गजानन माधव मुक्तिबोध
पाताली अँधेरे की गुहाओं में, विवरों में
धुएँ के बादलों में
बिल्कुल मैं लापता!!
लापता कि वहाँ भी तो तुम्हारा ही सहारा है!
प्रसंग: प्रस्तुत पक्तियाँ मुक्तिबोध द्वारा रचित कविता ‘सहर्ष स्वीकारा है’ से अवतरित हैं। कवि अपने जीवन की प्रत्येक उपलब्धि पर प्रिय की छाप देखता है। एक बार उसने भ्रमवश भय को भुलाना चाहा था, बाद में उसे अपनी सोच पर आत्मग्लानि का अहसास हुआ।
व्याख्या: है प्रिय! मैं दंड पाने के योग्य हूँ क्योंकि मैं तुम्हारा दोषी हूँ। तुम मुझे ऐसा दंड दो कि मैं पाताल की अँधेरी, गहरी गुफाओं भयानक सुनसान सुरगा में, विवरों (गड्ढों में दमघोंटू (प्राणघाती) बादलों में सर्वथा लापता हो जाऊँ। मैं गुमनामी में खोना चाहता हूँ। उस अकेलेपन में भी मुझे तुम्हारा ही सहारा होगा अर्थात् तुम्हारी प्रेमभरी यादें मेरे अकेलेपन के एहसास को नष्ट कर मुझे प्रसन्न रखेंगी। तुम्हारे निश्छल प्रेम की अनुभूतियाँ मुझे वहाँ भी आश्रय प्रदान करेंगी।
विशेष: 1. कवि ने अपने व्यक्तित्व के निर्माण में प्रिय के योगदान को स्वीकार किया है।
2. अपराधबोध से ग्रस्त मानसिकता का अत्यंत मार्मिक चित्रण किया गया है।
3. विस्मृति के लिए ‘पाताली अँधेरे’ और ‘धुएँ के बादल’ आदि उपमान बड़े ही सजीव और भाव व्यंजक हैं।
4. अंतिम पंक्ति में विरोधाभास है।
5. ‘दंड दो’ में अनुप्रास अलंकार है।
6. सरल भाषा में भावों को अभिव्यक्त करने की अद्भुत क्षमता है।
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कवि ने सहर्ष क्या स्वीकार किया है?
कवि ने इसे क्यों स्वीकार कर लिया है?
यह कविता क्या प्रेरणा देती है?
प्रस्तुत पक्तियों की सप्रंसग व्याख्या करें
गरबीली गरीबी यह, ये गंभीर अनुभव सब
यह विचार-वैभव सब
दृढ़ता यह, भीतर की सरिता यह अभिनय सब
मौलिक है, मौलिक है,
इसलिए कि पल-पल में
जो कुछ भी जागृत है, अपलक है-
संवेदन तुम्हारा है!!
कवि किस-किसको मौलिक मानता है और क्यों?
इन पर किसकी संवेदना का प्रभाव है?
इस कविता पर किस बाद का प्रभाव झलकता है?
जितना भी उँडेलता हूँ, भर-भर फिर आता है
दिल में क्या झरना है?
मीठे पानी का सोता है
भीतर वह, ऊपर तुम
मुस्काता चाँद ज्यों धरती पर रात-भर
मुझ पर त्यों तुम्हारा ही खिलता वह चेहरा है।
कवि अपने दिल की तुलना किससे करता है और क्यों?
ऊपर कौन है?
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