उपन्यास,समाज और इतिहास
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उड़िया उपन्यास
उड़िया उपन्यास:
1877 -78 में नाटककार रामशंकर राय ने सौदामिनी के नाम से पहले उड़िया उपन्यास का धारावाहिक प्रकाशन शुरू किया लेकिन वे इसे पूरा नहीं कर पाए। 30 साल के भीतर उड़ीसा में फकीर मोहन सेनापति (1843-1918) के रूप में एक बड़ा उपन्यासकार पैदा किया। उनके एक उपन्यास का नाम छ: माणो आठौ गूंठौ (1902) था जिसका शाब्दिक अर्थ है - छह एकड़ और बत्तीस गट्टे ज़मीन। यह उपन्यास मिल का पत्थर साबित हुआ और इसने साबित कर दिया कि उपन्यास के द्वारा ग्रामीण मुद्दों को भी गहरी सोच का प्रमुख भाग बनाया जा सकता है। यह उपन्यास लिखकर फकीर मोहन ने बंगाल तथा अन्य स्थानों पर बहुत सारे लेखकों के लिए द्वार खोल दिया था।
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उन्नीसवीं सदी के यूरोप और भारत, दोनों जगह उपन्यास पढ़ने वाली औरतों के बारे में जो चिंता पैदा हुई उसे संक्षेप में लिखें। इन चिंताओं से इस बारे में क्या पता चलता है कि उस समय औरतों को किस तरह देखा जाता था?
औपनिवेशिक भारत में उपन्यास किस तरह उपनिवेशकारों और राष्ट्रवादियों, दोनों के लिए लाभदायक था?
इस बारे में बताएँ कि हमारे देश में उपन्यासों में जाति के मुद्दे को किस तरह उठाया गया। किन्हीं दो उपन्यासों का उदहारण दें और बताएँ कि उन्होंने पाठको को मौजूदा सामाजिक मुद्दों के बारे में सोचने को प्रेरित करने के लिए क्या प्रयास किए।
बताइए कि भारतीय उपन्यासों में एक अखिल भारतीय जुड़ाव का अहसास पैदा करने के लिए किस तरह की कोशिशें की गई।
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