Sponsor Area
फिराक गोरखपुरी का जीवन-परिचय एवं साहित्यिक परिचय दीजिए तथा रचनाओं का उल्लेख भी कीजिए।
जीवन-परिचय: फिराक गोरखपुरी का मूल नाम रघुपति सहाय फिराक है।
जन्म: सन् 28 अगस्त 1896 गोरखपुर (उत्तर प्रदेश)।
शिक्षा: रामकृष्ण की कहानियों से शुरुआत, बाद की शिक्षा अरबी फारसी और अंग्रेजी में। 1977 में डिप्टी कलैक्टर के पद पर चयनित, पर स्वराज्य आंदोलन के लिए 1918 में पद-त्याग। 1920 में स्वाधीनता आदोलन में हिस्सेदारी के कारण डेढ़ वर्ष की जेल। इलाहाबाद विश्वविद्यालय के अंग्रेजी विभाग में अध्यापक रहे। इनका निधन सन् 1983 में हुआ।
उर्दू शायरी का सबसे बड़ा हिस्सा रुमानियत, रहस्य और शास्त्रीयता से बँधा रहा है। नजीर अकबराबादी हाली जैसे जिन कुछ शायरों ने इस रिवायत को तोड़ा है, उनमें एक प्रमुख नाम फिराक गोरखपुरी का है।
फिराक ने परंपरागत भावबोध और शब्द भंडार का उपयोग करते हुए उसे नई भाषा और नए विषयों से जोड़ा। उनके यहाँ सामाजिक दु:ख-दर्द व्यक्तिगत अनुभूति बनकर शायरी में ढला है। इंसान के हाथों इंसान पे जो गुजरती है उसकी तल्ख सचाई और आने वाले कल के प्रति एक उम्मीद दोनों को भारतीय संस्कृति और लोकभाषा के प्रतीकों से जोड़कर फिराक ने अपनी शायरी का अनूठा महल खड़ा किया। उर्दू शायरी अपने लाक्षणिक प्रयोगों और चुस्त मुहावरेदारी के लिए विख्यात है, शेर लिखे नहीं जाते कहे जाते हैं। यानी एक तरह का संवाद प्रमुख होता है। मीर और गालिब की तरह फिराक ने भी कहने की इस शैली को साधकर आमजन से अपनी बात कही है। प्रकृति, मौसम और भौतिक जगत के सौंदर्य को शायरी का विषय बनाते हुए कहा “दिव्यता भौतिकता से पृथक् वस्तु नहीं है। जिसे हम भौतिक कहते हैं वही दिव्य भी है।’
हाथों पे बुलाती है उसे गोद-भरी
रह-रह के हवा में जो लोका देती है
गूँज उठती है खिलखिलाते बच्चे की हँसी।
प्रसंग: प्रस्तुत रुबाई उर्दू के मशहूर शायर फिराक गोरखपुरी द्वारा रचित है। फिराक की रुबाई में हिंदी का एक घरेलू रूप दिखाई देता है। इस रुबाई में माँ बच्चों को प्यार करती हुई हाथों में झूला झुला रही है।
व्याख्या: माँ अपने घर के आँगन में अपने चाँद के टुकड़े अर्थात् प्यारे बालक लिए हुए खड़ी है। वह बालक को हाथों पर झुला रही है। कभी उसे गोद में भर लेती है। माँ बच्चे को बार-बार हवा में उछाल-उछाल कर प्यार कर रही है। इस प्यार करने की क्रिया को लोका देना कहा जाता है। यह क्रिया बच्चे को बहुत भाती है। जब माँ बच्चे को हवा में उछाल-उछाल कर प्यार करती है तो बच्चा खुश होकर खिलखिलाकर हँस उठता है। घर के आँगन में बच्चे की हँसी की किलकारी गूँज उठती है।
विशेष: 1. बच्चे में चाँद के टुकड़े का आरोप है अत: रूपक अलंकार है।
2. ‘लोका देना’-एक अनूठा प्रयोग है।
3. ‘रह-रह’ में पुनरूक्ति प्रकाश अलंकार है।
4. वात्सल्य रस की व्यंजना हुई है।
5. हिंदी-उर्दू का मिश्रित रूप प्रयुक्त हुआ है। यह लोकभाषा है।
कौन, किसे, कहाँ लिए खड़ी है?
माँ अपने बच्चे को गोद में लिए हुए आँगन में खड़ी है। उसका बच्चा चाँद के टुकड़े के समान प्यारा है।
माता अपनी संतान को किस प्रकार खिला रही हें?
माता अपने बच्चे को बार-बार हवा में उछाल कर खिला रही है। इस क्रिया को ‘लोका देना’ कहा जाता है।
बच्चा क्या करता है?
