Aroh Bhag Ii Chapter 6 शमशेर बहादुर सिंह
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    NCERT Solution For Class 12 Hindi Aroh Bhag Ii

    शमशेर बहादुर सिंह Here is the CBSE Hindi Chapter 6 for Class 12 students. Summary and detailed explanation of the lesson, including the definitions of difficult words. All of the exercises and questions and answers from the lesson's back end have been completed. NCERT Solutions for Class 12 Hindi शमशेर बहादुर सिंह Chapter 6 NCERT Solutions for Class 12 Hindi शमशेर बहादुर सिंह Chapter 6 The following is a summary in Hindi and English for the academic year 2021-2022. You can save these solutions to your computer or use the Class 12 Hindi.

    Question 1
    CBSEENHN12026219

    शमशेर बहादुर सिंह के जीवन एवं साहित्य का परिचय देते हुए उनकी रचनाओं के नाम लिखिए।

    Solution

    शमशेर बहादुर सिंह का जन्म 1911 ई. में देहरादून (अब उत्तरांचल) में हुआ। उनकी प्रारंभिक शिक्षा देहरादून मे ही हुई। उन्होंने सन् 1933 में बी. ए. और सन् 1938 में एम. ए. इलाहाबाद विश्वविद्यालय से किया। सन् 1935-36 में उन्होंने प्रसिद्ध चित्रकार उकील बंधुओं से चित्रकला का प्रशिक्षण लिया। सन् 1939 में ‘रूपाभ’ पत्रिका में सहायक के रूप में काम किया। फिर कहानी, नया साहित्य, कम्यून, माया, नया पथ, मनोहर कलियाँ आदि कई पत्रिकाओं में संपादन-सहयोग दिया। विश्वविद्यालय अनुदान आयोग की महत्वपूर्ण योजना के अंतर्गत उन्होंने सन् 1965-77 में ‘उर्दू-हिंदी कोश’ का संपादन किया। सन् 1981-1985 तक विक्रम विश्वविद्यालय (मध्य प्रदेश) के प्रेमचंद सृजनपीठ के अध्यक्ष रहे। सन् 1978 में उन्होंने सोवियत संघ की यात्रा की। 1993 ई. में आपका स्वर्गवास हो गया।

    साहित्यिक विशेषताएँ: शमशेर बहादुर सिंह प्रेम और सौंदर्य के कवि हैं। उनकी कविताओं में जीवन के राग-विराग के साथ--साथ समकालीन सामाजिक-राजनीतिक समस्याओं का कलात्मक चित्रण हुआ है। भाषा-प्रयोग में चमत्कार उत्पन्न करने वाले वे अत्यंत सजग कवि हैं। काव्य-वस्तु के चयन और शिल्प-गठन में उनकी सूझ-बूझ और कौशल का उत्कर्ष दिखता है। शमशेर की कविताओं के शब्द रंग भी हैं और रेखाएँ भी। उनके स्वर में दर्द है, ताकत है, प्रेम की पीड़ा है, जीवन की विडंबना है और जगत की विषमता भी है-ये सारी स्थितियाँ पाठकों को नई दिशा में सोचने के लिए प्रेरित करती हैं।

    उनकी कविताओं का विभिन्न भाषाओं में अनुवाद हुआ है। उन्हें साहित्य अकादमी सम्मान, कबीर सम्मान, मैथिलीशरण गुप्त सम्मान सहित अनेक साहित्यिक सम्मानों से विभूषित किया गया।

    खुद को उर्दू और हिंदी का दोआब मानने वाले शमशेर की कविता एक संधिस्थल पर खड़ी है। यह संधि एक ओर साहित्य चित्रकला और संगीत की है तो दूसरी ओर मूर्तता और अमूर्तता की तथा ऐंद्रिय और ऐंद्रियेतर की है।

    कथा और शिल्प दोनों ही स्तरों पर उनकी कविता का मिजाज अलग है। उर्दू शायरी के प्रभाव से उन्होंने संज्ञा और विशेषण से अधिक बल सर्वनामों, क्रियाओं, अव्ययों और मुहावरों को दिया है। उन्होंने खुद भी कुछ अच्छे शेर कहे हैं।

