Hindi Writing Skill
आपके नाम से प्रेषित एक हजार रु. के मनीआर्डर की प्राप्ति न होने का शिकायत पत्र अधीक्षक, पोस्ट आफिस को लिखिए।
पता .....................
दिनांक: .............
सेवा में,
अधीक्षक,
मुख्य डाकघर,
कीर्ति नगर,
नई दिल्ली।
विषय: मनी आर्डर नहीं पहुँचने पर पत्र।
महोदय,
मैं कीर्ति नगर का रहने वाला हूँ। मेरा नाम गोपाल राय है। मेरे पिताजी ने दिनांक .................... को 1000 हज़ार रुपए का मनीआर्डर किया था। परन्तु अभी तक यह मनीआर्डर मुझे प्राप्त नहीं हुआ है।
इस विषय पर मैंने पोस्ट आफिस के स्टाफ से संपर्क साधा। परन्तु उन्हें कोई जानकारी प्राप्त नहीं है। मेरे पिताजी एक गरीब व्यक्ति हैं और बड़ी मेहनत से पैसे कमाकर मुझे भेजते हैं। आपसे निवेदन है इस दिशा में कुछ ठोस कदम उठाएँ। मेरी मनीआर्डर संख्या 259853 है।
मुझे पूर्ण विश्वास है कि आप मेरी इस समस्या की ओर ध्यान देंगे और उक्त विषय पर कार्य करेंगे। मैं सदैव आपका आभारी रहूँगा।
धन्यवाद सहित,
भवदीय,
रमेश
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निम्नलिखित काव्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर लिखिएः
यादें होती हैं गहरी नदी में उठी भँवर की तरह
नसों में उतरती कड़वी दवा की तरह
या खुद के भीतर छिपे बैठे साँप की तरह
जो औचक्के में देख लिया करता है
यादें होती हैं जानलेवा खुशबू की तरह
प्राणों के स्थान पर बैठे जानी दुश्मन की तरह
शरीर में धँसे उस काँच की तरह
जो कभी नहीं दिखता
पर जब-तब अपनी सत्ता का
भरपूर एहसास दिलाता रहता है
यादों पर कुछ भी कहना
खुद को कठघरे में खड़ा करना है
पर कहना ज़रूरत नहीं, मेरी मजबूरी है।
(क) यादों को गहरी नदी में उठी भँवर की तरह क्यों कहा गया है?
(ख) यादों को जानी दुश्मन की तरह मानने का क्या आशय है?
(ग) शरीर में धँसे काँच से यादों का साम्य कैसे बिठाया जा सकता है?
(घ) आशय स्पष्ट कीजिए-
'यादों पर कुछ भी कहना
खुद को कठघरे में खड़ा करना है।'
निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर लिखिएः
संसार की रचना भले ही कैसे हुए हो लेकिन धरती किसी एक की नहीं है। पंछी, मानव, पशु, नदी, पर्वत, समंदर, आदि की इसमें बराबर की हिस्सेदारी है। यह और बात है कि इस हिस्सेदारी में मानव जाति ने अपनी बुद्धि से बड़ी-बड़ी दीवारें खड़ी कर दी हैं। पहले पूरा संसार एक परिवार के समान था अब टुकड़ों में बँटकर एक दूसरे से दूर हो चुका है।
(क) 'मानव जाति ने अपनी बुद्धि से बड़ी-बड़ी दीवारें खड़ी कर दीं'- कथन का क्या आशय है?दिए गए संकेत बिंदुओं के आधार पर निम्नलिखित में से किसी एक विषय पर लगभग 100 शब्दों में अनुच्छेद लिखिएः
(क) मित्रता
• मित्रता का महत्त्व
• अच्छे मित्र के लक्षण
• लाभ-हानि
(ख) दहेज प्रथा- एक अभिशाप
• सामाजिक समस्या
• रोकथाम के उपाय
• युवकों का कर्त्तव्य
(ग) कम्प्यूटर
• उपयोगी वैज्ञानिक आविष्कार
• विविध क्षेत्रों का कंप्यूटर
• लाभ-हानि
आपके नाम से प्रेषित एक हजार रु. के मनीआर्डर की प्राप्ति न होने का शिकायत पत्र अधीक्षक, पोस्ट आफिस को लिखिए।
विद्यालय में आयोजित होने वाली वाद-विवाद प्रतियोगिता के लिए एक सूचना लगभाग 30 शब्दों में साहित्यिक क्लब के सचिव की ओर से विद्यालय सूचना पट के लिए लिखिए।
खाद्य-पदार्थों में होने वाली मिलावट के बारे में मित्र के साथ हुए संवाद को लगभग 50 शब्दों में लिखिए।
अपने पुराने मकान के बेचने संबंधी विज्ञापन का आलेख लगभग 25 शब्दों में तैयार कीजिए।
निम्नलिखित गद्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए –
