मुद्रा और बैंकिंग
मुद्रा के प्रमुख कार्य क्या-क्या हैं ? मुद्रा किस प्रकार वस्तु विनिमय प्रणाली की कमियों को दूर करता है ?
मुद्रा के चार प्रमुख कार्य निम्नलिखित हैं:
मुद्रा निम्नलिखित प्रकार से वस्तु-विनिमय प्रणाली की कमियों को दूर करती हैं:
विनिमय का माध्यम: मुद्रा की सर्वप्रथम भूमिका यह है कि वह मुद्रा विनिमय के माध्यम के रूप में कार्य करती है। मुद्रा विनिमय के माध्यम के रूप में विनिमय सौदों को दो भागों क्रय और विक्रय में विभाजित करती है। मुद्रा का यह कार्य आवश्यकताओं के दोहरे संयोग की कठिनाई को दूर करता है। लोग अपनी वस्तुओं को मुद्रा के बदले में बेचते हैं और उससे प्राप्त राशि को अन्य वस्तुओं एवं सेवाओं के क्रय में प्रयोग करते हैं।
मूल्य का मापक: मुद्रा मूल्य के मापक के रूप में भी कार्य करती हैं। विभिन्न वस्तुओं की कीमत को मुद्रा के रूप में दर्शाया जा सकता हैं। मुद्रा में व्यक्त कीमतों के आधार पर दो वस्तुओं के सापेक्षिक मूल्यों की तुलना करना सरल हो जाता है। इस प्रकार मुद्रा विनिमय के सामान्य मापक के अभाव की समस्या को हल कर देती है।
भावी भुगतान का आधार: साख आज की आधुनिक पूँजीवादी अर्थव्यवस्था का रक्त तथा जीवन बन चूका हैं। करोड़ों सौदों में तत्कालीन भुगतान नहीं किया जाता। देनदार यह वायदा करते हैं की वे भविष्य की किसी तारीख पर भुगतान करेंगे। उन स्थितियों में, मुद्रा भावी भुगतानों के आधार के रूप में कार्य करती हैं। ऐसा इसलिए संभव है, क्योंकि मुद्रा को सामान्य स्वीकृति प्राप्त है, इसका मूल्य स्थिर है, यह टिकाऊ तथा समरूप होती है।
मूल्य संचय: धन को मुद्रा के रूप में आसानी से संचित किया जा सकता हैं। मुद्रा को मूल्य की हानि किए बिना संचित किया जा सकता हैं। बचत सुरक्षित होती है तथा उन्हें आवश्यकता पड़ने पर उपयोग किया जा सकता हैं। इस प्रकार, मुद्रा वर्तमान तथा भविष्य के मध्य एक पुल का कार्य करती है। हालांकि मुद्रा के अतिरिक्त अन्य परिसंपत्ति भी मूल्य संचय का कार्य कर सकती है, परंतु, ये संपत्तियाँ दूसरी वस्तु के रूप में आसानी से परिवर्तनीय नहीं हो सकती हैं और इनकी सार्वभौमिक स्वीकार्यता भी नहीं होगी।
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