लोका देने से बच्चा खिलखिलाकर हँसता है। घर के आँगन में उसकी किलकारी गूँजने लगती है।
उलझे हुए गेसुओं में कंघी करके
किस प्यार से देखता है बच्चा मुँह को
जब घुटनियों में ले के है पिन्हाती कपड़े।
प्रसंग: प्रस्तुत रुबाई उर्दू के मशहूर शायर फिराक गोरखपुरी द्वारा रचित है। इस रुबाई में शायर ने उस स्थिति का भावपूर्ण चित्रण किया है जब एक माँ बच्चे को नहलाकर उसे कपड़े पहनाती है।
व्याख्या: माँ बच्चे को नहलाती है। बच्चे के बालों से निर्मल जल छलक रहा है। इससे उसके बाल उलझ गए हैं। माँ बालों को कंघी करके सुलझाती है। जब माँ बच्चे को अपने घुटनों के बीच में लेकर उसे कपड़े पहनाती है तब बच्चा बड़े प्यार के साथ माँ के मुँह को देखता है।
विशेष: 1. ‘घुटनियों में लेकर कपड़े पिन्हाना’- एक विलक्षण प्रयोग है। यह लोकभाषा का एक रूप है।
2. ‘छलके-छलके’ में पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार है।
3. ‘कंघी करके’ में अनुप्रास अलंकार है।
4. वात्सल्य रस की व्यंजना हुई है।
माँ बच्चे के लिए क्या-क्या काम करती है?
माँ बच्चे को नहलाती है, उसके उलझे बालों को कंघी से सुलझाती है और उसे कपड़े पहनाती है।
बच्चा कब अपनी माँ के मुँह को प्यार से देखता है?
जब माँ बच्चे को नहलाकर अपने घुटनों के बीच लेकर कपड़े पहनाती है तब बच्चा प्यार से अपनी माँ का मुँह देखता है।
चीनी के खिलौने जगमगाते लावे
वो रूपवती मुखड़े पॅ इक नर्म दमक
बच्चे के घरौंदे में जलाती है दिए
प्रसंग: प्रस्तुत रुबाई उर्दू के मशहूर शायर फिराक गोरखपुरी द्वारा रचित है। इसमें दीवाली के त्योहार पर घर में खुशी के माहौल का चित्रण है।
व्याख्या: शायर बताता है कि दीवाली के अवसर पर घरों की पुताई की जाती है और उन्हें सजाया जाता है। दीवाली की शाम को इन पुते-सजे घरों में मिठाई के नाम पर चीनी के बने खिलौने आते हैं (चीनी के मीठे खिलौने) रोशनी भी जगमगाती है। इस अवसर पर माँ के रूपवती मुखड़े पर एक नरम-सी दमक आ जाती है। वह बच्चे के बनाए घर में दिए जलाती है। जब माँ बच्चे के घरोंदे में दिए जलाती है तो दिए की झिलमिलाती रोशनी की दमक माँ के मुखड़े की चमक को एक नई आभा प्रदान कर देती है।
विशेष: 1. दीवाली की शाम का यथार्थ चित्रण किया गया है।
2. ‘रूपवती मुखड़ा’ और ‘नर्म दमक’-विलक्षण प्रयोग है।
दीपावली पर लोग क्या करते हैं?
दीपावली पर लोग अपने घरों की पुताई कराते हैं और उन्हें खूब सजाते हैं।
दीपावली पर बच्चे माँ से क्या फरमाइश करते हैं?
दीपावली पर बच्चे माँ से चीनी के खिलौने लाने की फरमाइश करते हैं।
माँ के चेहरे पर मुस्कराहट क्यों आ जाती है?
बच्चे को प्रसन्न देखकर तथा दीपावली की रोशनी में माँ के चेहरे पर मुस्कराहट आ जाती है।
माँ बच्चे की फरमाइश को कैसे पूरी करती है?
