भारतीय इतिहास के कुछ विषय Iii Chapter 11 विद्रोही और राज
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    NCERT Solution For Class 12 ������������������ भारतीय इतिहास के कुछ विषय Iii

    विद्रोही और राज Here is the CBSE ������������������ Chapter 11 for Class 12 students. Summary and detailed explanation of the lesson, including the definitions of difficult words. All of the exercises and questions and answers from the lesson's back end have been completed. NCERT Solutions for Class 12 ������������������ विद्रोही और राज Chapter 11 NCERT Solutions for Class 12 ������������������ विद्रोही और राज Chapter 11 The following is a summary in Hindi and English for the academic year 2021-2022. You can save these solutions to your computer or use the Class 12 ������������������.

    Question 1
    CBSEHHIHSH12028338

    बहुत सारे स्थानों पर विद्रोही सिपाहियों ने नेतृत्व सँभालने के लिए पुराने शासकों से क्या आग्रह किया?

    Solution

    बहुत सारे स्थानों पर विद्रोही सिपाहियों (सैनिकों) ने नेतृत्व संभालने के लिए पुराने अपदस्थ शासकों से आग्रह किया कि वे विद्रोह का नेतृत्व प्रदान करें क्योंकि वे जानते थे कि नेतृत्व व संगठन के बिना अंग्रेजों से लोहा नहीं लिया जा सकता। इस उद्देश्य से विद्रोहियों ने ऐसे लोगों की शरण ली जो अंग्रेज़ों से पहले नेताओं की भूमिका निभाते थे: 

    1. सबसे पहले मेरठ के विद्रोही सिपाही दिल्ली गए और उन्होंने वृद्ध मुगल सम्राट से विद्रोह का नेतृत्व करने का आग्रह किया। बहादुरशाह इस समाचार पर भयभीत और बेचैन दिखाई दिए। उन्होंने नामा पत्र का नेता बनने की जिम्मेदारी तभी स्वीकार की जब कुछ सिपाही शाही शिष्टाचार की अवहेलना करते हुए दरबार तक आ चुके।
    2. कानपुर में सिपाहियों और शहर के लोगों ने पेशवा बाजीराव द्वितीय के उत्तराधिकारी नाना साहिब को विद्रोह की बागडोर सँभालने के लिए मजबूर किया।
    3. झाँसी की रानी को आम जनता के दबाव में विद्रोह का नेतृत्व संभालना पड़ा। कुछ ऐसी स्थिति बिहार में आरा के स्थानीय जमीदार कुँवर सिंह की थी।
    4. अवध (लखनऊ) में नवाब वाजिद अली शाह जैसे लोकप्रिय शासक को गद्दी से हटा देने और उनके राज्य पर अधिकार कर लेने की यादें लोगों के मन में अभी ताज़ा थीं। लखनऊ में ब्रिटिश राज के ढहने समाचार पर लोगों ने नवाब के युवा पुत्र बिरजिस कद्र को अपना नेता घोषित कर दिया था।

    Question 2
    CBSEHHIHSH12028339

    1857 के घटनाक्रम को निर्धारित करने में धार्मिक विश्वासों की किस हद तक भूमिका थी ?

