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बचपन में जब लेखक गरमी की छुट्टियों में अपने मामा के घर रहने जाता तो उस ‘बदलू काका’ से लाख की रंग-बिरंगी गोलियाँ लेने का चाव होता था। ये गोलियां इतनी सुंदर होती थी कि कोई भी बच्चा इनकी और आकर्षित हुए बिना नहीं रह सकता था।
वह बदलू को ‘बदलू मामा’ न कहकर ‘बदलू काका’ इसलिए कहता था क्योंकि गाँव के सारे बच्चे उस ‘बदलू काका’ के नाम से पुकारते थे।
‘मशीनी युग ने कितने ही हाथ काट दिए हैं’ -इस पंक्ति के माध्यम से लेखक कहना चाहता है कि हाथ से किए जाने वाले उद्योग- धंधे मशीनों द्वारा किए जाने लगे हैं। ऐसे में हाथ से काम करने वाले लोग या तो बेरोजगार हो गए हैं या फिर अपने पैतृक (पूर्वजों के) कार्यों को छोड्कर दूसरे कार्य करने के लिए मजबूर हो गए हैं।
इस पाठ में भी जब लेखक को यह पता चलता है कि बदलू की हाथ से बनने वाली लाख की चूड़ियों का स्थान मशीन से बनने वाली काँच की चूड़ियों ने ले लिया है तो उसे बहुत दु:ख होता है।
पिछले वर्ष मैं अपने सहपाठियों के साथ सूरजकुंड के मेले मे गया। वहाँ मैंने धागे व ऊन से निर्मित सुंदर-सुंदर छाते देखे। उन्हें देखकर ऐसा लगा कि ये बनने में बहुत ही आसान हैं। उन छातों को बेचने वाली स्त्रियाँ वहीं बैठकर और छाते भी बना रही थीं।
घर आकर मैंने भी खूब ऊन व धागे एकत्रित किए। बडे-बड़े तिनकों का भी प्रबंध कर लिया। लेकिन जब बनाने का प्रयास किया तो पूरी तरह सफलता न मिली और माँ की यही बात सुननी पड़ी कि ‘जिसका काम उसी को साजे।’
लाख की वस्तुओं का सबसे अधिक निर्माण राजस्थान में होता है। इसके अलावा मध्यप्रदेश, आंध्रप्रदेश व गुजरात में भी लाख पाई जाती है। इसलिए वहाँ भी लाख का सामान बनाया जाता है।
लाख से चूड़ियों के अतिरिक्त कई प्रकार के अभूषण, खिलौने व सजाने का सामान बनाया जाता है। डाकघर व अन्य स्थानों पर सामान पैक करके सीलबंद करने हेतु भी लाख का प्रयोग किया जाता है।
घर में किसी के आने पर सबसे पहले हम प्रेमपूर्वक उसका स्वागत करेंगे। आदर से उन्हें बैठने के लिए कहेंगे। फिर सादरपूर्वक उनका हाल-चाल पूछकर जलपान करवाएँगे।
यह भी मेहमान के आने पर निर्भर करता है कि वह किस समय आता है। यदि सुबह का समय होगा तो चाय-नाश्ता करवाएँगे, दोपहर के समय उसे प्रीतिभोज व रात्रि मैं मेहमान आए तो रात्रिभोज करवाना हमारा कर्तव्य बनता है।
बाज़ार में बिकने वाले सामानों के डिज़ाइनों में हमेशा परिवर्तन होता रहता है क्योंकि एक ही डिज़ाइन की वस्तु का प्रयोग करते-करते लोग ऊब जाते हैं। कुछ नयापन लाने व रुचि के अनुसार परिवर्तन करने से वस्तुओं का रूप सौंदर्य बदलता रहता है। हम इन परिवर्तनों को केवल फैशन के रूप में ही देखते हैं।
इसी प्रकार की चर्चा आप कक्षा मे कर सकते हैं।