माँ संतान के लिए खिलौने लाकर तथा उसके बनाए घर में दीपक जलाकर उसकी फरमाइश को पूरी करती है।
बालक तो हई चाँद पॅ ललचाया है
दर्पण उसे दे के कह रही है माँ
देख आईने में चाँद उतर आया है।
प्रसंग: प्रस्तुत रुबाई उर्दू के मशहूर शायर फिराक गोरखपुरी द्वारा रचित है। बच्चा चाँद लेने की हठ कर रहा है, माँ उसे बहलाने का प्रयास कर रही है।
व्याख्या: आँगन में खड़े होकर चाँद को देखकर बालक सुनकने लगता है और जिद पर उतर आता है। उसका जी चाँद पर ललचा जाता है और माँ से चाँद लेने का हठ करने लगता है। माँ बच्चे के हाथ में दर्पण (शीशा) देकर बहलाती है-’देख आईने (शीशे) में चाँद उतर आया है।’ यह चाँद की परछाईं भले ही हो, पर बच्चे के लिए तो चाँद है। माँ के इस प्रयास से बालक की जिद पूरी हो जाती है। बच्चे को लगता है कि उसे चाँद मिल गया।
विशेष: 1 ‘जिंदयाया’-विलक्षण प्रयोग है 1
2. ‘आईने में चाँद उतर आया’-कल्पना की आँख का एक रूप है।
3. वात्सल्य रस का परिपाक हुआ है।
4. उर्दू-हिंदी मिश्रित भाषा का प्रयोग है।
5. चित्रात्मक शैली का प्रयोग है।
बालक का जी किस पर ललचाया है?
बालक का जी चाँद पर ललचाया है। वह माँ से चाँद लेने की जिद करता है।
Sponsor Area
माँ उसकी इच्छा किस प्रकार पूरी करती है?
माँ बच्चे के हाथ में एक दर्पण देकर उसमें चाँद का प्रतिबिंब दिखा कर उसकी जिद पूरी करती है।
क्या वास्तव में चन्द्रमा दर्पण में उतर आया था?
नहीं, वास्तव में दर्पण में दिखाई देने वाला चंद्रमा नहीं, बल्कि उसका प्रतिबिंब था।
छायी है घटा गगन की हलकी-हलकी
बिजली की तरह चमक रहे हैं लच्छे
भाई के है बाँधती चमकती राखी।
प्रसंग: प्रस्तुत रुबाई उर्दू के मशहूर शायर फिराक गोरखपुरी द्वारा रचित है। इसमें शायर रक्षाबंधन के त्योहार का वर्णन करता है।
व्याख्या: शायर बताता है कि रक्षाबंधन एक मीठा बंधन है। इस दिन सुबह से ही भाई-बहन के रस का प्रवाह होने लगता है। रक्षाबंधन सावन मास में आता है। सावन का संबंध झीनी घटा से है। आसमान में हल्की-हल्की घटाएँ छाई हुई हैं। इन घटाओं में बिजली चमक रही है। घटा का जो संबध बिजली से है-वही संबंध भाई का बहन से होता है। राखी के लच्छे भी बिजली की तरह चमकते हैं। जब बहन भाई की कलाई पर राखी बाँधती है तो ये लच्छे और भी चमक उठते हैं।
विशेष: 1. रक्षाबंधन के त्योहार का बड़ा ही प्रभावी अंकन किया गया है।
2. ‘हलकी-हलकी’ में पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार है।
3. अभिधात्मक शैली का प्रयोग है।
4. भाषा सरल एवं सरस है।
रक्षाबंधन को त्योहार कब आता है? यह त्यौहार किसका प्रतीक है?
रक्षाबंधन का त्योहार सावन मास में आता है। यह त्योहार भाई बहन के प्रेम का प्रतीक है।
इस त्योहार पर प्राकृतिक वातावरण कैसा है?
इस त्योहार पर आसमान में हल्की-हल्की घटाएँ छाई हुई हैं। बिजली चमक रही है। राखी के लच्छे भी बिजली की तरह चमक रहे हैं।
या उड़ जाने को रंगो-बू गुलशन में पर तोलें हैं।
तारे आँखें झपकावें हैं जर्रा-जर्रा सोये हैं
तुम भी सुनो हो यारो! शब में सन्नाटे कुछ बोलें हैं।
प्रसंग: प्रस्तुत पक्तियाँ फिराक गोरखपुरी द्वारा रचित गजल से अवतरित हैं।
व्याख्या: कवि प्रकृति का मनोहारी चित्रण करते हुए कहता है कि कली की पंखुड़ियाँ धीरे-धीरे नाजुक (कोमल) गाँठों को खोलती हैं अर्थात् कलियाँ आहिस्ता-आहिस्ता खिलकर फूल बनने की राह में हैं। इन कलियों में सभी नौ रस समाए हैं। कलियों के खिलने से रंग और खुशबू सारे बगीचे में फैल जाती है।
रात्रि के समय आकाश में तारे आँखें झपकाते से प्रतीत होते हैं। उस समय पृथ्वी का एक कण सोया रहता है। हे मित्रो! तुम भी सुनो! रात में पसरा यह सन्नाटा भी बोलता प्रतीत होता है। इस सन्नाटे का भी कोई मतलब है। रात की खामोशी में भी कोई बोल रहा है।
विशेष: 1. तारों का मानवीकरण किया गया है।
2. ‘सन्नाटे का बोलना’ में विरोधाभास अलंकार है।
3. ‘जर्रा-जर्रा’ में पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार है।
4. उर्दू शब्दावली का भरपूर प्रयोग है।
‘नौरस गुंचे पंखड़ियों की नाजुक गिरहें खोले हैं’-आशय स्पष्ट करो।
इस पंक्ति का यह आशय है कि नए रस से भरपूर कलियों की पंखड़ियों को कोमल गाँठे खुलने ही वाली हैं अर्थात् वे खिलने वाली हैं।
कलियाँ किस तैयारी में हैं? इससे क्या होगा?