    सचेत इंद्रियों का यह कवि जब प्रेम पीड़ा, संघर्ष और सृजन को गूँथकर कविता का महल बनाता है तो वह ठोस तो होता ही है अनुगूँजों से भी भरा होता है। वह पाठक को न केवल पड़े जाने के लिए आमंत्रित करती है, बल्कि सुनने और देखने को भी।

    रचनाएँ: शमशेर की काव्य कृतियों में प्रमुख हैं-कुछ कविताएँ, कुछ और कविताएँ, चुका भी हूँ नहीं मैं, इतने पास अपने, उदिता, बात बोलेगी, काल तुझसे होड़ है मेरी।

    Question 2
    CBSEENHN12026220

    दिये गये काव्यांशों की सप्रसंग व्याख्या  करें

    प्रात: नभ था-बहुत नीला, शंख जैसे,

    भोर का नभ,

    राख से लीपा हुआ चौका

    (अभी गीला पड़ा है।)

    बहुत काली सिल

    जरा से लाल केसर से

    कि जैसे धुल गई हो।

    स्लेट पर या लाल खड़िया चाक

    मल दी हो किसी ने।

    Solution

    प्रसंग: प्रस्तुत काव्याशं प्रसिद्ध प्रयोगवादी कवि शमशेरबहादुर सिंह द्वारा रचित कविता ‘उषा’ से अवतरित है। इसमें कवि सूर्योदय से ठीक पहले के प्राकृतिक सौदंर्य का चित्र उकेरता है। इसमें पल-पल परिवर्तित होती प्रकृति का शब्द-चित्र है।

    व्याख्या: इस काव्यांश में कवि ने भोर के वातावरण का सजीव चित्रण किया है। प्रात:कालीन आकाश गहरा नीला प्रतीत हो रहा है। वह शंख के समान पवित्र और उज्ज्वल है। भोर (सूर्योदय) के समय आकाश में हल्की लालिमा बिखर गई है। आकाश की लालिमा अभी पूरी तरह छँट भी नहीं पाई है पर सूर्योदय की लालिमा फूट पड़ना चाह रही है। आसमान के वातावरण में नमी दिखाई दे रही है और वह राख से लीपा हुआ गीला चौका-सा लग रहा है। इससे उसकी पवित्रता झलक रही है। भोर का दृश्य काले और लाल रंग के अनोखे मिश्रण से भर गया है। ऐसा लगता है कि गहरी काली सिल को केसर से अभी-अभी धो दिया गया हो अथवा काली स्लेट पर लाल खड़िया मल दी गई हो।

    कवि ने सूर्योदय से पहले के आकाश को राख से लीपे चौके के समान इसलिए बताया है ताकि वह उसकी पवित्रता को अभिव्यक्त कर सके। राख से लीपे चौके में कालापन एवं सफेदी का मिश्रण होता है और सूर्योदय की लालिमा बिखरने से पूर्व आकाश ऐसा प्रतीत होता है। गीला चौका पवित्रता को दर्शाता है।

    विशेष: 1. इस काव्यांश में प्रकृति का मनोहारी चित्रण किया गया है।

    2. ग्रामीण परिवेश साकार हो गया है।

    3. कवि शमशेरबहादुर सिंह ने सूर्योदय से पहले आकाश को राख से लीपे हुए गीले चौके के समान इसलिए कहा है क्योंकि सूर्योदय से पहले आकाश धुंध के कारण कुछ-कुछ मटमैला और नमी से भरा होता है। राख से लीपा हुआ गीला चौका भोर के इस प्राकृतिक रंग से अच्छा मेल खाता है। इस तरह यह आकाश लीपे हुए चौके की तरह पवित्र है।

    4. कवि शमशेरबहादुर सिंह ने आकाश के रंग के बारे में ‘सिल’ का उदाहरण देते हुए कहा है कि यह आसमान ऐसे लगता है मानो मसाला आदि पीसने वाला बहुत ही काला और चपटा-सा पत्थर हो जो जरा से लाल केसर से धुल गया हो। ‘स्लेट’ का उदाहरण देते हुए कहा गया है कि आसमान ऐसे लगता है जैसे किसी ने स्लेट पर लाल रंग की खड़िया चाक मल दी हो। सिल और स्लेट के उदाहरण के द्वारा कवि ने नीले आकाश में उषाकालीन लाल-लाल धब्बों की ओर ध्यान आकर्षित किया है।

