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शुद्ध सोना और गिन्नी का सोना अलग इसलिए होता है क्योंकि इसमें किसी प्रकार की मिलावट नही की जाती। यह पूरी तरह शुद्ध होता है गिन्नी के सोने में थोडा-सा ताँबा मिलाया होता है, इसलिए वह ज्यादा चमकता है और शुद्ध सोने से मजबूत भी होता है।
प्रैक्टिकल आइडियालिस्ट उन्हें कहते हैं जो लोग आदर्श बनते हैं और व्यवहार के समय उन्हीं आर्दशों को तोड़ मरोड़ कर अवसर का लाभ उठाते हैं।
पाठ के सन्दर्भ में शुद्ध आदर्श वह है जिसमें लाभ-हानि की गुंजाइश नहीं होती है। अर्थात् शुद्ध आदर्शों पर व्यावहारिकता हावी नहीं होती। जिसमें पूरे समाज की भलाई छिपी हुई हो तथा जो समाज के शाश्वत मूल्यों को बनाए रखने में सक्षम हो, वही शुद्ध आदर्श है।
जापानी लोग उन्नति की होड़ में सबसे आगे हैं। वे महीने का काम एक दिन में करने का सोचते हैं। इसलिए लेखक ने जापानियों के दिमाग में स्पीड का इंजन लगने की बात कही है।
जापानी में चाय पीने की विधि को 'चा-नो-यू' कहते हैं जिसका अर्थ है - 'टी-सेरेमनी' और चाय पिलाने वाला 'चाजिन' कहलाता है।
जापान में जहाँ चाय पिलाई जाती है, वहाँ की सजावट पारम्परिक होती है। वहाँ अत्यन्त शांति और गरीमा के साथ चाय पिलाई जाती है। शांति उस स्थान की मुख्य विशेषता है।
शुद्ध सोने में किसी प्रकार की मिलावट नहीं की जा सकती। ताँबे से सोना मजबूत हो जाता है परन्तु शुद्धता समाप्त हो जाती है। इसी प्रकार व्यवहारिकता में शुद्ध आदर्श समाप्त हो जाते हैं। परन्तु जीवन में आदर्श के साथ व्यावाहारिकता भी आवश्यक है, क्योंकि व्यावाहारिकता के समावेश से आदर्श सुन्दर व मजबूत हो जाते हैं।
चाजीन ने टी-सेरेमनी से जुड़ी सभी क्रियाएँ गरिमापूर्ण ढंग से की। यह सेरेमनी एक पर्णकुटी में पूर्ण हुई। चाजीन द्वारा अतिथियों का उठकर स्वागत करना, आराम से अँगीठी सुलगाना, चायदानी रखना, चाय के बर्तन लाना, उन्हें तौलिए से पोंछना व चाय को बर्तनों में डालने आदि की सभी क्रियाएँ गरिमापूर्ण ढंग, अच्छे व सहज ढंग से की।
इसमें केवल तीन ही लोगों को प्रवेश दिया जाता है। इसका कारण यह है की भाग दौड़ से भरी जिन्दगी से दूर कुछ पल अकेले बिताना है और साथ ही जहाँ इंसान भूतकाल और भविष्यकाल की चिंता से मुक्त हो कर वर्तमान में जी पाए। अधिक आदमियों के आने से शांति के स्थान पर अशांति का माहौल बन जाता है इसलिए यहाँ तीन ही लोगों के प्रवेश की अनुमति है।
चाय पीने के बाद लेखक ने महसूस किया कि जैसे उनके दिमाग की गति मंद पड़ गई हो, उसका दिमाग सुन्न होता जा रहा है। धीरे-धीरे उसका दिमाग चलना भी बंद हो गया यहाँ तक की उन्हें कमरे में पसरे हुए सन्नाटे की आवाज़ें भी सुनाई देने लगीं। उन्हें लगा कि मानो वे अनंतकाल से जी रहे हैं। वे भूत और भविष्य दोनोँ का चिंतन न करके वर्तमान में जी रहे हो।