कलियाँ खिलकर फूल बनने की तैयारी में हैं। कलियों के खिलने से उनकी खुशबू सारे बगीचे में फैल जाएगी।
रात्रि के समय आकाश के तारे आँखें झपकाते से प्रतीत होते हैं।
कवि यारों से क्या कहता है?
कवि अपने यारों से कहता है कि रात की खामोशी में भी कोई बोलता हुआ सा प्रतीत होता है।
किस्मत हमको रो लेवे है हम किस्मत को रो लें हैं।
जो मुझको बदनाम करें है काश वे इतना सोच सकें
मेरा परवा खोलें हैं या अपना परवा खोलें हैं।
प्रसंग: प्रस्तुत पक्तियां मशहूर शायर फिराक गोरखपुरी द्वारा रचित गजल से अवतरित हैं।
व्याख्या: शायर स्वयं को अपनी व किस्मत (भाग्य) दोनों को एक समान बताता है। दोनों को एक ही काम मिला हुआ है और वह काम है-रोने का। किस्मत शायर पर रो लेती है और शायर किस्मत पर रो लेती है। दोनों की हालत खराब है।
शायर कहता है कि जो मुझको बदनाम करते हैं उन्हें इतना तो सोच लेना चाहिए था कि वे यह काम करते समय किसको बेपर्दा कर रहे हैं। वे मेरा पर्दा खोल रहे हैं या अपना पर्दा खोल रहे हैं।
आशय यह है कि दूसरों को बदनाम करने वाले अपने चरित्र का ही उद्घाटन करते हैं। वे दूसरों के ऊपर पड़े पर्दे को नहीं हटाते वरन् अपना असली रूप दिखा देते हैं।
विशेष: 1. ‘किस्मत पर रोना, किस्मत का उस पर रोना’-शायर के दर्द को अभिव्यक्त कर जाता है।
2. दूसरों को बदनाम करने वालों पर व्यंग्य किया गया है।
दोनों एक-दूसरे को क्या करते हैं?
कवि स्वयं भाग्य पर रोता है और भाग्य उस पर रोता है। दोनों एक-दूसरे से नाराज हैं।
शायर बदनाम करने वालों से क्या कहता है?
शायर बदनाम करने वालों से कहता है कि उन्हें इतना तो सोच लेना चाहिए कि वे किसको बेपर्दा कर रहे हैं। वे उसका पर्दा खोल रहे हैं अथवा अपना पर्दा खोल रहे हैं।
तेरा सौदा करने वाले दीवाना भी हो लें हैं
तेरे गम का पासे-अदब है कुछ दुनिया का खयाल भी है
सबसे छिपा के बर्द के मारे चुपके-चुपके रो लें हें।
प्रसंग: प्रस्तुत पंक्तियाँ उर्दू के मशहूर शायर फिराक गोरखपुरी द्वारा रचित गजल से ली गई हैं।
व्याख्या: शायर बताता है कि ये कीमत अदा करते हैं, पर मैं अपना विवेक बनाए रखता हूँ। तेरा सौदा करने वाले भले ही दीवाना बन लें। यह बात ईश्वर के संदर्भ में भी सटीक बैठती है और प्रिय के संदर्भ में भी। शायर प्रिय के वियोग में दुखी है। वह दुनिया का खयाल भी करता है। अत: अपने दुःख का बखान सबके सामने नहीं करता। वह तो सबसे छिपकर अपने दर्द के कारण चुपचाप अकेले में रो लेता है। इस प्रकार वह अपना दुख हल्का कर लेता है।
विशेष: 1. उर्दू शब्दों की भरमार है।
2. ‘चुपके-चुपके’ में पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार है।
कवि स्वयं को किस दशा में पाता है?