    5. काली सिल पर लाल केसर पीसने से उसका रंग केसरिया हो जाता है, उसी प्रकार रात का काला आकाश उषा के आगमन के साथ लाल अथवा केसरिया रंग का दिखाई देने लगता है।

    6. प्रयोगवादी शैली के अनुरूप नए बिंब, नए उपमान तथा नए प्रतीक प्रयुक्त हुए हैं।

    Question 3
    CBSEENHN12026221

    कवि ने प्रातःकालीन आसमान की तुलना किससे की है?

    Solution

    कवि ने प्रात:कालीन आसमान की तुलना नीले शंख से की है। वह शंख के समान पवित्र और उज्ज्वल है।

    Question 4
    CBSEENHN12026222

    कवि ने भोर के नभ की तुलना किससे की है और क्यों?

    Solution

    कवि ने भोर के नभ की तुलना राख से पुते हुए गीले चौके से की है, क्योंकि भोर का नभ श्वेतवर्ण और नीलिमा का मिश्रित रूप लिए हुए है। उसमें ओस की नमी भी है अत: वह गीले चौके के समान प्रतीत होता है।

    Question 5
    CBSEENHN12026223

    कवि काली सिल और लाल केसर के माध्यम से क्या कहना चाहता है?

    Solution

    कवि के अनुसार काली सिल पर लाल केसर को रगड़ देने से उसमें लाली युक्त लालिमा दिखाई देने लगती है। इस प्रकार भोर के समय आसमान अंधकार के कारणकाला और उषा की लालिमा से युक्त होने पर काली सिल पर लाल केसर रगड़ने के समान दिखाई देता है।

    Question 6
    CBSEENHN12026224

    स्लेट पर या लाल खड़िया चाक मल दी हो किसी ने -स्पष्ट करो।

    Solution

    प्रात:कालीन आसमान काली स्लेट के समान लगता है। उस समय की सूर्य की लालिमा ऐसे लगती है जैसे काली स्लेट पर लाल खड़िया चाक मल दी हो। कवि आकाश में उभरे लाल-लाल धब्बों की ओर हमारा ध्यान आकर्षित करता है।

    Question 7
    CBSEENHN12026225

    दिये गये काव्यांशों की सप्रसंग व्याख्या  करें

    नील जल में या

    किसी की गौर, झिलमिल देह जैसे

    हिल रही हो।

    और .........

    जादू टूटता है इस उषा का अब:

    सूर्योदय हो रहा है।

    Solution

    प्रसंग: प्रस्तुत काव्यांश प्रसिद्ध प्रयोगवादी कवि शमशेरबहादुर सिंह द्वारा रचित कविता ‘उषा’ से अवतरित है। यहाँ कवि प्रातःकालीन दृश्य का मनोहारी चित्रण कर रहा है। प्रातःकाल आकाश में जादू होता-सा प्रतीत होता है। जो पूर्ण सूर्योदय के पश्चात् टूट जाता है।

    व्याख्या: कवि सूर्योदय से पहले आकाश के सौंदर्य में पल-पल होते परिवर्तनों का सजीव अंकन करते हुए कहता है कि ऐसा लगता है कि मानो नीले जल में किसी गोरी नवयुवती का शरीर झिलमिला रहा है। नीला आकाश नीले जल के समान है और उसमे सफेद चमकता सूरज सुंदरी की गोरी देह प्रतीत होता है। हल्की हवा के प्रवाह के कारण यह प्रतिबिंब हिलता- सा प्रतीत होता है।

    इसके बाद उषा का जादू टूटता-सा लगने लगता है। उषा का जादू यह है कि वह अनेक रहस्यपूर्ण एवं विचित्र स्थितियाँ उत्पन करता है। कभी पुती स्लेट कभी गीला चौका, कभी शंख के समान आकाश तो कभी नीले जल में झिलमिलाती देह-ये सभी दृश्य जादू के समान प्रतीत होते हैं। सूर्योदय होते ही आकाश स्पष्ट हो जाता है और उसका जादू समाप्त हो जाता है।

    Question 8
    CBSEENHN12026226

    कवि ने नीले जल में झिलमिलाते गौर वर्ण शरीर किसे कहा है?

