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'मैं उत्पन्न हुई तो मेरी बड़ी खातिर हुई और मुझे वह सब नहीं सहना पड़ा जो अन्य लड़कियों को सहना पड़ता है।' इस कथन के आलोक में आप यह पता लगाएँ कि -
उस समय लड़कियों की दशा कैसी थी?
उस समय की लड़कियों की दशा बहुत शोचनीय थी। उस समय का समाज पुरुष प्रधान था। पुरुषों को समाज में ऊँचा दर्जा प्राप्त था। उस समय लड़कियों की स्थिति अत्यंत दयनीय थी। पुरुषों के सामने नारी को अत्यंत हीन दृष्टि से देखा जाता था।प्रायः लड़कियों को जन्म देते ही मार दिया जाता था। उन्हें बोझ समझा जाता था। यदि उनका जन्म हो जाता था तो पूरे घर में मातम छा जाता था। उस समय समाज में बाल-विवाह, दहेज-प्रथा तथा सती-प्रथा जैसी कुरीतियाँ फ़ैली हुई थी। शिक्षा को पाने का अधिकार भी केवल लड़कों को ही था। कुछ उच्च वर्गों की लड़कियाँ ही शिक्षित थी परन्तु उसकी संख्या भी गिनी चुनी थी। ऐसी लड़कियों को शिक्षा प्राप्त करने के लिए बहुत कठिनाइयों का सामना करना पड़ता था।
'मैं उत्पन्न हुई तो मेरी बड़ी खातिर हुई और मुझे वह सब नहीं सहना पड़ा जो अन्य लड़कियों को सहना पड़ता है।' इस कथन के आलोक में आप यह पता लगाएँ कि -
लड़कियों के जन्म के संबंध में आज कैसी परिस्थितियाँ हैं?
आज लड़कियों के जन्म के संबंध की स्थितिओ में काफी सुधार हुआ हैं। इसका कारण अपने अधिकारों को पाने के लिए नारी की जागरूकता हैं। आज शिक्षा के माध्यम से लोग सजग हो रहें हैं। लड़का-लड़की का भेदभाव धीरे-धीरे कम हो रहा हैं। आज लड़कियों को लड़कों की तरह पढ़ाया-लिखाया भी जाता है। परंतु लड़कियों के साथ भेदभाव पूरी-तरह समाप्त नहीं हुआ है। आज भी समाज में भ्रूण-हत्याएँ हो रही हैं, इसलिए सरकार कड़े कानून बना रहीं है। परंतु आज भी कुछ परिवारों में नारी की स्वतंत्रता पर प्रश्न चिन्ह है।
लेखिका उर्दू-फ़ारसी क्यों नहीं सीख पाई?
लेखिका की उर्दू-फ़ारसी में बिल्कुल रुचि न होने के कारण वह उससे सीख नही पायीं। इसलिए लेखिका को बचपन में उर्दू पढ़ाने के लिए जब मौलवी रखा गया और वह जब घर में आए तो लेखिका चारपाई के नीचे छिप गई।
लेखिका ने अपनी माँ के व्यक्तित्व की किन विशेषताओं का उल्लेख किया है?
लेखिका ने अपनी माँ के व्यक्तित्व की निम्नलिखित विशेषताओं का उल्लेख किया है:
1. उन्हें हिंदी तथा संस्कृत का अच्छा ज्ञान था।
2. वे धार्मिक स्वभाव की महिला थीं।
3. वे पूजा-पाठ किया करती थीं तथा ईश्वर में आस्था रखती थीं।
4. लेखिका की माता अच्छे संस्कार वाली महिला थीं तथा वह लिखा भी करती थीं।
जवारा के नवाब के साथ अपने पारिवारिक संबंधों को लेखिका ने आज के संदर्भ में स्वप्न जैसे क्यों कहा है?