कवि स्वयं को प्रेम की दशा में पाता है। वह वियोगावस्था में है।
ये पंक्तियाँ अन्य किस अर्थ की ओर भी संकेत करती हैं।
ये पंक्तियाँ ईश्वर-प्रेम के संदर्भ में भी सटीक बैठती हैं।
फितरत का कायम है तवाजुन आलमे-हस्नो-इश्क में भी
उसको उतना ही पाते हैं खुद को जितना खो लें हैं
आबो-ताबे अशआर न पूछो तुम भी आँखें रक्खो हो
ये जगमग बैतों की दमक हे या हम मोती रोले हें।
प्रसंग: प्रस्तुत पंक्तियाँ प्रसिद्ध शायर फिराक गोरखपुरी द्वारा रचित गजल से ली गई है।
व्याख्या: शायर बताता है-समाज में आदत का संतुलन कायम है। हुस्न (खूबसूरती) और (मुहब्बत) में भी संतुलन बना रहता है। इसको हम उतना ही पाते हैं जितना इनमें हम स्वयं को खो देते हैं अर्थात् कुछ पाने के लिए कुछ खोना भी पड़ता है।
शायर कहता है कि दुनिया की बाहरी चमक-दमक में मत खो जाओ, तुम्हें अपनी आँखें खोलकर रखनी चाहिए। ये शेरों की दमक है अथवा हम मोती रोल रहे हैं अर्थात् तुम्हें जो शेरों की जगमग दिखाई दे रही है वह हमारी आँख से निकले मोती (आँसू) हैं। ये हमारे वियोगी हृदय से निकलकर आँखों की राह बाहर आए हैं। शायरी में भाव भी है और सौंदर्य भी।
विशेष: उर्दू शैली का स्पष्ट प्रभाव है। शायरी के बारे में स्वयं अपना निष्कर्ष निकालो।
Sponsor Area
शायर क्या शिक्षा देता है।
शायर यह शिक्षा देता है कि शायर की बात पर न जाकर शायरी की विशेषता को स्वयं अनुभव करो, पहचानो। शायर तो अपने शेरों में मोती बिखेरता ही है।
ऐसे में तू याद आये है अंजुमने-मय में रिंदों को
रात गये गर्दूं पॅ फरिश्ते बाबे-गुनाह जग खोलें हैं
सदके फिराक एजाजे-सुखन के कैसे उड़ा ली ये आवाज
इन गजलों के परदों में तो ‘मीर’ की गजलें बोले हैं।
प्रसंग: प्रस्तुत पंक्तियाँ मशहूर शायर फिराक गोरखपुरी द्वारा रचित गजल से ली गई हैं।
व्याख्या: शायर कहता है कि शराब की महफिल में शराबियों को तू (ईश्वर) याद आता है। पर जब रात बीत जाती है। तब आकाश में फरिश्ते पाप का अध्याय खोलते हैं। अर्थात् हमारे कर्मों को आकाश में ऊपर बैठे फरिश्ते देख रहे हैं।
फिराक (शायर) बेहतरीन शायरी पर कुर्बान जाता है। उसने यह आवाज कैसे उड़ा ली है। इन गजलों में तो मीर की गजलें बोलती जान पड़ती हैं। शायर फिराक पर मीर का विशेष प्रभाव है। उसने ‘सुना हो’, ‘रक्खों हो’ मीर की शायरी की तर्ज पर ही इस्तेमाल किए हैं। इस प्रकार बेहतरीन शायरी में ‘मीर’ की आवाज का आभास होता है।
विशेष: उर्दू शब्दों की भरमार है।
हमारे कर्मो का रहस्य कौन, कब खोल देते हैं?
हमारे कर्मों का रहस्य आकाश में बैठे फरिश्ते रात बीत जाने के बाद खोलते हैं।
शायर राखी के लच्छे को बिजली की चमक की तरह कहकर क्या भाव व्यंजित करना चाहता है?
शायर राखी के लच्छे को बिजली की चमक की तरह कहकर यह भाव व्यंजित करना चाहता है कि जो संबंध बादलों की घटा का बिजली के साथ है, वही संबंध भाई का बहन के साथ है। राखी कोई साधारण वस्तु नहीं है। इसके लच्छे बिजली चमक की तरह रिश्तों की पवित्रता को व्यंजित करते हैं। बिजली चमककर किसी सत्य का उद्घाटन कर जाती है, इसी प्रकार राखी के लच्छे भी चमककर संबंधों के उत्साह का उद्घाटन कर जाते हैं। शायर ने रक्षाबंधन के त्योहार का रोचक वर्णन किया है। रक्षाबंधन के कच्चे धागे ऐसे हैं जैसे बिजली के लच्छे। रक्षाबंधन सावन मास में आता है। सावन मास में बादल होते हैं। घटा का जो संबंध बिजली से है वही संबंध भाई का बहन से है। कवि कहना चाहता है कि यह पवित्र बंधन बिजली की तरह चमकता है।
खुद का परदा खोलने से क्या आशय है?