गाँधीजी में नेतृत्व की अद्भुत क्षमता थी उन्होंने अपने सारे आंदोलनों को व्यावहारिकता के स्तर से आदर्शों के स्तर पर चढ़कर चलाया था। इन्होंने कई आन्दोलन चलाए - भारत छोड़ों, सत्याग्रह, असहयोग आंदोंलन, दांडीमार्च और वे सफल भी हुए। उन्होंने सत्य और अहिंसा को अपने आदर्शों का हथियार बनाया। उनके साथ भारत की सारी जनता थी। इन्हीं सिद्धांतों के बलबूते पर उन्होंने ब्रिटिश साम्राज्य से टक्कर ली। उन्होंने अहिंसा के मार्ग पर चलकर पूर्ण स्वराज की स्थापना की। उनके नेतृत्व में लाखों भारतीयों ने उनके साथ कंधे से कंधा मिलाकर संघर्ष किया। देशवासी उनके नेतृत्व को स्वीकार करके गर्व का अनुभव करते थे।
ईमानदारी, सत्य, अहिंसा, परोपकार, सहिष्णुता आदि मूल्य शाश्वत मूल्य हैं। वर्तमान समय में भी इनकी प्रासंगिकता बनी हुई है क्योंकि आज भी सत्य, और अहिंसा के बिना राष्ट्र का कल्याण और उन्नति नहीं हो सकती है। शांतिपूर्ण जीवन बिताने के लिए परोपकार, त्याग, एकता, भाईचारा तथा देश-प्रेम की भावना का होना अत्यंत आवश्यक है। यदि हम आज भी परोपकार और ईमानदारी के मार्ग पर चले तो समाज को विघटन से बचाया जा सकता है।
छात्र स्वयं अपनी घटना दिए गए तरीके से लिख सकते हैं - जैसे की -
शुद्ध आदर्श का पालन करने में मैं एक बार खुद ही फँस गया। एक बार एक ट्रैफिक हवलदार को मैंने रिश्वत लेते हुए पकड़ा और उसकी शिकायत उसके बड़े अफसर से कर दी तो उल्टा उसके बड़े अफसर ने सिग्नल तोड़ने के जुर्म में मेरा ही चालान कर दिया।
छात्र स्वयं अपनी घटना दिए गए तरीके से लिख सकते हैं - जैसे की -
शुद्ध आदर्श में व्यावहारिकता का पुट देकर एक बार मैंने शिक्षक से शाबाशी भी पा ली और एक विद्यार्थी को नक़ल करने से भी रोक दिया। हुआ यूँ कि एक बार परीक्षा भवन में मेरे आगे बैठा विद्यार्थी नक़ल कर रहा था। मैं उसे रोकना चाहता था परन्तु यदि उसकी शिकायत में सीधे जाकर शिक्षक से करता तो बाद में वह मुझसे बदला अवश्य लेता इसलिए मैंने इशारे से शिक्षक को उसकी करतूत बता दी परिणामस्वरूप शिक्षक ने उसकी सारी नक़ल की सामग्री चुपचाप फाड़कर कूड़े में फैंक दी।
शुद्ध सोने में ताँबे की मिलावट का अर्थ है - आदर्शवाद में व्यवहारवाद को मिला देना। शुद्ध सोना आदर्शों का प्रतीक है और ताँबा व्यावहारिकता का प्रतीक है। गाँधीजी ने जीवन भर सत्य और अहिंसा का पालन किया। वे आदर्शों को उंचाई तक ले जाते हैं अर्थात वे सोने में ताँबा मिलाकर उसकी कीमत कम नही करते थे बल्कि ताँबे में सोना मिलाकर उसकी कीमत बढ़ा देते थे। गाँधीजी व्यवहारिकता की कीमत जानते थे। इसीलिए वे अपना विलक्षण आदर्श चला सके। लेकिन अपने आदर्शों को व्यावहारिकता के स्वर पर उतरने नहीं देते थे।
गिन्नी का सोना पाठ के आधार पर यह स्पष्ट है कि जीवन में आदर्शवादिता का ही अधिक महत्त्व है।अवसरवादी व्यक्ति सदा अपना हित देखता है। गिरगिट कहानी में स्वार्थी इंस्पेक्टर पल-पल बदलता है। वह अवसर के अनुसार अपना व्यवहार बदल लेता है। 'गिन्नी का सोना' कहानी में इस बात पर बल दिया गया है कि आदर्श शुद्ध सोने के समान हैं। इसमें व्यवाहिरकता का ताँबा मिलाकर उपयोगी बनाया जा सकता है। केवल व्यवहारवादी लोग गुणवान लोगों को भी पीछे छोड़कर आगे बढ़ जाते हैं। यदि समाज का हर व्यक्ति आदर्शों को छोड़कर आगे बढ़ें तो समाज विनाश की ओर जा सकता है। समाज की उन्नति सही मायने में वहीं मानी जा सकती है जहाँ नैतिकता का विकास, जीवन के मूल्यों का विकास हो।