वर्तमान में दिन-प्रतिदिन आधुनिकता बढ़ती जा रही है। और इसका विशेष प्रभाव पड़ रहा है हमारे खान-पान, रहन-सहन और पहनावे पर। इस आधार पर मैंने बहुत लोगों से बातचीत की। कुछ ने इसके पक्ष में व कुछ ने इसके विपक्ष में अपने विचार रखे अर्थात् कुछ इस बदलाव को सही कहते हैं और कुछ सही नहीं मानते।
लेकिन मैंने सभी के विचारों से यह निष्कर्ष निकाला कि बदलाव भी जीवन का एक विशेष पहलू है। कुछ बड़े-बुजुर्ग आधुनिकता को जल्दी से अपना लेते हैं; रूढ़िवादी विचारों को त्यागने या उनमें बदलाव लाने में वे संकोच नहीं करते। ऐस लोग युवाओं के भी प्रिय हो जाते हैं व समया नुसार उनका मार्ग-दर्शन भी कर सकते हैं लेकिन दूसरी ओर वे बड़े-बुजुर्ग भी हैं जिन्हें समाज में होता बदलाव अच्छा नहीं लगता। वे अपने प्राचीन विचारों के साथ ही जीना चाहते हैं। एेसे में उनका बात-बात पर नवीन वर्ग के विचारों के साथ मतभेद होता है। ऐसा होने पर बच्चे भी उन्हें उतना सम्मान नहीं दे पाते जितना उन्हें देना चाहिए।
(क) ‘अब पहले जैसी औलाद कहाँ?’
किसी भी बुजुर्ग के मुख से आमतौर पर यह सुनने को मिल जाता है जिसमें स्पष्ट रूप से यह दुख और व्यंग्य छिपा रहता है कि आजकल की संतान बुजुर्गों को अधिक सम्मान नहीं देती।
(ख) ‘आजकल के खाद्य-पदार्थो में शुद्धता कहाँ?’
इस वाक्य से यह व्यंग्य किया जाता है कि दिन-प्रतिदिन खाद्य-पदार्थों में मिलावटी चीजों से उनकी शुद्धता समाप्त होती जा रही है।
पाठ से-मचिया-चौकी, खातिर-आवभगत, अंजुली-हथेली, फबना-जँचना, सुंदर लगना, मुखातिब, संबोधन/सामने।
अन्य - जिंदगी - जीवन दुनिया - संसार आलम - जगत
इंसान - मनुष्य औरत - स्त्री औलाद - संतान
गम - मायूसी रंज - दुख।
क) व्यक्तिवाचक-लेखक, बदलू, नीम, मनिहार, संसार, रज्जो जमींदार साहब।
(ख) जातिवाचक- आदमी, लाख, गोलियाँ, मकान, सहन, भट्ठी, सलाख, शहर, मलाई, आम, फसल, खाट, वृक्ष, मशीन, ढेर।
(ग) भाववाचक-चाव, स्वभाव, नाजुक, रुचि, कुढ़, चिढ़, निहारना, शांति, व्यथा, भांप, लहकना, फब, प्रसन्नता, व्यक्तित्व।
बदलू मनिहार था अर्थात् चूड़ियाँ बनाने वाला था। वह लाख की सुंदर व रंग-बिरंगी चूड़ियाँ बनाया करता था। गाँव व गाँव से बाहर भी उसकी चूड़ियों की प्रसिद्धि थी। पैतृक पेशे का अर्थ है पूर्वजों के कार्य को आगे बढ़ाना। बदलू भी अपने बाप-दादाओं के पेशे को ही कर रहा था।
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B.
उसके पिता की बदली हो गई थी।C.
क्योंकि बेलन पर चढ़ी-चूड़ियाँ नववधू की कलाई की भाँति खिली हुई सुंदर लगती थी।Sponsor Area
D.
स्त्रियों की रुचि लाख की चूड़ियों में न होकर काँच की चूड़ियों में होना।B.
क्योंकि काँच की चूड़ियों का प्रचलन होने से भले उसने लाख की चूड़ियों का काम बंद कर दिया लेकिन काँच की चूड़ियाँ बेचने का काम शुरू न किया।Sponsor Area
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