    Solution

    कवि ने नीले आकाश में चमकते सूरज को नीले जल में झिलमिलाती गौरवर्ण नवयुवती कहा है। नीला आकाश नीले जल के समान है और सफेद चमकता हुआ सूरज सुंदरी की गोरी देह सा प्रतीत होता है।

    Question 9
    CBSEENHN12026227

    उषा का जादू कब टूटता है?

    Solution

    सूर्योदय होने पर उषा का जादू टूट जाता है क्योंकि सूर्य की किरणों के प्रभाव से आसमान में छायी लालिमा समाप्त हो जाती है।

    Question 10
    CBSEENHN12026228

    इस काव्यांश में किस स्थिति का चित्रण हुआ है?

    Solution

    इस काव्यांश में प्रात: कालीन दृश्य का सजीव अंकन किया गया है। प्रात-काल आसमान में क्षण-क्षण परिवर्तन आता है। ये परिवर्तन जादू के समान प्रतीत होते हैं।

    Question 11
    CBSEENHN12026229

    कवि की कल्पनाशीलता पर प्रकाश डालिए।

    Solution

    कवि प्रात:कालीन आकाश को देखकर तरह-तरह की मोहक कल्पनाएँ करता है। कभी वह इसमें नीले शंख की कल्पना करता है। तो कभी इसमें राख से लीपे हुए चौको की कल्पना करता है। कभी वह नीले जल में झिलमिलाती गौरवर्ण नवयुवती की कल्पना करता है।

    Question 12
    CBSEENHN12026230

    कविता के किन उपमानों को देखकर यह कहा जा सकता है कि उषा, कविता गाँव की सुबह का गतिशील शब्दचित्र है?

    Solution

    कविता के निम्नलिखित उपमानों को देखकर यह कहा जा सकता है कि ‘उषा’ कविता गाँव की सुबह का गतिशील शब्द-चित्र है-

    राख से लीपा हुआ चौका।

    बहुत काली सिल।

    स्लेट पर या लाल खड़िया चाक मलना।

    किसी की गौर झिलमिल देह का हिलना।

    Question 13
    CBSEENHN12026231

    भोर का नभ

    राख से लीपा हुआ चौका

    (अभी गीला पड़ा है)

    नई कविता में कोष्ठक, विराम-चिन्हऔर पंक्तियों के बीच का स्थान भी कविता को अर्थ देता है। उपर्युक्त पंक्तियों में कोष्ठक से कविता में क्या विशेष अर्थ पैदा हुआ है? समझाइए।

    Solution

    कोष्ठक में दिया गया है-’अभी गीला पड़ा है’ कवि भोर के नभ में राख से लीपे हुए चौके की संभावना व्यक्त करता है। आसमान राख के रंग जैसा है। यह चौका प्रात:कालीन ओस के कारण गीला पड़ा हुआ है। अभी वातावरण में नमी बनी हुई है। इसमें पवित्रता की झलक प्रतीत होती है। कोष्ठक में लिखने से चौका का स्पष्टीकरण हुआ है।

    Question 14
    CBSEENHN12026232

    अपने परिवेश के उपमानों का प्रयोग करते हुए सूर्योदय और सूर्यास्त का शब्दचित्र खींचिए।

