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टोपी
इस बात को झुठलाया नहीं जा सकता कि गवरइया का उत्साह ही था कि वह एक के बाद एक धुनिए, कोरी, बुनकर व दर्जी के पास जाकर अपनी टोपी सिलवाने में कामयाब हो गई जबकि गवरे को यह विश्वास न था कि वह टोपी बनवा लेगी। उसका उत्साह ही उसे सफलता की ओर ले गया।
हम भी यदि किसी कार्य को उत्साह के साथ पूरा करना चाहें तो सफलता अवश्य प्राप्त करेंगे। चाह के साथ उत्साह ही मनुष्य को आगे बढ़ने की प्रेरणा देता है।
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