    Solution
    1. 1857 के घटनाक्रम के निर्धारण में धार्मिक विश्वासों की महत्वपूर्ण भूमिका रही थी। विभिन्न तरीकों द्वारा सैनिकों की धार्मिक भावनाओं को आहात किया गया। सामान्य लोग भी अंग्रेजी सरकार को संदेह की दृष्टि से देख रहे थे। उन्हें यह लग रहा था कि सरकार अंग्रेजी शिक्षा और पाश्चात्य संस्कृति का प्रचार प्रसार करके भारत में ईसाइयत को बढ़ावा दे रही है। इस कारण भारतीय अंग्रेजों के विरुद्ध हो गए।
    2. आम लोगों का संदेह भी गलत नहीं था क्योंकि इसाई पादरी भारतवासियों को लालच देकर उन्हें ईसाई बना रहे थे। ईसाई प्रचारक अपने धर्म का प्रचार करने के साथ हिंदू धर्म के ग्रंथों की भी निंदा करते थे। इस बात से भारतवासी भड़क उठे।
    3. 1850 में बने 'उत्तराधिकार कानून' से यह संदेह विश्वास में बदल गया। धर्म बदलने वालों को पैतृक संपत्ति प्राप्ति का अधिकार दिया गया था।
    4. 1856 ई. ईसवी में लागू किए गए 'सैनिक सामान्य सेवा भर्ती अधिनियम' के अनुसार सैनिकों को भर्ती के समय यह स्वीकार करना पड़ता था की उन्हें भारत के किसी भी भाग में अथवा भारत के बाहर समुंदर पार के देशों में भी लड़ने के लिए भेजा जा सकता है परंतु हिंदू सैनिक समुंदर पार जाना इसे अपना धर्म भ्रष्ट मानते थे।
    5. 1857 ई. में सैनिकों को नए कारतूस प्रदान किए गए। इन कारतूसों पर गाय या सूअर की चर्बी लगी हुई थी। इसलिए भारतीय सैनिकों में असंतोष इस सीमा तक बढ़ गया कि वह विद्रोह करने पर उतारु हो गए थे।
    Question 3
    CBSEHHIHSH12028340

    विद्रोहियों के बीच एकता स्थापित करने के लिए क्या तरीके अपनाए गए?

    Solution

    विद्रोहियों के बीच एकता स्थापित करने के लिए निम्नलिखित तरीकें अपनाए गए:

    1. 1857 में विद्रोहियों द्वारा जारी की गई घोषणाओं में, जाति और धर्म का भेद किए बिना, समाज के सभी तबकों का आह्वान किया गया। 
    2. बहुत- सी घोषणाएँ मुस्लिम राजकुमारों या नवाबों की तरफ से या उनके नाम पर जारी की गई थीं। परंतु उनमें भी हिंदुओं की भावनाओं का ख्याल रखा जाता था।
    3. इस विद्रोह को एक ऐसे युद्ध के रूप में पेश किया जा रहा था जिसमें हिंदुओं और मुसलमानों, दोनों का नफा-नुकसान बराबर था।
    4. इश्तहारों में अंग्रेजों से पहले के हिंदू-मुस्लिम अतीत की ओर संकेत किया गया और मुगल साम्राज्य के तहत विभिन्न समुदायों के सहअस्तित्व का गौरवगान भी किया गया।
    5. बहादुर शाह के नाम से जारी की गई घोषणा में मुहम्मद और महावीर, दोनों की दुहाई देते हुए जनता से इस लड़ाई में शामिल होने का आह्वान किया गया।
    6. हिंदुओं और मुसलमानों, तमाम लोगों को एकजुट होने और फिरंगियों का सफाया करने के लिए हिंदी, उर्दू और फारसी में अपीलें जारी होने लगीं।

    Question 4
    CBSEHHIHSH12028341

    1857 के विद्रोह के बारे में चित्रों से क्या पता चलता है? इतिहासकार इन चित्रों का किस तरह विश्लेषण करते हैं?