    Solution

    सूर्योदय

    लो पूर्व दिशा में उग आया

    सूरज

    लाल-लाल गोले के समान

    चारों ओर लालिमा फैलती चली गई

    और सभी प्राणी जड़ से चेतन

    बन गए।

    सूर्यास्त

    सूरज हुक्के की चिलम जैसा लगता है,

    इसे किसान खींच रहा है

    पशुओं के झुंड चले आ रहे हैं

    और पक्षियों की वापिसी की उड़ान

    तेज हो चली है

    धीरे-धीरे सब कुछ अदृश्य

    हो चला है

    और

    सूरज पहाड़ की ओट दुबक गया।

    Question 15
    CBSEENHN12026233

    सूर्योदय का वर्णन लगभग सभी बड़े कवियों ने किया है। प्रसाद की कविता ‘बीती विभावरी जाग री’ और अज्ञेय की ‘बावरा अहेरी’ की पंक्तियाँ आगे बॉक्स में दी जा रही हैं। ‘उषा’ कविता के समानांतर इन कविताओं को पढ़ते हुए नीचे दिए गए बिंदुओं पर तीनों कविताओं का विश्लेषण कीजिए और यह भी बताइए कि कौन-सी कविता आपको ज्यादा अच्छी लगी और क्यों?

    ● उपमान ● शब्दचयन ● परिवेश

    Solution

    बीती विभावरी जाग री!

    अंबर पनघट में डुबो रही-

    तारा-घट ऊषा नागरी।

    खग-कुल कुल-कुल-सा बोल रहा,

    किसलय का अंचल डोल रहा,

    लो यह लतिका भी भर लाई-

    मधु मुकुल नवल रस गागरी।

    अधरों में राग अमंद पिए,

    अलकों में मलयज बंद किए-

    तू अब तक सोई है आली

    अस्त्रों में भरे विहाग री।

    - जयशंकर प्रसाद

    भोर का बावरा अहेरी

    पहले बिछाता है आलोक की

    लाल-लाल कनियाँ

    पर जब खींचता है जाल को

    बाँध लेता है सभी को साथ:

    छोटी-छोटी चिड़ियाँ, मँझोले परेवे, बड़े-बड़े पंखी

    डैनों वाले डील वाले डौल के बेडौल

    उड़ने जहाज,

    कलस-तिसूल वाले मंदिर-शिखर से ले

    तारघर की कटी मोटी चिपटी गोल धुस्सों वाली उपयोग-सुंदरी

    बेपनाह काया को:

    गोधूली की धूल को, मोटरों के धुएँ को भी

    पार्क के किनारे पुष्पिताग्र कर्णिकार की आलोक-खची तन्वि रेखा को

    और दूर कचरा जलाने वाली कल की उद्दंड चिमनियों को जो धुआँ यों उगलती हैं मानो उसी मात्र से अहेरी को हरा देंगी।

    -सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन ‘अज्ञेय’

    उत्तर: इन तीनों कविताओं में हमें जयशंकर प्रसाद की कविता ‘बीती विभावरी जाग री’ सबसे ज्यादा अच्छी लगी। इसके कारण ये हैं-
    इस कविता में प्रात:कालीन वातावरण साकार हो उठा है। यह ‘उषा’ और ‘बावरा अहेरी’ कविताओं से ज्यादा स्पष्ट है।

    मानवीकरण ‘उषा’ कविता में भी है और ‘बीती विभावरी’ में भी है। यह ‘बावरा अहेरी’ में भी है। पर ‘बीती विभावरी’ कविता में प्रकृति का मानवीकरण अधिक प्रभावी बन पड़ा है। इस पूरी कविता में मानवीकरण है।

    शब्द-चयन की दृष्टि से भी ‘बीती विभावरी’ कविता श्रेष्ठ है। इस कविता के शब्द बोलते जान पड़ते हैं-

    खग-कुल कुल-कुल-सा बोल रहा

    अधरों में राग अमंद पिए।

    आँखों में भरे विहाग री।

    इस कविता में तत्सम शब्दावली का प्रयोग देखते ही बलता है।

    Question 16
    CBSEENHN12026234

    ‘उषा’ कविता में प्रातःकालीन आकाश की पवित्रता, निर्मलता और उज्ज्वलता के लिए प्रयुक्त कथन को स्पष्ट कीजिए।

    Solution

    ‘उषा’ कविता में प्रात:कालीन आकाश की पवित्रता के लिए कवि ने उसे ‘राख से लीपा हुआ चौका’ कहा है। जिस प्रकार चौके को राख से लीपकर पवित्र किया जाता है, उसी प्रकार प्रात:कालीन उषा भी पवित्र है।