खुद का परदा खोलने से यह आशय है कि अपने वास्तविक स्वरूप को दर्शाना। जब हम किसी दूसरे को नंगा करने का प्रयास करते हैं तब हम स्वयं नंगे हो जाते हैं। दूसरे के रहस्य को उजागर करना अपने को बेपर्दा करना है। यदि कोई व्यक्ति दूसरे की निंदा करता है तो वह स्वयं की बुराई कर रहा होता है। इसलिए शायर ने कहा है कि मेरा रहस्य खोलने वाले अपने रहस्यों को भी बता रहे हैं।
किस्मत शायर पर रोती है अर्थात् उससे गिला-शिकवा करती है जबकि शायर अपनी किस्मत पर रोता है। उसकी किस्मत ही खराब है। इस प्रकार शायर और किस्मत में तना-तनी चलती रहती है। दोनों का संबंध अटूट जो है। कवि कहता है कि उसका भाग्य भी कभी उसके साथ नहीं रहा। किस्मत सदैव उसके खिलाफ रही। इसलिए वह किस्मत पर भरोसा नहीं करता। जब भी भाग्य की चर्चा होती है तो वह उसके नाम पर रो लेता है।
गोदी के चाँद और गगन के चाँद का रिश्ता।
गोदी का चाँद नन्हा बालक है और दूसरा चाँद आसमान में चमकने वाला चाँद है। बच्चों को आज भी चाँद प्यारा लगता है। एक चाँद दूसरे चाँद की माँग करता है। दोनों में गहरा रिश्ता है। बालक आसमान के चाँद को खिलौना समझता है और लेने की हठ करता है। माँ चाँद की छाया दर्पण में दिखलाकर उसे बहलाती है। चाँद की परछाईं भी तो चाँद ही है।
सावन की घटाएँ व रक्षाबंधन का पर्व।
रक्षाबंधन का त्योहार सावन में आता है। सावन के महीने में आकाश में घटाएँ घिर आती हैं। घटाओं के मध्य बिजली चमकती है। इन घटाओं का संबंध रक्षाबंधन के पर्व से है। सावन का जो संबंध झीनी घटा से है और घटा का जो संबंध बिजली से है-रक्षाबंधन के पर्व मंं वही संबंध भाई का अपनी बहन से है।
इन रुबाइयों से हिंदी, उर्दू और लोकभाषा के मिले-जुले प्रयोग को छाँटिए।
हिंदी, उर्दू और लोकभाषा के मिले-जुले प्रयोग
- लोका देना
- घुटनियों में लेकर कपड़े पिन्हाना
- गेसुओं में कंघी करना
- रूपवती मुखड़ा पे एक नर्म दमक
- जिदयाया चाँद
- रस की पुतली
- चाँद पे ललचाया
- आईने में चाँद उतर आना।
फिराक ने सुनो हो, रक्खो हो आदि शब्द मीर की शायरी के तर्ज पर इस्तेमाल किए हैं। ऐसी ही मीर की कुछ गजलें ढूँढ कर लिखिए।
छात्र मीर की गजलें पढ़ें।
कविता में एक भाव, एक विचार होते हुए भी उसका अंदाजे बयाँ या भाषा के साथ उसका बर्ताव अलग-अलग रूप में अभिव्यक्ति पाता है। इस बात को ध्यान में रखते हुए नीचे दी गई कविताओं को पढ़िए और दी गई फिराक की गजल-रुबाई में से समानार्थी पंक्तियाँ ढूँढिए।
(क) मैया मैं तो चंद्र खिलौना लैहों। (सूरदास)
(ख) वियोगी होगा पहला कवि
आह से उपजा होगा गान
उमड़ कर आँखों से चुपचाप
बही होगी कविता अनजान (सुमित्रानदंन पंत)
(ग) सीस उतारे भुई धरे तब मिलिहैं करतार (कबीर)
(क) बालक तो हई चाँद पै ललचाया है।
(ख) आबो-ताबे अशआर न पूछो तुम आँखें रक्खो हो, ये जगमग बैतों की दमक है या हम मोती रोले हैं।
(ग) ये कीमत भी अदा करे हैं हम बदुरुस्ती-ए-होशो-हवास
तेरा सौदा करने वाले दीवाना भी हो लें हम।
निम्नलिखित काव्यांशों को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए:
आँगन में लिए चाँद के टुकड़े को खड़ी
हाथों पै सुलाती है उसे गोद-भरी
रह-रह के हवा में जो लोका देती है
गूँज उठती है खिलखिलाते बच्चे की हँसी
1. इस काव्याशं में किस स्थिति का चित्रण किया गया है?