लेखक के मित्र ने मानसिक रोग के कारण बताएँ हैं कि मनुष्य चलता नहीं दौड़ता है, बोलता नहीं बकता है, एक महीने का काम एक दिन में करना चाहता है, दिमाग हज़ार गुना अधिक गति से दौड़ता है। अतरू तनाव बढ़ जाता है। मानसिक रोगों का प्रमुख कारण प्रतिस्पर्धा के कारण दिमाग का अनियंत्रित गति से कार्य करना है। लेखक के ये विचार सत्य हैं क्योंकि शरीर और मन मशीन की तरह कार्य नहीं कर सकते और यदि उन्हें ऐसा करने के लिए विवश किया तो मानसिक संतुलन बिगड़ जाना स्वाभाविक है।
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लेखक के अनुसार सत्य वर्तमान है। उसी में जीना चाहिए। हम अक्सर या तो गुजरे हुए दिनों की बातों में उलझे रहते हैं या भविष्य के सपने देखते हैं। इस तरह भूत या भविष्य काल में जीते हैं। असल में दोनों काल मिथ्या हैं। हम जब भूतकाल के अपने सुखों एवं दुखों पर गौर करते हैं तो हमारे दुख बढ़ जाते हैं। भविष्य की कल्पनाएँ भी हमें दुखी करती हैं। क्योंकि हम उन्हें पूरा नहीं कर पाते। जो बीत गया वह सत्य नहीं हो सकता। जो अभी तक आया ही नहीं उस पर कैसे विश्वास किया जा सकता है। वर्तमान ही सत्य है जो कुछ हमारे सामने घटित हो रहा है। वर्तमान ही सत्य है उसी में जीना चाहिए।
निम्नलिखित के आशय स्पष्ट कीजिए-
समाज के पास अगर शाश्वत मूल्यों जैसा कुछ है तो वह आदर्शवादी लोगों का ही दिया हुआ है।
इस पंक्ति का आशय यह है कि आदर्शवादी लोग समाज को आदर्श रूप में रखने वाली राह बताते हैं। आदर्शवादी लोग ही समाज में मूल्यों की स्थापना करते हैं। जब समाज एक आदर्श स्थापित करता है और जो सबके हित में सर्वमान्य हो जाता है वही आदर्श मूल्य बन जाता है। जबकि व्यवहारिक आदर्शवाद वास्तव में व्यवहारिकता ही है। उसमें आदर्शवाद कहीं नहीं होता है।
निम्नलिखित के आशय स्पष्ट कीजिए-
जब व्यावहारिकता का बखान होने लगता है तब 'प्रैक्टिकल आइडियालिस्टों' के जीवन से आदर्श धीरे-धीरे पीछे हटने लगते हैं और उनकी व्यावहारिक सूझ-बूझ ही आगे आने लगती है।
इस पंक्ति का आशय यह है कि व्यावहारिक आदर्शवाद वास्तव में शुद्ध व्यावहारिकता ही होती है। जब आदर्श और व्यवहार में से लोग व्यावहारिकता को प्रमुखता देने लगते हैं और आदर्शों को भूल जाते हैं तब आदर्शों पर व्यावहारिकता हावी होने लगती है। वहां आदर्श टिक नही पाते। वास्तव में व्यवहारिकता ही अवसरवादिता का दूसरा नाम है।
निम्नलिखित के आशय स्पष्ट कीजिए-
हमारे जीवन की रफ़्तार बढ़ गई है। यहाँ कोई चलता नहीं बल्कि दौड़ता है। कोई बोलता नहीं, बकता है। हम जब अकेले पड़ते हैं तब अपने आपसे लगातार बड़बड़ाते रहते हैं।
इस पंक्ति का आशय यह है कि जापान के लोगों के जीवन की गति इतनी तीव्र हो गई है कि यहाँ लोग सामान्य जीवन जीने की बजाए असामान्य होते जा रहे हैं। जीवन की भाग-दौड़, व्यस्तता तथा आगे निकलने की होड़ ने लोगों का चैन छीन लिया है। हर व्यक्ति अपने जीवन में अधिक पाने की होड़ में भाग रहा है। इसी कारण वे तनावपूर्ण जीवन व्यतीत करते हैं।
