरी कल्पनाएँ जीवन में किसी काम की नहीं होती। इनसे सुखों की अनुभूति होती है लेकिन जीवन का वास्तविक सुख प्राप्त नहीं होता। जीवन में सुख-दुःख तो दोनों आते हैं लेकिन दुःख की घड़ियों में हम सुखों को याद करके अपनी पीड़ा को बढ़ा लेते हैं। जीवन में केवल मधुर सपने नहीं हैं। इसमें कठोरता भी बसती है। हमें पुरानी बातों को भुलाकर भविष्य की ओर मजबूत कदमों से बढ़ने की कोशिश करनी चाहिए।
क्या हुआ जो खिला फूल रस-बसंत जाने पर?
जो न मिला भूल उसे कर तू भविष्य वरण।
जीवन की सार्थकता इसी में है कि हम अपने लक्ष्य की ओर अपनी दृष्टि जमाएं रखें और आगे बढ़ते जाएं न कि पिछले सुखों को याद कर-कर आसू बहाते रहें।
अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से स्वयं कीजिए।
यह भी जानें
प्रसिद्ध गीत ‘We shall overcome’ का हिंदी अनुवाद ‘होंगे कामयाब’ शीर्षक से कवि गिरिजा कुमार माथूर ने किया है।
प्रसंग- प्रस्तुत अवतरण हमारी पाठ्य-पुस्तक क्षितिज भाग-2 में संकलित कविता छाया मत छूना से अवतरित किया गया है जिसके रचयिता श्री गिरिजा कुमार माथुर हैं। कवि ने पुरानी सुखद बातों को बार-बार याद करने को उचित नहीं माना क्योंकि ऐसा करने से जीवन में आए दुःख दुगुने हो जाते हैं।
व्याख्या-कवि कहता है कि हे मेरे मन, तू पुरानी सुख भरी यादों को बार-बार अपने मन में मत ला; उन्हें याद मत कर। ऐसा करने से मन में छिपा दुःख बढ़ जाएगा; वह दुगुना हो जाएगा। हम मानवों के जीवन में, न जाने कितनी सुख भरी यादें मन में छिपी रहती हैं। वे सुखद रंग-बिरंगी छवियों की झलक और उनके आस-पास मधुर यादों रूपी गंध सदा ही मन को मोहती रहती हैं। वे सदा ही अच्छी लगती हैं। जब सुखद बात बीत जाती है तब केवल शरीर की मादक-मोहक सुगंध ही यादों में शेष रह जाती है। जब तारों से भरी सुखद चाँदनी रात बीत जाती है तब यादें शेष रह जाती हैं। लंबे सुंदर फूलों में लगे फूलों की याद ही चांदनी के समान मन में छाई रहती हैं। सुख भरे समय में भूल से किया गया एक स्पर्श भी जीवित क्षण के समान सुंदर और मादक प्रतीत होता है। उसे भुलाने की बात मन मैं कभी नहीं आती। वही सुखद पल जीवन के लिए सुखदायी बन कर मन में छिपा रहता है।
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अनुप्रास- • दुख दूना, सुरंग सुधियां सुहावनी,
उपमा- • भूली-सी एक छुअन बनता हर जीवित क्षण।
प्रसंग- प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्य-पुस्तक क्षितिज भाग-2 में संकलित कविता ‘छाया मत छूना’ से ली गई हैं जिसके रचयिता श्री गिरिजा कुमार माथुर हैं। कवि का मानना है कि जीवन में दुःख. और सुख तो आते रहते हैं, पर दु:ख की घड़ियों में सुखों को याद नहीं करना चाहिए।
व्याख्या- कवि कहता है कि हे मेरे मन, जीवन में आने वाले दु:ख के समय छाया रूपी सुख को मत छूना क्योंकि इससे दु:ख कम नहीं होता बल्कि वह दो गुना बढ़ जाता है। मेरे जीवन में न तो शान- शौकत है और न ही धन-दौलत। मेरे पास न तो मान-सम्मान है और न ही किसी प्रकार की पूंजी। श्रेष्ठता और प्रभुता की प्राप्ति की इच्छा तो केवल धोखे के पीछे भागना है। जो नहीं है उसे प्राप्त करने की इच्छा है। हर सुख के पीछे दुःख छिपा रहता है। ठीक उसी प्रकार जैसे चांदनी रात के पीछे अमावस्या की अंधेरी रात छिपी रहती है। हे मेरे मन, जो अति मुश्किल सच्चाई है; वास्तविकता है- तू उसकी पूजा कर। उसे प्राप्त करने का प्रयत्न कर।
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तद्भव - दूना, सरमाया