2. ‘चाँद का टुकड़ा’ क्या प्रकट करता है? पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार का उदाहरण भी छाँटिए।
3. भाषागत सौंदर्य पर प्रकाश डालिए।
1. इन पंक्तियों में शायर ने एक स्थिति का मनोहारी चित्रण किया है जिसमें एक माँ अपने बच्चे को हाथों पर झुला रही है और उसे उछाल-उछाल कर प्यार कर रही है। बच्चा खिलखिलाकर हँस रहा है। वात्सल्य रस की चरम सीमा अभिव्यक्त हो रही है।
2. बच्चे को ‘चाँद का टुकड़ा’ कहना उसके प्रति माँ के प्यार को व्यंजित करता है। यहाँ रूपक अलंकार का प्रयोग भी है। ‘रह-रह’ में पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार है।
3. ‘लोका देना’ ग्रामीण संस्कृति का एक अनूठा प्रयोग है।
बिंब-योजना प्रभावी बन पड़ी है।
सीधी-सरल भाषा का प्रयोग है।
निम्नलिखित काव्यांशों को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए:
आँगन में ठुनक रहा है जिदयाया है
बालक तो हई चाँद पै ललचाया है
दर्पण उसे दे के कह रही है माँ
देख आईने में चाँद उतर आया है।
1. काव्यांश की भाषा की दो विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
2. यह काव्यांश किस छंद में कि गया है? उसकी विशेषता बताइए।
3. ‘देख आईने में चाँद उतर आया है’ कथन के सौन्दर्य को स्पष्ट कीजिए।
1. काव्यांश की भाषा की दो विशेषताएँ:
(i) ‘जिदयाया’ शब्द में संज्ञा (जिद) को क्रिया में बदला गया है।
(ii) ‘हुई’ शब्द है ही का उच्चरित रूप है। इससे उच्चारण में कोमलता आ गई है।
2. यह काव्यांश गजल के रूप में है। यह गजल का शेर छंद है। गजल का हर शेर स्वयं में स्वतंत्र अर्थ रखता है। इसे मुक्तक छंद भी कहा जा सकता है।
3. ‘देख आईने में चाँद उतर आया है’ कथन में यह सौंदर्य है कि दर्पण में चाँद का प्रतिबिंब झलक रहा है। माँ बेटे को उसी के प्रतिबिंब को देखकर उसे असली चाँद बताकर प्रसन्न करने का प्रयास करती है। इसे भ्रांतिमान अलंकार का उदाहरण कहा जा सकता है।
निम्नलिखित काव्यांशों को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए:
नहला के छलके-छलके निर्मल जल से
उलझे हुए गेसुओं में कंघी करके
किस प्यार से देखता है बच्चा मुँह को
जब घुटनियों में ले के है पिन्हाती कपड़े।
1. इस काव्याशं में माँ की किन-किन क्रियाओं का उल्लेख हुआ है?
2. ‘छलके-छलके’ में किस अलंकार का सौदंर्य है?
3. भाषागत विशेषताएँ स्पष्ट कीजिए।
1. इन पंक्तियों में माँ तथा बच्चे की भावनाओं की सहज अभिव्यक्ति हुई है। माँ बच्चे को साफ पानी से नहलाती है, उसके बालों की कंघी करती है। जब वह उसे कपड़े पहनाती है तब बालक माँ के मुख की ओर देखता है। बालक की क्रियाओं का स्वाभाविक वर्णन है।
2. ‘छलके-छलके’ में पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार है।
3. ‘घुटनियों’ तथा ‘पिन्हाती’ शब्द देशज हैं।
उर्दू मिश्रित भाषा का प्रयोग है।
दृश्य बिंब हैं।
रुबाई है।
निम्नलिखित काव्यांशों को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए:
हम हों या किस्मत हो हमारी
दोनों को इक ही काम मिला
किस्मत हमको रो लेवे है हम किस्मत को रो ले हैं।
जो मुझको बदनाम करे हैं काश वे इतना सोच सकें।
मेरा परदा खोले हैं या अपना परदा खोले हैं।
1. गजल की दो भाषिक विशेषताओं को बताइए।
2. काव्याशं की प्रथम दो पंक्तियों की व्यंजना स्पष्ट कीजिए।
3. भाव सौंदर्य स्पष्ट कीजिए-मेरा परदा खोले हैं या अपना परदा खोले हैं।
1. गजल उर्दू कविता की एक शैली है। फिराक ने गजल में लोकभाषा के प्रतीकों का अनूठा प्रयोग किया है। गजल में दर्द भी होता है और शायर की ठसक भी।
2. काव्यांश की प्रथम दो पंक्तियों में कवि स्वयं को और अपनी किस्मत को एक समान बताता है। दोनों को एक ही काम मिला हुआ है-रोने का। कभी किस्मत उस पर रोती है तो कभी शायर किस्मत पर रो लेता है। दोनों की ही हालत खराब है।
3. खुद का परदा खोलने से आशय है कि अपने वास्तविक स्वरूप को दर्शाना। जब हम किसी दूसरे को नंगा करने का प्रयास करते हैं तब हम स्वयं नंगे हो जाते हैं। दूसरे के रहस्य को उजागर करना अपने को बेपर्दा करना है। यदि कोई व्यक्ति दूसरे की निंदा करता है तो वह स्वयं की बुराई कर रहा होता है। इसलिए शायर ने कहा है कि मेरा रहस्य खोलने वाले अपने रहस्यों को भी बता रहे हैं।
फिराक गोरखपुरी ने रक्षाबंधन काव्यांश में भाई-बहन के रिश्ते को किस तरह पेश किया है?
