सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’
‘सुप्त अंकुर उर में पृथ्वी के’ से क्या तात्पर्य है?
धरती में बीजों के अंकुर सुप्तावस्था में पड़े रहते हैं। वर्षा-जल से वे धरती को फोड़कर बाहर निकल आते हैं। इसी प्रकार क्रांतिदूत मेघ के बरसने से लोगों के हृदयों में सोई आकांक्षाएँ जागृत हो जाती हैं-
- ‘सुप्त अंकुर’ आकांक्षाओं के प्रतीक हैं।
- पृथ्वी उर (मन) की प्रतीक है।
क्रांति होने की स्थिति में ही लोगों के मन में छिपी आकांक्षाएँ पूरी हो सकती हैं।
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जग के दग्ध हृदय पर
निर्दय विप्लव की प्लावित माया-
यह तेरी रण-तरी,
भरी आकांक्षाओं से,
धन, भेरी-गर्जन से सजग, सुप्त अंकुर
उर में पृथ्वी के, आशाओं से,
नवजीवन की, ऊँचा कर सिर,
ताक रहे हैं, ऐ विप्लव के बादल!
फिर फिर!
इस कविता में किसे संबोधित किया गया है?
कवि ने दुख की छाया की तुलना किससे की है और क्यों?
कवि ने बादल का ही आह्वान क्यों किया है?
क्रांति की गर्जना का क्या प्रभाव पड़ता है।
वर्षण है मूसलाधार
हृदय थाम लेता संसार
सुन-सुन घोर वज्र-हुंकार।
अशनि-पात से शायित उन्नत शत-शत-वीर,
क्षत-विक्षत-हत अचल-शरीर,
गगन-स्पर्शी स्पर्धा-धीर।
कवि ने बादलों का आहान क्यों किया है?
बादलों की गर्जना का संसार पर क्या प्रभाव पड़ता है?
कवि ने बादलों की क्या-क्या विशेषताएँ बताई हैं?
‘गगन स्पर्शी, स्पर्धावीर’ का आशय स्पष्ट करो।
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