    Solution
    1. चित्र नं.1: बहादुरशाह जफर के चित्र से सपष्ट है की वह उम्र के हिसाब से बहुत वृद्ध हो चुके थे। उसका केवल लाल किले और उसके आसपास के कुछ ही इलाके पर नियंत्रण था। वह पूरी तरह शक्तिहीन हो चुका था। जब मेरठ की छावनी से आने वाले सिपाहियों का जत्था लाल किले में दाखिल हुआ तो वह विद्रोहियों को शिष्टाचार का पालन करने के लिए विवश तक न कर सका। इतिहासकार इस चित्र से यह निष्कर्ष निकालते हैं की बहादुरशाह न चाहते हुए विद्रोह का औपचारिक नेता बना। उसने 1857 के विद्रोह को वैधता देने की कोशिश की।
    2. चित्र नं. 2: लखनऊ में ब्रिटिश लोगों के खिलाफ हमले में आम लोग भी सिपाहियों के साथ जा जुटे थे, की पुष्टि होती है। इस चित्र से यह भी सपष्ट होता है की कम्पनी राज्य में साधारण लोग भी दुखी थे। सिपाहियों की तरह उनमे भी रोष था। इस रोष के कारण विदेशी शासन और उसके द्वारा किए गए आर्थिक शोषण, लोगों की धार्मिक और सामाजिक भावनाओं से किया गया खिलवाड़, सांस्कृतिक जीवन में हस्तक्षेप, विदेशी भाषाएँ, खानपानके ढंग आदि थोपना उनको विद्रोही बनाने के लिए उत्तर दाई थे।
    3. चित्र नं. 3: यह चित्र रानी लक्ष्मीबाई के एक प्रचालित भाव पर आधारित है जो बताता है की बूंदेलखंड की रानी एक महान वीरंगना थी जिसने अंग्रेजों के विरुद्ध तलवार उठाई। लेकिन रानी लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हो गई।
    4. चित्र नं. 4: अवध के एक जमींदार का है। जो 1880 से संबंधित है। इससे सपष्ट होता है की जमींदार विद्रोह के बाद पुनः सरकार के नजदीक आ गए। उन्हें अंग्रेजों ने पुरानिजमींदारियाँवापस दे दीं, इच्छानुसार रैयतों पर लगान बढ़ा सके। मोटी रकम कमा सके, चित्र में जमींदार की पोशाक उसकी अच्छी स्थिति और समृद्धि का प्रतीक है।
    5. चित्र नं. 5: यूरोपीय ढंग की वर्दी पहने बंगाल के सिपाही हैं। यहाँ कलाकार सिपाहियों की वर्दी का मजाक उड़ा रहा है। इन तस्वीरों के जरिए शायद यह जताने का प्रयास किया जा रहा है की पश्चिमी पोशाक पहन कर भी हिंदुस्तानी सुंदर नहीं दिख सकते।
    6. चित्र नं 6: इस चित्र से सपष्ट होता है की अंग्रेज संकीर्ण धार्मिक प्रवृत्ति के लोग थे। उन्होंने भारत में उस समय के प्रमुख धर्मावलंबियों के धार्मिक स्थानों को अपने अत्यचारों का निशाना बनाया था। उन्होंने अनेक ऐतिहासिक स्मारकों और इमारतों को ध्वस्त किया।
    Question 5
    CBSEHHIHSH12028342

    एक चित्र और एक लिखित पाठ को चुनकर किन्हीं दो स्रोतों की पड़ताल कीजिए और इस बारे में चर्चा कीजिए कि उनसे विजेताओं और पराजितों के दृष्टिकोण के बारे में क्या पता चलता है?

    Solution

    हम पाठ्यपुस्तक के चित्र नं 18 को इस अध्याय में से चुनते हैं। यह चित्र हमें बताता है की अंग्रेजी सत्ता के विरुद्ध केवल पुरुष ही नहीं लड़ें बल्कि स्त्रियों के रूप में अनेक लोग रहे जैसे की लक्ष्मीबाई वीर महिलाओं का प्रतीक थीं।

    स्रोत नं.1: 1857 के विद्रोह के दौरानी दिल्ली और अन्य शहरों में खूब उथल-पुथल हुआ। लोगों का सामान्य जीवन प्रभावित हुआ। उनकी सामान्य गतिविधियाँ अस्तव्यस्त हो गई। सब्जियों के भाव आसमान छूने लगे। जीवन की आवश्यकता वस्तुओं का अभाव हो गया। या तो सब्जियाँ लोगों को मिलती नहीं थी और कहीं दिखाई देती थीं तो वे बासी होती थीं। अनेक लोगों ने अपना काम छोड़ दिया जैसे पानी भरने वाले लोगों ने पानी भरना छोड़ दिया। पानी भरने का काम कुलीन लोगों के लिए पीडाजनक था। कई बेचारे भद्रजन अपना काम करने के लिए खुद मजबूर हुए।


