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NCERT Solutions for Class 9 Hindi स्पर्श भाग १ Chapter 1 धूल - रामविलास शर्मा
  • NCERT Solution For Class 9 Hindi स्पर्श भाग १

    धूल - रामविलास शर्मा Here is the CBSE Hindi Chapter 1 for Class 9 students. Summary and detailed explanation of the lesson, including the definitions of difficult words. All of the exercises and questions and answers from the lesson's back end have been completed. NCERT Solutions for Class 9 Hindi धूल - रामविलास शर्मा Chapter 1 NCERT Solutions for Class 9 Hindi धूल - रामविलास शर्मा Chapter 1 The following is a summary in Hindi and English for the academic year 2023-24. You can save these solutions to your computer or use the Class 9 Hindi.

    Question 1
    CBSEENHN9000401

    निन्नलिखित गद्यांशों को पढ़कर नीचे लिखे प्रशनों के उत्तर दीजिए:
    हीरे के प्रेमी तो शायद उसे साफ-सुधरा, खरादा हुआ, आँखों में चकाचौंध पैदा करता हुआ देखना पसंद करेंगे। परंतु हीरे से भी कीमती जिस नयन-तारे का जिक्र इस पंक्ति में किया गया है वह धूलि भरा ही अच्छा लगता है। जिसका बचपन गाँव के गलियारे की धूल में बीता हो, वह इस धूल के बिना किसी शिशु की कल्पना कर ही नहीं सकता। फूल के ऊपर जो रेणु उसका श्रृगार बनती है, वही धूल शिशु के मुँह पर उसकी सहज पार्थिवता को निखार देती है। अभिजात वर्ग ने प्रसाधन-सामग्री में बड़े-बड़े आविष्कार किए, लेकिन बालकृष्ण के मुँह पर छाई हुई वास्तविक गोधूलि की तुलना में वह सभी सामग्री क्या धूल नहीं हो गई?
    (क) पाठ तथा लेखक का नाम लिखो।
    (ख) हीरे के प्रेमी हीरे को कैसा देखना पसंद करते हैं और क्यों?
    (ग) कवि ने ‘धूलि भरे हीरे’ किसे कहा है?
    (घ) धूल के बिना शिशु की कल्पना क्यों नहीं की जा सकती?

    Solution

    (क) पाठ- धूल, लेखक का नाम-रामविलास शर्मा।
    (ख) हीरे के प्रेमी हीरे को साफ-सुथरा, सुडौल, चिकना चमकदार, और औखों में चकाचौंध-पैदा करने वाला देखना चाहते हैं क्योंकि हीरा जितना अधिक सुडौल और चमकदार होगा-उसका मूल्य उतना ही अधिक होगा।
    (ग) ‘धूलि भरे हीरे’ से तात्पर्य है-मातृभूमि की धूल में लिपटकर बीता हुआ बचपन। शिशु को जमीन पर खेलना अच्छा लगता है। जमीन पर खेलने से वह धूल मिट्‌टी से भर जाता है। उसका सारा शरीर धूल से सने होने के कारण उसे धूल भरे हीरे कहा गया है।
    (घ) भूल के बिना शिशु की कल्पना नहीं की जा सकती। क्योंकि शिशु को धूल से बचाकर रखा ही नहीं जा सकता। वह किसी न किसी बहाने जमीन पर खेलेगा और धूल से लथपथ हो जाएगा।

    Question 2
    CBSEENHN9000402

    निन्नलिखित गद्यांशों प्रशनों को पढ़कर नीचे लिखे  के उत्तर दीजिए-
    हमारी सभ्यता इस धूल के संसर्ग से बचना चाहती है। वह आसमान में अपना घर बनाना चाहती है, इसलिए शिशु भोलानाथ से कहती है, धूल में मत खेलो। भोलानाथ के संसर्ग से उसके नकली सलमे-सितारे धुँधले पड़ जाएँगे। जिसने लिखा था- ‘‘धन्य- धन्य वे हैं नर मैले जो करत गात कनिया लगाय धूरि ऐसे लरिकान की,’’ उसने भी मानो धूल भरे हीरों का महत्त्व कम करने में कुछ उठा न रखा था।’ धन्य-धन्य ‘ में ही उसने बड़प्पन को विज्ञापित किया, फिर ‘मैले’ शब्द से अपनी हीनभावना भी व्यंजित कर दी, अंत में ‘ऐसे लरिकान’ कहकर उसने भेद-बुद्धि का परिचय भी दे दिया। वह हीरों का प्रेमी है, धूलि भरे हीरों का नहीं।
    (क) पाठ तथा लेखक का नाम लिखो।
    (ख) हमारी सभ्यता भूल के संसर्ग से क्यों बचना चाहती है।
    (ग) इसमें आज की सभ्यता पर क्या व्यंग्य है?
    (घ) अपने बड़प्पन को विज्ञापित करने से क्या तात्पर्य है?




    Easy
    Question 3
    CBSEENHN9000403

    निन्नलिखित गद्यांशों प्रशनों को पढ़कर नीचे लिखे  के उत्तर दीजिए-
    गोधूलि पर कितने कवियों ने अपनी कलम नहीं तोड़ दी, लेकिन यह गोधूलि गाँव की अपनी संपत्ति है, जो शहरों के बाटे नहीं पड़ी। एक प्रसिद्ध पुस्तक विक्रेता के निमंत्रण-पत्र में गोधूलि की बेला में आने का आग्रह किया गया था, लेकिन शहर में भूल- धक्कड़ के होते हुए भी गोधूलि कहाँ? यह कविता की विडंबना थी और गाँवों में भी जिस धूलि को कवियों ने अमर किया है. वह हाथी-घोड़ों के पग-संचालन से उत्पन्न होनेवाली धूल नहीं है, वरन् गो-गोपालों के पदों की धधु-लि है। 
    (क) पाठ तथा लेखक का नाम लिखो।
    (ख) गोधूलि को गाँव की सपंत्ति क्यों कहा गया है?
    (ग) पुस्तक विक्रेता ने निमत्रंण-पत्र में गोधूलि-बेला लिखकर क्या गलती की?
    (घ) कवियों ने किस भूल को अमर कर दिया?









    Easy
    Question 4
    CBSEENHN9000404

    निन्नलिखित गद्यांशों प्रशनों को पढ़कर नीचे लिखे  के उत्तर दीजिए-
    हमारी देशभक्ति धूल को माथे से न लगाए तो कम-से-कम उस पर पैर तो रखे। किसान के हाथ-पैर, मुँह पर छाई हुई यह धूल हमारी सम्यता से कक्याकहती है? हम काँच को प्यार करते हैं, धूलि भरे हीरे में धूल ही दिखाई देती है, भीतर की कांति आँखों से ओझल रहती है, लेकिन ये हीरे अमर है और एक दिन अपनी अमरता का प्रमाण भी देंगे। अभी तो उन्होंने अटूट होने का ही प्रमाण दिया है- “हीरा वही घन चोट न टूटे।” वे उलटकर चोट भी करेंगे और तब काँच और हीरे का भेद जानना बाकी न रहेगा। तब हम हीरे से लिपटी हुई धूल को भी माथे से लगाना सीखेंगे।
    (क) पाठ तथा लेखक का नाम लिखो।
    (ख) हमारी देशभक्ति कैसे प्रमाणित होगी?
    (ग) हमें धूलि और हीरे में भूल दिखाई देती है-व्यंग्य स्पष्ट कीजिए।
    (घ) ‘हीरा वही घन चोट न टूटे’ से क्या अभिप्राय है?










    Easy