निम्नलिखित के आशय स्पष्ट कीजिए-
सभी क्रियाएँ इतनी गरिमापूर्ण ढंग से कीं कि उसकी हर भंगिमा से लगता था मानो जयजयवंती के सुर गूँज रहे हों।
इस पंक्ति का आशय यह है चाय परोसने वाले ने बहुत ही सलीके से काम किया। झुककर प्रणाम करना, बरतन पौंछना, चाय डालना सभी धीरज और सुंदरता से किए मानो कोई कलाकार बड़े ही सुर में गीत गा रहा हो।
नीचे दिए गए शब्दों का वाक्यों में प्रयोग किजिए −
व्यावहारिकता, आदर्श, सूझबूझ, विलक्षण, शाश्वत
(क) व्यावहारिकता − दादाजी की व्यावहारिकता सीखने योग्य है।
(ख) आदर्श − आदर्श का पालन करने वाले विरले ही होते हैं।
(ग) सूझबूझ − उसकी सूझबूझ ने आज मेरी जान बचाई।
(घ) विलक्षण − महेश की अपने विषय में विलक्षण प्रतिभा है।
(ङ) शाश्वत − सत्य, अहिंसा मानव जीवन के शाश्वत नियम हैं।
'लाभ - हानि' का विग्रह इस प्रकार होगा - लाभ और हानि
यहाँ द्वंद्व समास है जिसमें दोनों पद प्रधान होते हैं। दोनों पदों के बीच योजक शब्द का लोप करने के लिए योजक चिह्न लगाया जाता है। नीचे दिए गए द्वंद्व समास का विग्रह कीजिए -
(क) माता-पिता =.....................
(ख) पाप-पुण्य =......................
(ग) सुख-दुख =.......................
(घ) रात-दिन =.......................
(ङ) अन-जल =.......................
(च) घर-बाहर =.......................
(छ) देश-विदेश =.....................
(क) माता-पिता = माता और पिता
(ख) पाप-पुण्य = पाप और पुण्य
(ग) सुख-दुख = सुख और दुःख
(घ) रात-दिन = रात और दिन
(ङ) अन्न-जल = अन्न और जल
(च) घर-बाहर = घर और बाहर
(छ) देश-विदेश = देश और विदेश
नीचे दिए गए विशेषण शब्दों से भाववाचक संज्ञा बनाइए −
(क) सफल = .................
(ख) विलक्षण = .................
(ग) व्यावहारिक = .................
(घ) सजग = .................
(ङ) आर्दशवादी = .................
(च) शुद्ध = ....................
(क) सफल = सफलता
(ख) विलक्षण = विलक्षणता
(ग) व्यावहारिक = व्यावहारिकता
(घ) सजग = सजगता
(ङ) आर्दशवादी = आर्दशवादिता
(च) शुद्ध = शुद्धता
नीचे दिए गए वाक्यों में रेखांकित अंश पर ध्यान दीजिए और शब्द के अर्थ को समझिए-
(क) शुद्ध सोना अलग है।
(ख) बहुत रात हो गई अब हमें सोना चाहिए।
ऊपर दिए गए वाक्यों में 'सोना' का क्या अर्थ है? पहले वाक्य में 'सोना' का अर्थ है धातु 'स्वर्ण'। दूसरे वाक्य में 'सोना' का अर्थ है 'सोना' नामक क्रिया। अलग-अलग सन्दर्भों में ये शब्द अलग अर्थ देते हैं अथवा एक शब्द के कई अर्थ होते हैं। ऐसे शब्द अनेकार्थी शब्द कहलाते हैं। नीचे दिए गए शब्दों के भिन्न-भिन्न अर्थ स्पष्ट करने के लिए उनका वाक्यों में प्रयोग कीजिए-
उत्तर, कर, अंक, नग
(क) उत्तर - मैंने सभी प्रश्नों के उत्तर लिख लिए हैं।
तुम्हें उत्तर दिशा में जाना है।
(ख) कर - हमने सभी कर चुका दिए हैं।
मंत्री जी ने अपने कर कमलों से दीप प्रज्ज्वलित किया।