पहले हिंदु और मुस्लिम दो सम्प्रदायों में आज के जैसा भेदभाव नहीं था। हिंदु और मुस्लिम दोनों एक ही देश में प्रेम पूर्वक रहते थे। स्वतंत्रता के पश्चात् हिंदु और मुस्लिम संबन्धों में बदलाव आ गया है। उदाहरण स्वरूप - ज्वारा के नवाब के साथ महादेवी वर्मा के पारिवारिक संबंध सगे-संबंधियों से भी अधिक बढ़कर थे। जवारा की बेगम स्वयं को महादेवी की ताई समझती थी तथा उन्होंने ही इनके भाई का नामकरण भी किया। वे हर त्योहार पर उनके साथ घुलमिल जाती थी। बेगम साहिबा के घर में अवधी बोली जाती थी। परन्तु हिंदी और उर्दू भी चलती थी। पहले वातावरण में जितनी निकटता थी, वह अब सपना हो गई है। ऐसे में आत्मीय संबंधों की आज के समय में कल्पना भी नहीं की जा सकती।
ज़ेबुन्निसा महादेवी वर्मा के लिए बहुत काम करती थी। ज़ेबुन्निसा के स्थान पर यदि आप होतीं / होते तो महादेवी से आपकी क्या अपेक्षा होती?
ज़ेबुन्निसा के स्थान पर मैं यदि महादेवी वर्मा को सहायता करती तो उनसे निम्नलिखित अपेक्षाएँ रखती -
1. उनकी स्वरचित कविताएँ सुनने की अपेक्षा रखती।
2. उनसे कविता लिखने का प्रोत्साहन पाना चाहती।
3. पढ़ाई में सहायता चाहती।
4. प्रेम और आदर की भी अपेक्षा करती।
महादेवी वर्मा को काव्य प्रतियोगिता में चाँदी का कटोरा मिला था। अनुमान लगाइए कि आपको इस तरह का कोई पुरस्कार मिला हो और वह देशहित में या किसी आपदा निवारण के काम में देना पड़े तो आप कैसा अनुभव करेंगे / करेंगी?
देश के नागरिक होने के कारण हर व्यक्ति के अपने देश के प्रति कुछ कर्तव्य होते है। अगर मेरे सामने देशहित का प्रश्न आता या किसी विपत्ति को दूर करने का प्रश्न आता तो मैं अपना चाँदी का कटोरा अवश्य दे देता और ऐसा करने में मुझे प्रसन्नता होती। मुझे लगता की में कुछ देश या उसके लोगो के कम आ पाया हूँ। देश प्रेम के आगे किसी भी पुरस्कार का कोई मूल्य नहीं होता है।
लेखिका ने छात्रावास के जिस बहुभाषी परिवेश की चर्चा की है उसे अपनी मातृभाषा में लिखिए।
लेखिका 'महादेवी वर्मा' के छात्रावास का परिवेश बहुभाषी था। कोई हिंदी बोलता था तो किसी की भाषा उर्दू थी। यहाँ देश के विभिन्न भागों से छात्राएँ पढ़ने आती थीं। वहाँ कुछ मराठी लड़किया भी थीं, जो आपस में मराठी बोलती थीं। अवध की लड़कियाँ आपस में अवधी बोलती थीं। बुंदेलखंड की लड़कियाँ बुंदेली में बात करती थीं। अलग-अलग प्रांत के होने के बावजूद भी वे आपस में हिंदी में ही बातें करती थीं। छात्रावास में उन्हें हिंदी तथा उर्दू दोनों की शिक्षा दी जाती थी।
महादेवी जी के इस संस्मरण को पढ़ते हुए आपके मानस-पटल पर भी अपने बचपन की स्मृति उभरकर आई होगी, उसे संस्मरण शैली में लिखिए ।
छात्र स्वयं करने का प्रयास करे जैसे:-