शायर राखी के लच्छे को बिजली की चमक की तरह कहकर यह भाव व्यंजित करना चाहता है कि जो संबंध बादलों की घटा का बिजली के साथ है, वही संबंध भाई का बहन के साथ है। राखी कोई साधारण वस्तु नहीं है। इसके लच्छे बिजली चमक की तरह रिश्तों की पवित्रता को व्यंजित करते हैं। बिजली, चमककर किसी सत्य का उद्घाटन कर जाती है, इसी प्रकार राखी, के लच्छे भी चमककर संबंधों के उत्साह का उद्घाटन कर जाते हैं। शायर ने रक्षाबंधन के त्योहार का रोचक वर्णन किया है। रक्षाबंधन के कच्चे धागे ऐसे हैं जैसे बिजली के लच्छे। रक्षाबंधन सावन मास में आता है। सावन मास में बादल होते हैं। घटा का जो संबंध बिजली से है वही संबंध भाई का बहन से है। कवि कहना चाहता है कि यह पवित्र बंधन बिजली की तरह चमकता है।
‘फिराक’ की रुबाइयों में उभरे घरेलू जीवन के बिंबों का सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
‘आँगन में लिए चाँद के टुकड़े को खड़ी माँ’ का बिंब-बच्चे को गोद में लिए हुए माँ का बिंब। बच्चा चाँद का टुकड़ा है।
‘नन्हीं बालिका का नन्हें भाई की कलाई पर राखी बाँधना’-एक सजीव दृश्य बिंब है।
‘बच्चे के घरौंदे में दीपक जलाने’ का बिंब-दृश्य बिंब है।
फिराक गोरखपुरी की गजल का केन्द्रीय भाव लिखिए।
फिराक गोरखपुरी की गजल में व्यक्तिगत प्रेम की अभिव्यक्ति हुई है। फूलों की कलियाँ नौ रस छलकाने लगी हैं।। रात के अंधेरे में तारे आँखें झपका रहे हैं। कवि की प्रेमिका साथ नहीं है। प्रेम के कारण कवि को दीवानगी की हद तक जाना पड़ रहा है। कवि विरह से पीड़ित है। जो प्रेमी प्रेम में जितना स्वयं को खो देता है वह उतना ही प्रेम पाता है।
रुबाइयाँ’ के आधार पर घर-आँगन में दीवाली और राखी के दृश्य-बिंब को अपने शब्दों में समझाइए।
दीवाली के अवसर पर घरों की पुताई की जाती है और उन्हें सजाया जाता है। दीवाली की शाम को इन पुते-सजे घरों में मिठाई के नाम पर चीनी के बने खिलौने आते हैं (चीनी के मीठे खिलौने), रोशनी भी जगमगाती है। इस अवसर पर माँ के रूपवती मुखड़े पर एक नरम-सी दमक आ जाती है। वह बच्चे के बनाए घर में दिए जलाती है। जब माँ बच्चे के घरोंदे में दिए जलाती है तो दिए की झिलमिलाती रोशनी की दमक माँ के मुखड़े की चमक को एक नई आभा प्रदान कर देती है।
राखी: शायर बताता है कि रक्षाबंधन एक मीठा बंधन है। इस: दिन सुबह से ही भाई-बहन के रस का प्रवाह होने लगता है। रक्षाबंधन सावन मास में आता है। सावन का संबंध झीनी घटा से है। आसमान में हल्की-हल्की घटाएँ छाई हुई है। इन घटाओं में बिजली चमक रही है। घटा का जो संबंध बिजली से है-वही संबंध भाई का बहन से होता. है। राखी के लच्छे भी बिजली की तरह चमकते हैं। जब बहन भाई की कलाई पर राखी बाँधती है तो ये लच्छे और भी चमक उठते हैं।
Sponsor Area
Sponsor Area