उमाशंकर जोशी
रस का अक्षय पात्र-एक ऐसा पात्र जिसका रस कभी समाप्त न होता हो।
इस कथन के माध्यम से कवि ने रचनाकर्म की इन विशेषताओं की ओर इंगित किया है-
- साहित्यिक रचना का रस अलौकिक होता है।
- साहित्य का रस कभी चुकता नहीं अर्थात् समाप्त नहीं होता।
- साहित्य की रस-धारा असंख्य पाठकों को रसानुभूति कराती रहती है और कम न होकर बढ़ती है।
- उत्तम साहित्य कालजयी होता है।
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छोटा मेरा खेत चौकोना
कागज का एक पन्ना,
कोई अँधड कहीं से आया
क्षण का बीज वहाँ बोया गया।
कल्पना के रसायनों को पी
बीज गल गया निःशेष;
शब्द के अंकुर फूटे,
पल्लव-पुष्पों से नमित हुआ विशेष।
झूमने लगे फल,
रस अलौकिक,
अमृत धाराएँ फूटतीं
रोपाई क्षण की,
कटाई अनंतता की
लुटते रहने से जरा भी नहीं कम होती।
रस का अक्षय पात्र सदा का
छोटा मेरा खेत चौकोना।
कवि ने कागज की तुलना किससे की है और क्यों?
कवि के अनुसार बीज की रोपाई का क्या परिणाम होता है?
अंधड किसका प्रतीक है? वह क्या कर जाता है?
पौधों के फलों का काव्य-सृजन से क्या संबंध स्थापित किया गया है?
नभ में पाँती-बँधे बगुलों के पंख,
चुराए लिए जातीं वे मेरी आँखें।
कजरारे बादलों की छाई नभ छाया,
तैरती साँझ की सतेज श्वेत काया।
हौले हौले जाती मुझे बाँध निज माया से।
उसे कोई तनिक रोक रक्खो।
वह तो चुराए लिए जातीं मेरी आँखें
नभ में पाँती-बँधी बगुलों की पाँखें।
कवि ने आकाश में पंक्ति बनाकर उड़ते सफेद बगुलों की तुलना किससे की है?
‘वह तो चुराए लिए जाती मेरी आँखें’-काव्य-पंक्ति के आधार पर स्पष्ट कीजिए कि कवि की आँखें कौन और किस प्रकार चुराए लिए जा रहा है?
‘उसे कोई तनिक रोक रक्खो’-काव्य-पंक्ति का आशय स्पष्ट कीजिए।
छोटे चौकोने खेत को कागज़ का पन्ना कहने में क्या अर्थ निहित है?
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