    आकाश की निर्मलता के लिए कवि ने ‘काली सिल जरा से लाल केसर से कि जैसे धुल गई हो’ का प्रयोग किया है। जिस प्रकार काली सिल को लाल केसर से धोने से उसका कालापन समाप्त हो जाता है और वह स्वच्छ निर्मल दिखाई देती है, उसी प्रकार उषा भी निर्मल, स्वच्छ है। उज्ज्वलता के लिए कवि ने ‘नील जल में किसी की गौर झिलमिल देह जैसे हिल रही हो’ कहा है। जिस प्रकार नीले जल में गोरा शरीरी कांतिमान और सुंदर (उज्ज्वल) लगता है, उसी प्रकार भोर की लाली में (सूर्योदय में) आकाश की नीलिमा कांतिमान और सुंदर लगती है।

    Question 17
    CBSEENHN12026235

    ‘उषा’ कविता में शमशेर बहादूर सिंह ने प्रातःकालीन आकाश के सौंदर्य का कलात्मक चित्रण किया है। आप संध्याकालीन आकाश की सुंदरता का वर्णन अपने शब्दों में कीजिए।

    Solution

    संध्या के समय का आकाश तांबई व सुरमई बादलो से आच्छादित है। संध्या की कालिमा धीरे-धीरे आसमान से उतर रही है। इस संध्या-सुंदरी का सौंदर्य कालिमा से युक्त है। आकाश मार्ग से अपनी नीरवता सखी के कंधे पर बाँहें डाले संध्या-रूपी यह सुंदरी धीरे- धीरे उतर रही है। चारों ओर आलस्य और निस्तब्धता छा रही है। नीलगमन में फैली कालिमा ऐसी प्रतीत होती है मानो संध्या-रूपी अनिंद्य सुंदरी अपने सौदर्य के स्याम रंग की आभा को और गहरे से गहरा करती जा रही है। आकाश मे एक तारा चमकने लगा है जो संध्या के भाव सौंदर्य और आकर्षण को निगल रहा है।

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    Question 18
    CBSEENHN12026236

    भोर के नभ को राख से लीपा गीला चौका क्यों कहा गया है?

    Solution

    कविवर शमशेर बहादुर सिंह ने भोर के नभ को राख से लीपा गीला चौका इसलिए कहा गया है क्योंकि सुबह का आकाश कुछ-कुछ धुंध के कारण मटमैला व नमी- भरा होता है। राख से लीपा हुआ चौका भी सुबह के इस कुदरती रंग से अच्छा मेल खाता है। अत: उन्होंने भोर के नभ की उपमा राख से लीपे गीले चौके से की है। इस तरह यह आकाश राख से लीपे हुए गीले चौके के समान पवित्र है।

    Question 19
    CBSEENHN12026237

    सूर्योदय से उषा का कौन-सा जादू टूट रहा है?

    Solution

    सूर्योदय से पूर्व उषा का दृश्य अत्यंत आकर्षक होता है। नीले आकाश में फैलती प्रात:कालीन सफेद किरणें जादू के समान प्रतीत होती हैं। उषा काल में आकाश का सौंदर्य क्षण- क्षण परिवर्तित होता है। उस समय प्रकृति के कार्य-व्यापार ही ‘उषा का जादू’ है। निरम्र नीला आकाश, काली सिर पर पुते केसर-से रंग, स्लेट पर लाल खड़िया चाक, नीले जल में नहाती किसी गोरी नायिका की झिलमिलाती देह आदि दृश्य उषा के जादू के समान प्रतीत होते हैं। सूर्योदय के होते ही ये सभी दृश्य समाप्त हो जाता है। इसी को उषा का जादू टूटना कहा गया है।

    Question 20
    CBSEENHN12026238

    सूर्योदय से पहले आकाश में क्या-क्या परिवर्तन होते हैं? उषा कविता के आधार पर बताइए।

    Solution

    सूर्योदय से पहले आकाश शंख के समान हुआ, फिर आकाश राख से लीपे चौक जैसा हो गया, उसके बाद लगा जैसे काले सिल पर लाल केसर से धुलाई हुई हो, उसके बाद स्लेट पर खड़िया चाक मल दिया गया हो अंत में जैसे कोई स्वच्छ नीले जल में गौर वर्ण वाली देह झिलमिला रही हो।

