सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’
अट्टालिका नहीं है रे
आतंक-भवन
सदा पंक पर ही होता
जल-विप्लव-प्लावन।
कवि शोषक वर्ग (पूँजीपतियों) पर व्यंग्य करते हुए कहता है कि इनके ऊँचे-ऊँचे महल न होकर आतंक- भवन हैं। ये लोग यहीं से निम्नवर्ग को आतंकित करते हैं। वर्षा का प्रभाव तो कीचड़ पर ही होता है अर्थात् क्रांति का प्रभाव धनिक-पूँजीपतियों पर ही होता है। क्रांति का तेज बहाव पूँजीपतियों को बहा ले जाता है।
हाँ, क्रांति का सुफल शोषित वर्ग को प्राप्त होता है।
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जग के दग्ध हृदय पर
निर्दय विप्लव की प्लावित माया-
यह तेरी रण-तरी,
भरी आकांक्षाओं से,
धन, भेरी-गर्जन से सजग, सुप्त अंकुर
उर में पृथ्वी के, आशाओं से,
नवजीवन की, ऊँचा कर सिर,
ताक रहे हैं, ऐ विप्लव के बादल!
फिर फिर!
इस कविता में किसे संबोधित किया गया है?
कवि ने दुख की छाया की तुलना किससे की है और क्यों?
कवि ने बादल का ही आह्वान क्यों किया है?
क्रांति की गर्जना का क्या प्रभाव पड़ता है।
वर्षण है मूसलाधार
हृदय थाम लेता संसार
सुन-सुन घोर वज्र-हुंकार।
अशनि-पात से शायित उन्नत शत-शत-वीर,
क्षत-विक्षत-हत अचल-शरीर,
गगन-स्पर्शी स्पर्धा-धीर।
कवि ने बादलों का आहान क्यों किया है?
बादलों की गर्जना का संसार पर क्या प्रभाव पड़ता है?
कवि ने बादलों की क्या-क्या विशेषताएँ बताई हैं?
‘गगन स्पर्शी, स्पर्धावीर’ का आशय स्पष्ट करो।
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