फिराक गोरखपुरी
फितरत का कायम है तवाजुन आलमे-हस्नो-इश्क में भी
उसको उतना ही पाते हैं खुद को जितना खो लें हैं
आबो-ताबे अशआर न पूछो तुम भी आँखें रक्खो हो
ये जगमग बैतों की दमक हे या हम मोती रोले हें।
प्रसंग: प्रस्तुत पंक्तियाँ प्रसिद्ध शायर फिराक गोरखपुरी द्वारा रचित गजल से ली गई है।
व्याख्या: शायर बताता है-समाज में आदत का संतुलन कायम है। हुस्न (खूबसूरती) और (मुहब्बत) में भी संतुलन बना रहता है। इसको हम उतना ही पाते हैं जितना इनमें हम स्वयं को खो देते हैं अर्थात् कुछ पाने के लिए कुछ खोना भी पड़ता है।
शायर कहता है कि दुनिया की बाहरी चमक-दमक में मत खो जाओ, तुम्हें अपनी आँखें खोलकर रखनी चाहिए। ये शेरों की दमक है अथवा हम मोती रोल रहे हैं अर्थात् तुम्हें जो शेरों की जगमग दिखाई दे रही है वह हमारी आँख से निकले मोती (आँसू) हैं। ये हमारे वियोगी हृदय से निकलकर आँखों की राह बाहर आए हैं। शायरी में भाव भी है और सौंदर्य भी।
विशेष: उर्दू शैली का स्पष्ट प्रभाव है। शायरी के बारे में स्वयं अपना निष्कर्ष निकालो।
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कौन, किसे, कहाँ लिए खड़ी है?
माता अपनी संतान को किस प्रकार खिला रही हें?
बच्चा क्या करता है?
उलझे हुए गेसुओं में कंघी करके
किस प्यार से देखता है बच्चा मुँह को
जब घुटनियों में ले के है पिन्हाती कपड़े।
माँ बच्चे के लिए क्या-क्या काम करती है?
बच्चा कब अपनी माँ के मुँह को प्यार से देखता है?
चीनी के खिलौने जगमगाते लावे
वो रूपवती मुखड़े पॅ इक नर्म दमक
बच्चे के घरौंदे में जलाती है दिए
दीपावली पर लोग क्या करते हैं?
दीपावली पर बच्चे माँ से क्या फरमाइश करते हैं?
माँ के चेहरे पर मुस्कराहट क्यों आ जाती है?
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