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सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’

Question
CBSEENHN12026246

दिये गये काव्यांशों की सप्रसंग व्याख्या करें

तिरती है समीर-सागर पर
अस्थिर सुख पर दुःख की छाया-

जग के दग्ध हृदय पर

निर्दय विप्लव की प्लावित माया-

यह तेरी रण-तरी,

भरी आकांक्षाओं से,

धन, भेरी-गर्जन से सजग, सुप्त अंकुर

उर में पृथ्वी के, आशाओं से,

नवजीवन की, ऊँचा कर सिर,

ताक रहे हैं, ऐ विप्लव के बादल!

फिर फिर!

Solution

प्रसगं: प्रस्तुत काव्याशं प्रगतिवादी काव्यधारा के प्रतिनिधि कवि सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ द्वारा रचित कविता ‘बादल राग’ से अवतरित है। यहाँ आम आदमी के दुःख से त्रस्त कवि व दल का आह्वान क्रांति के रूप में कर रहा है। विप्लव-रव से छोटे ही शोभा पाते हैं। क्रांति जहाँ मजदूरों में सनसनी उत्पन्न करती है, वहीं निर्धन कृषकों को उससे नई आशा-आकांक्षाएँ मिलती हैं।

व्याख्या: कवि कहता है-हे क्रांतिदूत रूपी बादल! आकाश में तुम ऐसे मँडराते रहते हो जैसे पवनरूपी सागर पर कोई नौका तैर रही हो। यह वैसे ही दिखाई दे रही है जैसे अस्थिर सुख पर दुःख की छाया मँडराती रहती है अर्थात् मानव-जीवन के सुख क्षणिक और अस्थायी हैं जिन पर दुःख की काली छाया मँडराती रहती है। संसार के दुःखों से दग्ध (जले हुए) हृदयों पर निष्ठुर क्रांति का मायावी विस्तार भी इसी प्रकार फैला हुआ है। दुःखी जनों को तुम्हारी इस युद्ध-नौका में अपनी मनवाछित वस्तुएँ भरी प्रतीत होती है अर्थात् क्रांति के बादलों के साथ दुःखी लोगों की इच्छाएँ जुड़ी रहती हैं।

हे क्रांति के प्रतीक बादल! तुम्हारी गर्जना को सुनकर पृथ्वी के गर्भ मे सोए (छिपे) बीज अंकुरित होने लगते हैं अर्थात् जब दुःखी जनता को क्रांति की गूँज सुनाई पड़ती है तब उनके हृदयों में सोई-बुझी आकांक्षाओं के अंकुर पुन: उगते प्रतीत होने लगते हैं। उन्हे लगने लगता है कि उन्हें एक नया जीवन प्राप्त होगा। अत: वे सिर उठाकर बार-बार तुम्हारी ओर ताकने लगते हैं। क्रांति की गर्जना से ही दलितों-पीड़ितों के मन में एक नया विश्वास जागत होने लगता है।

विशेष: 1. बादल को क्रांति-दूत के रूप में चित्रित किया गया है।

2. प्रगतिवादी काव्य का प्रभाव स्पष्ट लक्षित होता है।

3. ‘समीर-सागर’ में रूपक अलंकार है।

4. ‘सुप्त अंकुर’ दलित वर्ग का प्रतीक है।

5. मुक्त छंद का प्रयोग हुआ है।

Some More Questions From सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ Chapter

दिये गये काव्यांशों की सप्रसंग व्याख्या करें
बार-बार गर्जन,

वर्षण है मूसलाधार

हृदय थाम लेता संसार

सुन-सुन घोर वज्र-हुंकार।

अशनि-पात से शायित उन्नत शत-शत-वीर,

क्षत-विक्षत-हत अचल-शरीर,

गगन-स्पर्शी स्पर्धा-धीर।

कवि ने बादलों का आहान क्यों किया है?

बादलों की गर्जना का संसार पर क्या प्रभाव पड़ता है?

कवि ने बादलों की क्या-क्या विशेषताएँ बताई हैं?

‘गगन स्पर्शी, स्पर्धावीर’ का आशय स्पष्ट करो।

दिये गये काव्यांशों की सप्रसंग व्याख्या करें

हँसते हैं छोटे पौधे लधु भार-

शस्य अपार,

हिल-हिल,

खिल-खिल

हाथ हिलाते,

तुझे बुलाते,

तुझे बुलाते,

विप्लव-रव से छोटे ही हैं शोभा पाते।.




 

क्रांति की गर्जना पर कौन हंसते हैं?

छोटे पौधे किनके प्रतीक हैं?

वे किस, किस प्रकार बुलाते हैं?

‘विप्लव रव’ किससे शोभा पाते है और क्यों?