गोस्वामी तुलसीदास
उहाँ राम लछिमनहि निहारी। बोले बचन मनुज अनुसारी।।
अर्ध राति गई कपि नहिं आयउ। राम उठाइ अनुज उर लायउ।।
सकहू न दुखित देखि मोहि काऊ। बंधु सदा तव मृदुल सुभाऊ।।
मम हित लागि तजेहु पितु माता। सहेहू बिपिन हिम आतप बाता।।
प्रसगं: प्रस्तुत काव्याशं तुलसीदास द्वारा रचित महाकाव्य ‘रामचरितमानस’ के ‘ललंकाकांड’ से अवतरित है। लक्ष्मण के मूर्च्छित होने पर राम विलाप करने लगते हैं। हनुमान औषधि लेने गए हहैं।उनके आने में विलंब हो जाता है तो राम व्याकुल हो जाते हैं।
व्याख्या: वहाँ लक्ष्मण जी को देखकर श्रीराम साधारण मनुष्यों के सामन वचन बोले-आधी रात बीत चुकी पर हनुमान नहीं आए। यह कहकर श्रीरामचंद्र जी ने छोटे भाई लक्ष्मण को उठाकर हृदय से लगा लिया।
फिर श्रीराम बोले-हे भाई! तुम मुझे कभी दु:खी नहीं देख सकते थे। तुम्हारा स्वभाव सदा से ही कोमल था। तुमने मेरे हित के लिए माता-पिता को भी छोड़ दिया और वन (जंगल) में जाड़ा, गर्मी तथा हवा (आँधी-तूफान) को भी सहा।
विशेष: 1. श्रीराम की व्याकुलता का मार्मिक अंकन हुआ है।
2. ‘स्मृति बिंब’ (लक्ष्मण प्रसंग के स्मरण में) की अवतारणा हुई है।
3. ‘बोले बचन’ ‘दु:खित देखि’ में अनुप्रास अलंकार है।
4. भाषा: अवधी।
5. छंद चौपाई।
6. रस: करुण।
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तुलसीदास के जीवन का संक्षिप्त परिचय देते हुए उनकी साहित्यिक विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
चाकर, चपल नट, चोर, चार, चेटकी।
पेटको पढ़त, गुन गढ़त, चढ़त गिरि,
अटत गहन-गन अहन अखेटकी।।
ऊँचे-नीचे करम, धरम-अधरम करि,
पेट ही को पचत, बेचत बेटा-बेटकी।
‘जतुलसी’ बुझाई एक राम घनस्याम ही तें,
आगि बड़वागितें बड़ी है अगि पेटकी।।
कवि तुलसी ने इस पद में किस समस्या को उठाया है?
इस पब में किन-किन लोगों का उल्लेख है? उन्हें क्या प्राप्त नहीं होता?
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पेट की प्याला को शांत करने के लिए लोग कैसे-कैसे काम करने को विवश हो आते हैं?
बनिक को बनिज, न चाकर को चाकरी।
जीविका बिहीन लोग सीद्यमान सोच बस,
कहैं एक एकन सौं कहाँ जाइ, का करी?
बेदहूँ पुरान कही, लोकहूँ बिलोकिअत,
साँकरे सबै पै, राम! रावरे कृपा करी।
दारिद-दसानन बयाई दुनी दीनबंधु!
दुरित-बहन देखि तुलसी हहा करी।।
प्रस्तुत कवित्त के आधार पर तत्कालीन आर्थिक परिस्थितियों पर प्रकाश डालिए।
जीविका विहीन लोग किस सोच में पड़े रहते हैं?
तुलसीदास ने दरिद्रता की तुलना किससे की है और क्यों?
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