Sponsor Area
'रस्सी' यहाँ किसके लिए प्रयुक्त हुआ है और वह कैसी है?
रस्सी यहाँ पर मानव के नाशवान शरीर के लिए प्रयुक्त हुई है और यह रस्सी कब टूट जाए कहा नहीं जा सकता है। यह कच्चे धागे की भाँति है जो कभी भी साथ छोड़ सकता है ।
कवयित्री द्वारा मुक्ति के लिए किए जाने वाले प्रयास व्यर्थ क्यों हो रहे हैं?
कवयित्री के कच्चेपन के कारण उसके मुक्ति के सारे प्रयास विफल हो रहे हैं अर्थात् वह इस संसारिकता तथा मोह के बंधनों से मुक्त नहीं हो पा रही है ऐसे में वह प्रभु भक्ति सच्चे मन से नहीं कर पा रहीं है। उसमें अभी पूर्ण रुप से प्रौढ़ता नहीं आई है। अत: उसे लगता है उसके द्वारा की जा रही सारी साधना व्यर्थ हुई जा रही है इसलिए उसके द्वारा मुक्ति के प्रयास भी विफल होते जा रहे हैं।
कवयित्री का 'घर जाने की चाह' से क्या तात्पर्य है?
कवयित्री का घर जाने की चाह से तात्पर्य है प्रभु से मिलना। कवयित्री इस भवसागर को पार करके अपने परमात्मा की शरण में जाना चाहती है क्योंकि जहाँ प्रभु हैं वहीं उसका वास्तविक घर है।
भाव स्पष्ट कीजिए -
जेब टटोली कौड़ी न पाई।
भाव यह है कवयित्री इस संसार में आकर सांसारिकता में उलझकर रह गयी और जब अंत समय आया और जेब टटोली तो कुछ भी हासिल न हुआ। लेखिका ने प्रभु के पास पहुँचने के लिए कठिन साधना चुनी परंतु उससे इस राह से ईश्वर नही मिला। अब उसे चिंता सता रही है कि भवसागर पार करानेवाले मांझी अर्थात् ईश्वर को उतराई के रूप में क्या देगी।
भाव स्पष्ट कीजिए-
खा-खाकर कुछ पाएगा नहीं,
न खाकर बनेगा अंहकारी।
कवयित्री कहती है कि मनुष्य को भोग विलास में पड़कर कुछ भी प्राप्त होने वाला नहीं है। प्रस्तुत पंक्तियों में कवयित्री मनुष्य को ईश्वर प्राप्ति के लिए मध्यम मार्ग अपनाने को कह रही है।मनुष्य जब सांसारिक भोगों को पूरी तरह से त्याग देता है तब उसके मन में अंहकार की भावना पैदा हो जाती है। अत:भोग-त्याग, सुख-दुःख के मध्य का मार्ग अपनाने की बात यहाँ पर कवयित्री कर रही है। भाव यह की भूखे रहकर तू ईश्वर साधना नहीं कर सकता।
बंद द्वार की साँकल खोलने के लिए ललदय ने क्या उपाय सुझाया है?
बंद द्वार की साँकल खोलने के लिए ललदय ने उपाय सुझाया है कि भोग-विलास और त्याग के बीच संतुलन बनाए रखना, मनुष्य को सांसारिक विषयों में न तो अधिक लिप्त और न ही उससे विरक्त होना चाहिए बल्कि उसे बीच का मार्ग अपनाना चाहिए। जिस दिन मनुष्य के हृदय में ईश्वर भक्ति जागृत हो गई अज्ञानता के सारे अंधकार स्वयं ही समाप्त हो जाएँगे। इसलिए सच्चे मन से प्रभु की साधना करो, अपने अन्त:करण व बाह्य इन्द्रियों पर विजय प्राप्त कर हृदय में प्रभु का जाप करो, सुख व दुख को समान भाव से भोगों। यही उपाय कवियत्री ने सुझाए हैं।
ईश्वर प्राप्ति के लिए बहुत से साधक हठयोग जैसी कठिन साधना भी करते हैं, लेकिन उससे भी लक्ष्य प्राप्ति नहीं होती। यह भाव किन पंक्तियों में व्यक्त हुआ है?
यह भाव निम्न पंक्तियों में से लिया हुआ है -
आई सीधी रह से, गई न सीधी राह।
सुषम-सेतु पर खड़ी थी, बीत गया दिन आह !
जेब टटोली, कौड़ी न पाई।
माझी को दूँ, क्या उतराई ?
'ज्ञानी' से कवयित्री का अभिप्राय है?
यहाँ ज्ञानी से कवयित्री का अभिप्राय है जिसने आत्मा और परमात्मा के सम्बन्ध को जान लिया हो। कवयित्री के अनुसार ईश्वर का निवास तो हर एक कण-कण में है परन्तु मनुष्य इसे धर्म में विभाजित कर मंदिर और मस्जिद में खोजता फिरता है। वास्तव में ज्ञानी तो वह है जो अपने अंतकरण में ईश्वर को पा लेता है। भाव यह है कि ईश्वर को अपने ही हृदय में ढूँढना चाहिए और जो उसे ढूँढ लेते हैं वही सच्चे ज्ञानी हैं।
हमारे संतों, भक्तों और महापुरुषों ने बार-बार चेताया है कि मनुष्यों में परस्पर किसी भी प्रकार का कोई भेदभाव नहीं होता, लेकिन आज भी हमारे समाज में भेदभाव दिखाई देता है -
आपकी दृष्टि में इस कारण देश और समाज को क्या हानि हो रही है?
समाज में व्याप्त भेदभाव के कारण निम्न हानियों हो रही है -
1. पर्वों के समय अनायास झगड़े की स्थिति उत्पन्न हो जाती है।
2. आपसी भेदभाव के कारण ही एक वर्ग दूसरे वर्ग को संदेह और अविश्वास की दृष्टि से देखता है।
3. भेदभाव के कारण ही उच्च और निम्न वर्ग में सामंजस्य स्थापित नहीं हो पाता।
4. हिंदू मुस्लिम का झगड़ा इसी भेदभाव की उपज है जिसके परिणाम स्वरूप भारत पाकिस्तान दो देश बने।
5. भेदभाव की उपज से अलगाववाद, उग्रवाद जैसी सामाजिक समस्याएँ पैदा होती है।
हमारे संतों, भक्तों और महापुरुषों ने बार-बार चेताया है कि मनुष्यों में परस्पर किसी भी प्रकार का कोई भेदभाव नहीं होता, लेकिन आज भी हमारे समाज में भेदभाव दिखाई देता है -
आपसी भेदभाव को मिटाने के लिए अपने सुझाव दीजिए।
आपसी भेदभाव को मिटाने के लिए निम्न सुझाव अपनाए जा सकते हैं -
1. राजनैतिक दल अपनी स्वार्थ पूर्ति के लिए लोगों की धार्मिक भावनाओं का सहारा न ले।
2. नौकरियों, शिक्षा तथा अन्य किसी भी सरकारी योजनाओं में आरक्षण को बढ़ावा न देकर योग्यता को आधार बनाना चाहिए।
3. स्कूली पाठ्यक्रम भी एकता समता पर आधारित हों।
4. आपसी भेदभाव को मिटाने के लिए सबसे पहले उन बातों की चर्चा ही न करें जिससे यह भेदभाव उपजता हो।
5. सरकार अपनी नीतियों के द्वारा आपसी जाति भेदभाव को बढ़ावा न दें।
Sponsor Area
Sponsor Area