    Question 21
    CBSEENHN12026239

    ‘उषा’ कविता में गाँव की सुबह का एक सुन्दर चित्र प्रस्तुत किया गया है-इस कथन पर टिप्पणी कीजिए।

    Solution

    कविता के निम्नलिखित उपमानों को देखकर यह कहा जा सकता है कि ‘उषा’ कविता गाँव की सुबह का सुंदर शब्द-चित्र है-

    राख से लीपा हुआ चौका।

    बहुत काली सिल।

    स्लेट पर या लाल खड़िया चाक मलना।

    किसी की गौर झिलमिल देह का हिलना।

    Question 22
    CBSEENHN12026240

    ‘उषा’ कविता के आधार पर उस जादू को स्पष्ट कीजिए जो सूर्योदय के साथ टूट जाता है।

    Solution

    सूर्योदय से पूर्व उषा का दृश्य अत्यंत आकर्षक होता है। नीले आकाश में फैलती प्रात:कालीन सफेद किरणें जादू के समान प्रतीत होती हैं। उषा काल में आकाश का सौंदर्य क्षण-क्षण परिवर्तित होता है। उस समय प्रकृति के कार्य-व्यापार ही ‘उषा का जादू’ है। निरस नीला आकाश, काले सिर पर पुते केसर-से रंग, प्लेट पर लाल खड़िया चाक, नीले जल में नहाती किसी गोरी नायकिा की झिलमिलाती देह आदि दृश्य उषा के जादू के समान प्रतीत होते हैं। सूर्योदय के होते ही ये सभी दृश्य समाप्त हो जाता है। इसी को उषा का जादू टूटना कहा गया है।

    Question 23
    CBSEENHN12026241

    ‘उषा’ कविता के आधार पर सूर्योदय से ठीक पहले के प्राकृतिक दृश्यों का चित्रण कीजिए।

    Solution

    कवि सूर्योदय से पहले के दृश्य का चित्रण करते हुए बताता है कि सुबह का आकाश ऐसा लगता है माना राख से लीपा हुआ चौका हो तथा वह गीला होता है।। गीला चौका स्वच्छ होता है उसी तरह सुबह का आकाश भी स्वच्छ होता है। उसमें प्रदूषण नहीं होता।

    सूर्योदय से पहले आकाश शंख के समान हुआ फिर आकाश राख से लीपे चौक जैसा हो गया, उसके बाद लगा जैसे काले सिल पर लाल केसर से धुलाई हुई हो, उसके बाद स्लेट पर खड़िया चाक मल दिया गया हो अत मे जैसे कोई स्वच्छ नील जल में गौर वर्ण वाली देह झिलमिला रही हो।

    Question 24
    CBSEENHN12026242

    निम्नलिखित काव्याशों को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर कीजिए-
    प्रात नभ था बहुत नीला शंख जैसे
    भोर का नभ
    राख से लीपा हुआ चौका
    (अभी गीला पड़ा है)
    बहुत काली सिल जरा से लाल केसर से
    कि जैसे धूल गई हो
    स्लेट पर या लाल खड़िया चाक
    मल दी हो किसी ने।

    1. काव्यांश के भाव-सौन्दर्य को स्पष्ट कीजिए।
    2. भोर के नभ को ‘राख से लीपा हुआ चौका’ क्यो कहा गया है?
    3. सूर्योदय से पूर्व के आकाश के बारे में कवि ने क्या कल्पना की है?




    Solution

    1. इस काव्यांश में प्रात:कालीन नभ के सौंदर्य का प्रभावी चित्रण किया गया है। वह राख से लीपे हुए चौके के समान प्रतीत होता है। उसमें ओस का गीलापन है तो क्षण- कम बदक्षणे रंग भी हैं।
    2. भोर के नभ को ‘राख से लीपा हुआ चौका’ इसलिए कहा गया है कि भोर का नभ श्वेत वर्ण और नीलिमा का मिश्रित रंग-रूप लिए हुए है। इसमें ओस की नमी उसके गीलेपन का अहसास करा रही है। चौके की पवित्रता के दर्शन इसमें हो रहे हैं।
    3. सूर्योदय से पूर्व के आकाश में कवि ने यह कल्पना की है कि लगता है आकाश में रंगों का कोई जादू हो रहा है। कभी यह नीले शंख के समान प्रतीत होता है तो कभी काली सिल पर लाल केसर की आभा दिखाई देती है। कभी यह स्लेट पर मली लाल खड़िया की तरह लगता है।