    स्रोत नं. 2: इसमें हमें विजेताओं और पराजितों के बारे में निम्न जानकारी मिलती है। विद्रोह का कारण सैनिक अवज्ञा के रूप में शुरू हुआ। भारतीय मूल के लोग जो इसाई थे वे चाहे कम्पनी की पुलिस की नौकरी कररहे हों वे भी ब्रिटिश मजिस्ट्रेटों और आधिकारियों के शक के दायरे में आ गए। जो सिपाही शिष्टाचारवश एक मुस्लिम मजिस्ट्रेट से मिलने गया जो की सिपाही सिस्टन अवध में तैनात था। मजिस्ट्रेट नेसिपाही से अवध के हालात जानने की कोशिश की। उसने कहा यदि उसे अवध में काम मिला है तो उसे वहाँ की स्थिति के बारे में अंग्रेज अधिकारीयों को समयसमय पर ठीक जानकारी दे दिजाएगी। अंग्रेज अधिकारी को मुस्लिम तहसीलदार ने अंग्रेज सिपाहियों को यह भरोसा दिलाने का प्रयास किया की चाहे विद्रोही कुछ भी दावा करें, शुरू में वे कामयाब भी रहें पर अंततः विजय अंग्रेजी सरकार या कम्पनी सरकार की होगी,मगर बाद में पता चला की वह मुस्लिम तहसीलदार जो मजिस्ट्रेट के कमरे में प्रवेश कर रहा था वह बिजनौर के विद्रोहियों का सबसे बड़ा नेता था।

    Question 6
    CBSEHHIHSH12028343

    उन साक्ष्यों के बारे में चर्चा कीजिए जिनसे पता चलता है कि विद्रोही योजनाबद्ध और समन्वित ढंग से काम कर रहे थे?

    Solution

    विद्रोह से सम्बन्धित विभिन्न स्रोतो से हमें यह प्रमाण मिलते हैं कि सिपाही विद्रोह को योजनाबद्ध एवं समन्वित तरीके से आगे बढ़ाने का प्रयास कर रहे थे। विभिन्न छावनियों में विद्रोही सिपाहियों के बीच सूचनाओं का आदान-प्रदान था। 'चर्बी वाले कारतूसों' की बात सभी छावनियों में पहुँच गई थी।
    बरहमपुर से शुरू होकर बैरकपुर और फिर अंबाला और मेरठ में विद्रोह की चिंगारियाँ भड़की। इसका अर्थ यह निकला जा सकता हैं की सूचनाएँ एक स्थान से दूसरे स्थान पर पहुँच रही थी। सिपाही बगावत के मनसूबे गढ़ रहे थे।

    इसका एक और उदाहरण यह है कि जब मई की शुरुआत में सातंवी अवध इर्रेगुलर कैविटी ने नए कारतूसों का प्रयोग करने से इनकार कर दिया तो उन्होंने 48वीं नेटिव इन्फेंट्री को लिखा: 'हमने अपने धर्म की रक्षा के लिए यह फैसला लिया है और 48 नेटिव इन्फेंट्री के के हुक्म का इंतजार कर रहे हैं।'
    सिपाहियों की बैठकों के भी कुछ सुराग हमें मिलते हैं। हालांकि बैठकों में वे कैसी योजनाएँ बनाते थे, उसके प्रमाण नहीं है। फिर भी कुछ अंदाज़े लगाए जाते हैं कि इन सिपाहियों का दुःख-दर्द तक एक जैसा था। अधिकांश उच्च-जाति के थे और उनकी जीवन-शैली भी मिलती जुलती थी। स्वाभाविक है कि वे अपने भविष्य के बारे में ही निर्णय लेते होंगे। इस विद्रोह के आरंभिक इतिहासकारों में से एक चार्ल्स बॉल ने लिखा है कि ये पंचायते रात को कानपुर सिपाही लाइनों में होती थी जिनमें मिलिट्री पुलिस के कप्तान कैप्टन 'कप्तान हियर्से' की हत्या के लिए 41वीं नेटिव इन्फेंट्री के विद्रोही सैनिकों ने उन भारतीय सिपाहियों पर दबाव डाला, जो उस कप्तान की सुरक्षा के लिए तैनात थे।

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