बाबा साहेब भीमराव आंबेडकर
सही में डॉ. आंबेडकर ने भावनात्मक समत्व और मान्यता के लिए जातिवाद का उन्मूलन चाहा है, जिसकी प्रतिष्ठा के लिए भौतिक स्थितियों व जीवन सुविधाओं का तर्क दिया है। क्या इससे आप सहमत हैं?
डॉ. आंबेडकर भावनात्मक समत्व और मान्यता के लिए जातिवाद का उन्मूलन चाहते थे। जातिवाद की भावना भावनात्मक समता में बाधा उपस्थित करती है। भावनात्मक समता तभी प्रतिष्ठित हो पाएगी जब समान भौतिक स्थितियाँ व जीवन सुविधाएँ उपलब्ध होंगी। जातिवाद के उन्मूलन होने पर ही यह संभव हो पाएगा। जातिवाद असमान व्यवहार को उचित ठहराता है। समाज को यदि अपने सदस्यों से अधिकतम उपयोगिता प्राप्त करनी है तो यह तभी संभव है जब समाज के सभी सदस्यों को भौतिक स्थितियों व जीवन सुविधाओं को समान रूप से उपलब्ध कराया जाएगा। हाँ, हम सबसे सहमत हैं।
Sponsor Area
जाति प्रथा को श्रम विभाजन का ही एक रूप न मानने के पीछे आंबेडकर के क्या तर्क हैं?
जाति प्रथा भारतीय समाज में बेरोजगारी व भुखमरी का भी एक कारण कैसे बनती रही है? क्या यह स्थिति आज भी है?
लेखक के मत से ‘दासता’ की व्यापक परिभाषा क्या है?
शारीरिक वंश-परंपरा और सामाजिक परंपरा की दृष्टि में असमानता संभावित रहने के बावजूद डॉ. अंबेडकर ‘समता’ को एक व्यवहार्य सिद्धांत मानने का आग्रह क्यों करते हैं? इसके पीछे उनके क्या तर्क हैं?
सही में डॉ. आंबेडकर ने भावनात्मक समत्व और मान्यता के लिए जातिवाद का उन्मूलन चाहा है, जिसकी प्रतिष्ठा के लिए भौतिक स्थितियों व जीवन सुविधाओं का तर्क दिया है। क्या इससे आप सहमत हैं?
आदर्श समाज के तीन तत्त्वों में से एक ‘भ्रातृता’ को रखकर लेखक ने अपने आदर्श समाज में स्त्रियों को भी सम्मिलित किया है अथवा नहीं? आप इस ‘भ्रातृता’ शब्द से कहाँ तक सहमत हैं? यदि नहीं तो आप क्या शब्द उचित समझेंगे?
डॉ. आंबेडकर ने जाति प्रथा के भीतर पेशे के मामले में लचीलापन न होने की जो बात की है-उस संदर्भ में ‘गलता लोहा’ पर पुनर्विचार कीजिए।
आंबेडकर की पुस्तक ‘जाति-भेद का उच्छेद’ की तरह राजकिशोर की पुस्तक भी है ‘जाति कौन तोड़ेगा?’ शिक्षक की सहायता से दोनों उपलब्ध कर पढ़िए।
Sponsor Area
Sponsor Area