तत्मस - प्रभुता, मृगतृष्णा
अनुप्रास:
• होगा दुःख दूना।
• जो है यथार्थ कठिन उसका तू कर पूजन।
(i) रात कृष्णा - दुःख-दीनता
(ii) छाया - पुरानी यादें और भविष्य की कामनाएँ
(iii) चंद्रिका – सुख–वैभव
(iv) मृगतृष्णा – धोका/मन का भटकाव
(v) दौड़ना - सांसारिक तृष्णाएँ
(vi) कृष्णा - निराशा/पीड़ा।
प्रसंग- प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्य-पुस्तक क्षितिज भाग-2 में संकलित कविता ‘छाया मत छूना’ से ली गई हैं जिसके रचयिता श्री गिरिजा कुमार माथुर हैं। कवि का मानना है कि जीवन में दुःख और सुख तो आते रहते हैं, पर दुख की घड़ियों में सुखों को याद नहीं करना चाहिए।
व्याख्या- कवि कहता है कि हे मेरे मन, जीवन में आने वाले दुख के समय छाया रूपी सुख को मत छूना क्योंकि इससे दु:ख कम नहीं होता बल्कि वह दो गुना बढ़ जाता है। मेरे जीवन में न तो शान- शौकत है और न ही धन-दौलत। मेरे पास न तो मान-सम्मान है और न ही किसी प्रकार की पूंजी। श्रेष्ठता और प्रभुता की प्राप्ति की इच्छा तो केवल धोखे के पीछे भागना है। जो नहीं है उसे प्राप्त करने की इच्छा है। हर सुख के पीछे दुख छिपा रहता है। ठीक उसी प्रकार जैसे चांदनी रात के पीछे अमावस्या की अंधेरी रात छिपी रहती है। हे मेरे मन, जो अति मुश्किल सच्चाई है; वास्तविकता है- तू उसकी पूजा कर। उसे प्राप्त करने का प्रयत्न कर।
निम्नलिखितकाव्यांशको ध्यानपूर्वकपढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए [1 × 5 = 5]
यश है या न वैभव है, मान है न सरमायाः
जितनी ही दौड़ा तू उतना ही भरमाया।
प्रभुता का शरण-बिंब केवल मृगतृष्णा है,
हर चंद्रिका में छिपी एक रात कृष्णा है।
जो है यथार्थ कठिन उसका तू कर पूजन
छाया मत छूना
मन, होगा दुख दूना।
(क) ‘हर चंद्रिका में छिपी एक रात कृष्णा है’— इस पंक्ति से
कवि किस तथ्य से अवगत करवाना चाहता है ?
(ख) कवि ने यथार्थ के पूजन की बात क्यों कही है?
(ग) “मृगतृष्णा’ का प्रतीकात्मक अर्थ लिखिए।
(क) ‘हर चंद्रिका में छिपी एक रात कृष्णा है— इस पंक्ति में कवि यह तथ्य अवगत कराना चाहते हैं कि मनुष्य को इस यथार्थ को स्वीकार कर लेना चाहिए कि जीवन में सुख-दुख का चोली दामन का साथ होता है। जीवन में केवल सुख रूपी चाँदनी रातें ही नहीं अपितु दुख रूपी अमावस्या भी आती है।
(ख) कवि ने यथार्थ पूजन की बात इसलिए कही है क्योंकि यथार्थ ही जीवन की वास्तविकता है, इसका सामना हर किसी को करना पड़ता है। भविष्य को सुंदर बनाने के लिए वर्तमान में परिश्रम करना पड़ता है।
(ग) ‘मृगतृष्णा’ का शाब्दिक अर्थ है-धोखा या भ्रम रेगिस्तान में रेत के टीलों पर चिलचिलाती धूप को पानी समझकर हिरण प्यास बुझाने दौड़ता है। इसी को मृगतृष्णा कहते हैं। इसका प्रतीकात्मक अर्थ भ्रमक चीजों से है जो सुख का भ्रम पैदा करती है। जो न होकर भी होने का आभास कराती है वही मृगतृष्णा है।
तत्सम = दुविधा, वरण
तद्भव = देह, फूल
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निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
छाया मत छूना
मन, होगा दुख दूना।
दुविधा-हत साहस है, दिखता है पंथ नहीं,
देह सुखी हो पर मन के दुख का अंत नहीं।
दुख है न चाँद खिला शरद-रात आने पर,
क्या हुआ जो खिला फूल रस-बसंत जाने पर?
जो न मिला भूल उसे कर तू भविष्य वरण,
छाया मत छूना
मन, होगा दुख दूना।
अलंकार चुन कर लिखिए।
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