    Question 25
    CBSEENHN12026243

    निम्नलिखित काव्याशों को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर कीजिए-
    नील जल में या
    किसी की गौर, झिलमिल देह जैसे
    हिल रही हो।
    और-
    जादू टूटता है इस उषा का अब:
    सुर्योदय हो रहा है।

    1. कवि ने इस काव्याशं में किसकी झलक प्रस्तुत की है?
    2. नीले जल में कवि की कल्पना को स्पष्ट करो।
    3. काव्याशं के शिल्प-सौदंर्य पर प्रकाश डालिए।


    Solution

    1. इन पंक्तियों में सूर्योदय की वेला के प्राकृतिक सौंदर्य की मनोहारी झलक प्रस्तुत की गई है। आकाश में क्षण-क्षण परिवर्तित होते सौंदर्य के रूप-चित्रण में कवि को सफलता प्राप्त हुई है।
    2. कभी लगता है कि नीले जल वाले सरोवर में किसी गोरी नायिका का शरीर झिलमिला रहा है। कवि की कल्पना अत्यंत नवीन है। सूर्योदय होने पर उषा का यह जादू टूटने लगता है।
    3. कवि ने उषाकालीन वातावरण को हमारी आँखों के सामने साकार रूप में उपस्थित कर दिया है। ‘गोर झिलमिल देह जैसे हिल रही हो’ में उपमा अलंकार है। उत्प्रेक्षा और मानवीकरण अलंकारो का प्रयोग है। तत्सम शब्दावली का प्रयोग है।

    Question 26
    CBSEENHN12026244

    निम्नलिखित काव्याशों को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर कीजिए-
    प्रात नभ था बहुत नीला शंख जैसे
    भोर का नभ
    राख से लीपा हुआ चौका
    (अभी गीला पड़ा है)
    बहुत काली सिल जरा से लाल केसर से
    कि जैसे धुल गई हो
    स्लेट पर या लाल खड़िया चाक
    मल दी हो किसी ने
    नील जल में या किसी की
    गौर झिलमिल देह
    जैसे हिल रही हो।
    और जादू टूटता है, इस ऊषा का अब
    सूर्योदय हो रहा है

    1. काव्याशं में प्रयुक्त उपमानों का उल्लेख कीजिए।
    2. पद्यांश की भाषागत दो विशेषताओं की चर्चा कीजिए।
    3. भाव-सौदंर्य स्पष्ट कीजिए:
        नील जल में या किसी की 
        गौर झिलमिल देह
        जैसे हिल रही हो।

     

    Solution

    1. काव्यांश में प्रयुक्त उपमान
       नीला शंख जैसा प्रात: का नभ
       राख से लीपा हुआ चौका जैसा भोर का नभ
       गौर झिलमिल देह जैसे

    2. इस पद्यांश की दो भाषागत विशेषताएँ हैं:।
      (i) सरल, सुबोध भाषा का प्रयोग किया गया है।
      (ii) बिंबात्मक एवं चित्रात्मक भाषा का प्रयोग है।
    3. इन पंक्तियों में सूर्योदय की वेला के प्राकृतिक सौंदर्य की मनोहारी झलक प्रस्तुत की गई है। आकाश में क्षण- क्षण परिवर्तित होते सौंदर्य के रूप-चित्रण में कवि को सफलता प्राप्त हुई है। कभी लगता है कि नीले जल वाले सरोवर में किसी गोरी नायिका का शरीर झिलमिला रहा है। कवि की कल्पना अत्यंत नवीन है। सूर्योदय होने पर उषा का यह जादू टूटने लगता है।
    कवि ने उषाकालीन वातावरण को हमारी आँखों के सामने साकार रूप में उपस्थित कर दिया है। उत्प्रेक्षा और मानवीकरण अलंकारों का प्रयोग है।

     

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