Sponsor Area
गवरइया व गवरा के बीच आदमी के कपड़े पहनने पर बहस हुई। गवरइया का कहना था कि आदमी कपड़े पहनकर जँचता है जबकि गवरा का कहना था कि आदमी कपड़े पहनकर अपनी कुदरती सुंदरता को ढक लेता है।
गवरइया की इच्छा थी कि वह अपने सिर पर एक टोपी पहने। उसे अपनी इच्छा पूरी करने का अवसर तब मिला जब उसे कूड़े के ढेर पर चुगते-चुगते रुई का एक फाहा मिला।
गवरइया और गवरे की बहस तीन तर्कों पर हुई-
1. आदमी के कपड़े पहनने पर।
2. गवरइया द्वारा टोपी पहनने की इच्छा व्यक्त करने पर।
3. गवरइया को रुई का फाहा मिलने पर।
इन विचारों को संवादों में निम्न रूप से लिखा जा सकता है-
गवरइया - आदमी रंग-बिरंगे कपड़े पहनकर कितना जंचता है।
गवरा - बेवकूफ है आदमी, कपड़े पहनकर अपनी सुंदरता को ढक लेता है।
गवरइया - कपड़े मौसम से बचने हेतु भी पहने जाते हैं।
गवरा - कपड़े पहन लेने से तो उनकी मौसम को सहने की शक्ति समाप्त हो जाती है। साथ ही कपड़ों से उनकी हैसियत भी झलकती है।
गवरइया - आदमी की टोपी तो सबसे अच्छी होती है।
गवरा - टोपी। टोपी की तो बहुत मुसीबतें हैं। कितने ही राजपाट टोपी के दम पर बदल जाते हैं। टोपी इज़्ज़त का प्रतीक है। साथ ही जीवन की जरूरतें पूरी करने हेतु न जाने कितनी टोपियाँ घुमानी पड़ती हैं अर्थात् न जाने कितनों को मूर्ख बनाना पड़ता है।(गवरइया का कोई प्रतिक्रिया किए बिना अपनी पुन पर अड़े रहना)
गवरइया – गवरा! देखो मुझे रुई का फाह। मिल गया। अब मेरी टोपी बन जाएगी।
गवरा - तू तो बावरी हो गई है। रुई से टोपी तक का सफर तो बहुत लंबा है।
गवरइया - बस तुम तो देखते जाओ कैसे में टोपी बनवा कर ही दम लूँगी।
इस बात को झुठलाया नहीं जा सकता कि गवरइया का उत्साह ही था कि वह एक के बाद एक धुनिए, कोरी, बुनकर व दर्जी के पास जाकर अपनी टोपी सिलवाने में कामयाब हो गई जबकि गवरे को यह विश्वास न था कि वह टोपी बनवा लेगी। उसका उत्साह ही उसे सफलता की ओर ले गया।
हम भी यदि किसी कार्य को उत्साह के साथ पूरा करना चाहें तो सफलता अवश्य प्राप्त करेंगे। चाह के साथ उत्साह ही मनुष्य को आगे बढ़ने की प्रेरणा देता है।
टोपी पहनकर गवरइया राजा को दिखाने पहुँची क्योंकि वह राजा को यह अहसास दिलवाना चाहती थी कि यदि वह अपनी प्रजा से कोई भी काम करवाता है तो उसे उस कार्य की पूरी मजूरी देनी चाहिए। मुफ़्त में काम करवाने से बेचारे मज़दूर अपना खर्च कैसे चलाएँगे। ऐसा अहसास गवरइया को तब हुआ जब वह अपनी टोपी बनवाने के लिए धुनिए, कोरी, बुनकर व दरजी के पास गई थी। उसने यह समझ लिया था कि राजा अपने काम करवाता है लेकिन पारिश्रमिक किसी की नहीं देता। इसी कारण वे सब अच्छा और उम्दा काम भी नहीं करते क्योंकि उनके मन में उत्साह ही नहीं होता कि काम पूरा करके पैसे मिलेंगे। काम उनके लिए बोझ के समान था।
इसी कारण गवरइया ने राजा को चुनौती देकर उसकी गलती का उसे अहसास करवाना चाहा।
कितनों को टोपी पहनाना-अपने कार्य को करने हेतु बहुतों को मूर्ख बनाना।
टोपी के लिए कितनों का टाट उलटना - इज़्ज़त बचाने हेतु कई राजपाट बदल जाना। सत्ता प्राप्त करने हेतु राजपाट बदलना।
टोपी उछालना-बेइज़्ज़ती करना।
टोपी सलामत रहना-इज़्ज़त बनी रहना।
Sponsor Area
B.
बिना वस्त्रों के उसकी काया का एक-एक कटाव साफ नजर आता है।C.
मनुष्य सर्दी, गर्मी और बरसात की ऋतु के प्रभाव को सहने की शक्ति खो देता है।B.
गवरा पूर्णतया सही है कि कपड़े पहनने से उनकी मौसम को सहने की शक्ति समाप्त होती है और औकात पता चलती है।Sponsor Area
B.
टोपी पहनने का विचार मन से निकाल देने की।B.
उसे गवरइया वैसे ही अच्छी लगती है वह नहीं चाहता कि वह अपने में परिवर्तन लाए।A.
वह तो केवल मजदूरी करवाता है पर उसके बदले में कुछ नहीं देता।B.
अधिकारी आदेश देता है काम तो सेवकों को करना पड़ता है।A.
वह बहुत प्रसन्न थी, डेढ़ टाँग पर नाचने लगी, गवरइया को दिखाते हुए कह रही थी मेरी टोपी पाँच फुँदनों वाली।C.
मेरे राज्य में मेरे सिवा इतनी खूबसूरत टोपी दूसरे के पास कैसे पहुँची।D.
कि राजा से एक टोपी तक नहीं बनवाई जाती इसीलिए तो मेरी टोपी छीन ली। यह राजा तो कंगाल है।D.
सभी कारीगर गवरइया से खुश कैसे हैं और गवरइया को कैसे पता चला कि स्राज्या धन बट रहा है।A.
क्योंकि मुफ्त में काम करवाने व सख्ती से कर वसूलने पर भी खजाना खाली था।C.
इतने ऐशोआराम, इतनी लश्करी, इतने लवाज़िमे का बोझ खजाना कैसे संभालेगा?C.
राजा डरपोक है उसने मुझसे डर कर मेरी टोपी वापिस कर दी।A.
बस न चलने पर राजा ने मंत्री से कहा इस मुँहफट के मुँह कौन लगे।Sponsor Area
Sponsor Area
Sponsor Area