(ग) अंक - राम के परीक्षा में अच्छे अंक आए हैं।
बच्चा अपनी माँ की अंक में बैठा है।
(घ) नग - हीरा एक कीमती नग है।
हिमालय एक बड़ा नग है
नीचे दिए गए वाक्यों को संयुक्त वाक्य में बदलकर लिखिए−
(क) 1. अँगीठी सुलगायी।
2. उस पर चायदानी रखी।
(ख) 1. चाय तैयार हुई।
2. उसने वह प्यालों में भरी।
(ग) 1. बगल के कमरे से जाकर कुछ बरतन ले आया।
2. तौलिये से बरतन साफ़ किए।
(क) अँगीठी सुलगायी और उस पर चायदानी रखी।
(ख) चाय तैयार हुई और उसने वह प्यालों में भरी।
(ग) बगल के कमरे से जाकर कुछ बरतन ले आया और उसने तौलिए से बरतन साफ़ किए।
नीचे दिए गए वाक्यों से मिश्र वाक्य बनाइए−
(क) 1. चाय पीने की यह एक विधि है।
2. जापानी में उसे चा-नो-यू कहते हैं।
(ख) 1. बाहर बेढब-सा एक मिट्टी का बरतन था।
2. उसमें पानी भरा हुआ था।
(ग) 1. चाय तैयार हुई।
2. उसने वह प्यालों में भरी।
3. फिर वे प्याले हमारे सामने रख दिए।
(क) यह चाय पीने की एक विधि है जिसे जापानी चा-नो-यू कहते हैं।
(ख) बाहर बेढब सा एक मिट्टी का बरतन था जिसमें पानी भरा हुआ था।
(ग) जब चाय तैयार हुई तो उसने प्यालों में भरकर हमारे सामने रख दी।
'झेन की देन' पाठ में जापानी लोगों को मानसिक रोग होने के क्या-क्या कारण बताए गए हैं? आप इनसे कहाँ तक सहमत हैं? तर्क सहित लिखिए।
लेखक के मित्र ने मानसिक रोग के कारण बताए हैं कि मनुष्य चलता नहीं दौड़ता है, बोलता नहीं बकता है, एक महीने का काम एक दिन में करना चाहता है ,दिमाग हजार गुना अधिक तेजी से दौड़ आता है| अतः तनाव बढ़ जाता है| मानसिक रोगों का प्रमुख कारण प्रतिस्पर्धा के कारण दिमाग का नियंत्रित रूप से कार्य न करना है |हम यह भी मानते हैं कि मानसिक रोग ज्यादा से ज्यादा तनाव पैदा करता है जिससे मस्तिष्क पर अत्यधिक तनाव ,अत्यधिक दुख या कष्ट उत्पन्न हो सकते हैं यह स्थिति मनुष्य को बीमार बना देती है| आज का मनुष्य संतोष भरा जीवन व्यतीत नहीं करते वह बस भागना चाहते हैं इस दौड़ में सबसे आगे निकलना चाहते हैं यही स्थिति है उन्हें मानसिक रोगी बना देती है इन सारे कथनसे हम बिल्कुल सहमत हैं
''हमें सत्य में जीना चाहिए, सत्य केवल वर्तमान है।'' 'पतझर में टूटी पत्तियाँ' के इस कथन को स्पष्ट करते हुए लिखिए कि लेखक ने ऐसा क्यों कहा है?
लेखक के अनुसार असल में वर्तमान ही सत्य है| वही हमारे सामने है| भूत भी चुका है, भविष्य आने वाला है |बीते समय में लौटा नहीं जा सकता| भविष्य में जाया नहीं जा सकता | अतः सामने घट रहा है| वही सत्य है एक समझदार मनुष्य एक समझदार मनुष्य को उसी में जीना चाहिए |इसी प्रकार हमें सरलतापूर्वक आगे बढ़ते हुए जीवन जीना चाहिए| लेखक कहता है कि प्राया लोग बीते दिनों की यादों में दुखी रहते हैं और भविष्य के चिंताओं में उलझे रहते हैं| इस तरह हम भूत या भविष्य के भंवर में घिरे रहते हैं। यदि ध्यान दिया जाए, तो बीते कल की यादें दुख देती हैं और आने वाले भविष्य की चिंता हमारे दुख को और भी बढ़ा देती है। इसलिए वर्तमान में जीने में ही लाभ है|
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