एक दिन की बात है, मैं और मेरा मित्र पाठशाला से घर लौट रहे थे। हमें सड़क पार करनी थी। मैं आगे था मैंने ठीक से सड़क पार कर ली परंतु तब तक सिगनल हरा हो गया और वाहन तेज़ गति से आगे बढ़ने लगे। मेरे मित्र ने सड़क के दोनों ओर देखा ही नहीं और लापरवाही से सड़क पार करने लगा। कार चालाक ने बड़ा प्रयास किया कि मेरे मित्र को समय रहते सूचित किया जा सके परन्तु ऐसा नहीं हो पाया। कार चालाक ने मेरे मित्र को बचाने के प्रयास में कार को इधर-उधर घुमाने का प्रयास किया। इस प्रयास में उसकी कार हमारे विद्यालय के पास एक पेड़ से जा टकराई। इस टक्कर में कार चालक बुरी तरह घायल हो गया। उसे गंभीर चोटें आईं थीं। संयोग से पास ही अस्पताल होने के कारण कार चालक को चिकित्सा सुविधा समय रहते उपलब्ध करवाई जा सकी और उसकी जान बच गई। इस घटना ने मेरे होश उड़ा दिए। मेरे मित्र को भी बहुत ग्लानि का अनुभव हुआ। उस दिन के बाद मैंने सड़क पार करते हुए कभी लापरवाही नहीं बरती। यह घटना मेरे लिए अविस्मरणीय घटना बन गई।
महादेवी ने कवि-सम्मेलनों में कविता-पाठ के लिए अपना नाम बुलाए जाने से पहले होने वाली बेचैनी का जिक्र किया है। अपने विद्यालय में होने वाले सांस्कृतिक कार्यक्रमों में भाग लेते समय आपने जो बेचैनी अनुभव की होगी, उस पर डायरी का एक पृष्ठ लिखिए।
छात्र स्वयं करने का प्रयास करे जैसे:-
10 oct 2016,
आज हमारे विद्यालय का वार्षिकोत्सव मनाया गया। इसमें सांस्कृतिक कार्यक्रम का आयोजन किया गया था। इस कार्यक्रम में मुझे अपने मित्र के साथ नृत्य प्रस्तुत करना था। हमारा नृत्य तीसरा था। हम कार्यक्रम शुरू होने पहले वस्त्र और आभूषण के साथ सुसज्ज हो गए थे। पर जैसे ही कार्यक्रम शुरू हुआ मेरे दिल कई धड़कने बढ़नी लगी। मैंने पहली बार ऐसे कार्यक्रम में नाम लिखवाया था। और देखते-देखते हमारा नाम पुकारा गया। जैसे ही हम मंच पर गए सबने तालियों से हमें प्रोत्साहन दिया। मुझ में धीरे-धीरे आत्मविश्वास बढ़ता गया और में नृत्य में लीन हो गया। सब को हमारा नृत्य बहुत अच्छा लगा। यह दिन मुझे हमेशा याद रहेंगा।
पाठ से निम्नलिखित शब्दों के विलोम शब्द ढूँढ़कर लिखिए-
विद्वान, अनंत, निरपराधी, दंड, शांति।
• विद्वान - मूर्ख
• अनंत - अंत
• निरपराधी - अपराधी
• दंड - पुरस्कार
• शांति - अशांति
निम्नलिखित शब्दों से उपसर्ग/प्रत्यय अलग कीजिए और मूल शब्द बताइए -
निराहारी, - निर् + आहार + ई
साम्प्रदायिकता,
अप्रसन्नता,
अपनापन,
किनारीदार,
स्वतंत्रता
शब्द | उपसर्ग | मूलशब्द | प्रत्यय |
|
निर् | आहार | ई |
सांप्रदायिकता | सम,प्र | सम्प्रदाय,दाय | इक,ता |
अप्रसन्नता | अ | प्रसन्न | ता |
अपनापन | - | अपना | पन |
किनारीदार | किनारा | ई | दार |
स्वतंत्रता |
स्व |
तंत्र | ता |
निम्नलिखित उपसर्ग-प्रत्ययों की सहायता से दो -दो-शब्द लिखिए -
उपसर्ग - अन्, अ, सत्, स्व, दुर्
प्रत्यय - दार, हार, वाला, अनीय
उपसर्ग -
1. अन् - अनंत, अनशन
2. अ - असत्य, अन्याय
3. सत् - सत्पथ, सत्कर्म
4. स्व - स्वराज, स्वाधीन
5. दुर् - दुर्लभ, दुर्व्यवहार
प्रत्यय -
1. दार - ईमानदार, दुकानदार
2. हार - पालनहार, तारनहार
3. वाला - फलवाला, टोपीवाला
4. अनीय - दर्शनीय, लेखनीय
पाठ में आए सामासिक पद छाँटकर विग्रह कीजिए -
पूजा-पाठ पूजा और पाठ
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सामासिक पद विग्रह
1. दुर्गापूजा दुर्गा की पूजा
2. छात्रावास छात्रों के लिए आवास
3. कवि-सम्मेलन कवियों का सम्मेलन
4. कुलदेवी कुल की देवी
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