चरित्र का मूल भी भावों के विशेष प्रकार के संगठन में ही समझना चाहिए। लोकरक्षा और लोक–रंजन की सारी व्यवस्था का ढाँचा इन्हीं पर ठहराया गया है। धर्म–शासन, राज–शासन, मत–शासन – सबमें इनसे पूरा काम लिया गया है। इनका सदुपयोग भी हुआ है और दुरुपयोग भी। जिस प्रकार लोक–कल्याण के व्यापक उद्देश्य की सिद्धि के लिए मनुष्य के मनोविकार काम में लाए गए हैं उसी प्रकार संप्रदाय या संस्था के संकुचित और परिमित विधान की सफलता के लिए भी। सब प्रकार के शासन में – चाहे धर्म–शासन हो, चाहे राज–शासन, मनुष्य–जाति से भय और लोभ से पूरा काम लिया गया है। दंड का भय और अनुग्रह का लोभ दिखाते हुए राज–शासन तथा नरक का भय और स्वर्ग का लोभ दिखाते हुए धर्म–शासन और मत–शासन चलते आ रहे हैं। इसके द्वारा भय और लोभ का प्रवर्तन सीमा के बाहर भी प्राय: हुआ है और होता रहता है। जिस प्रकार शासक–वर्ग अपनी रक्षा और स्वार्थसिद्धि के लिए भी इनसे काम लेते आए हैं उसी प्रकार धर्म–प्रवर्तक और आचार्य अपने स्वरूप वैचित्र्य की रक्षा और अपने प्रभाव की प्रतिष्ठा के लिए भी। शासक वर्ग अपने अन्याय और अत्याचार के विरोध की शान्ति के लिए भी डराते और ललचाते आए हैं। मत–प्रवर्तक अपने द्वेष और संकुचित विचारों के प्रचार के लिए भी कँपाते और डराते आए हैं। एक जाति को मूर्ति–पूजा करते देख दूसरी जाति के मत–प्रवर्तकों ने उसे पापों में गिना है। एक संप्रदाय को भस्म और रुद्राक्ष धारण करते देख दूसरे संप्रदाय के प्रचारकों ने उनके दर्शन तक को पाप माना है।
(क) लोकरंजन की व्यवस्था का ढाँचा किस पर आधारित है ? तथा इसका उपयोग कहाँ किया गया है ?
(ख) दंड का भय और अनुग्रह का लोभ किसने और क्यों दिखाया है ?
(ग) धर्म–प्रवर्तकों ने स्वर्ग–नरक का भय और लोभ क्यों दिखाया है ?
(घ) शासन व्यवस्था किन कारणों से भय और लालच का सहारा लेती है ?
(ङ) संप्रदायों–जातियों की भिन्नता किन रूपों में दिखाई देती है ?
(च) प्रतिष्ठा और लोभ शब्दों के समानार्थक शब्द लिखिए।
निम्नलिखित काव्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए –
हे ग्राम–देवता नमस्कार।
जन कोलाहल से दूर
कहीं एकाकी सिमटा–सा निवास,
रवि–शशि का उतना नहीं
कि जितना प्राणों का होता प्रकाश,
श्रम–वैभव के बल पर करते हो
जड़ में चेतनता का विकास
दानों–दानों से फूट रहे, सौ–सौ दानों के हरे हास
यह है न पसीने की धारा
यह गंगा की है धवल धार – हे ग्राम–देवता नमस्कार।
तुम जन–मन के अधिनायक हो
तुम हँसो कि फूले–फले देश,
आओ सिंहासन पर बैठो
यह राज्य तुम्हारा है अशेष,
उर्वरा भूमि के नए खेत के
नए धान्य से सजे देश,
तुम भू पर रहकर भूमि भार
धारण करण करते हो मनुज शेष,
महिमा का कोई नहीं पार
हे ग्राम–देवता नमस्कार ।।
(क) ग्राम–देवता को किसका अधिक प्रकाश मिलता है और क्यों ?
(ख) 'तुम हँसो' का क्या तात्पर्य है ? गाँवों के हँसने का क्या परिणाम हो सकता है ?
(ग) जड़ में चेतनता का विकास कौन करता है और कैसे ?
(घ) जन–मन का अधिनायक किसे कहा गया है ? उसके प्रसन्न होने का क्या परिणाम होगा ?
निम्नलिखित गद्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए ?
व्यवहारवादी लोग हमेशा सजग रहते हैं। लाभ–हानि का हिसाब लगाकर ही कदम उठाते हैं। वे जीवन में सफल होते हैं, अन्यों से आगे भी जाते हैं, पर क्या वे ऊपर चढ़ते हैं? खुद ऊपर चढ़ें और अपने साथ दूसरों को भी ऊपर ले चलें यही महत्व की बात है।
(क) व्यवहारवादी लोग हमेशा सजग क्यों रहते हैं?
(ख) महत्व की बात क्या है? और क्यों?
(ग) व्यवहारवादी और आदर्शवादी लोगों में क्या अन्तर है?
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