गजानन माधव मुक्तिबोध
प्रस्तुत पक्तियों की सप्रंसग व्याख्या करें
जिंदगी में जो कुछ है, जो भी है
सहर्ष स्वीकारा है,
इसलिए कि जो कुछ भी मेरा है
वह तुम्हें प्यारा है।
प्रसग: प्रस्तुत पक्तियाँ मुक्तिबोध की एक सशक्त रचना ‘सहर्ष स्वीकारा है’ में से उउद्धृतहै। इसमें कवि ने कहा है कि जीवन के समस्त खड़े-मीठे अनुभवों, कोमल-तीखी अनुभूतियों और सुख-दुःख को उसने इसलिए सहर्ष स्वीकारा है कि वह अपने किसी भी क्षण को अपने प्रिय से न केवल अत्यत जुड़ा हुआ अनुभव करता है; अपितु हर स्थिति-परिस्थिति को उसी की देन मानता है।
व्याख्या: कवि कहता है-हे प्रिय! मेरे इस जीवन में जो कुछ भी सुख-दुःख, मीठे-कड़वे अनुभव, सफलता-असफलताएँ हैं उन्हें मैंने प्रसन्नतापूर्वक स्वीकार कर लिया है। मैंने इन्हें सहर्ष इसलिए स्वीकार किया है क्योंकि तुमने इन सबको प्रेमपूर्वक अपना माना है अर्थात् मेरी सभी प्रकार की उपलब्धियाँ और कमियाँ तुम्हें सदा से प्रिय रही हैं। मेरा यह जीवन तुम्हारे प्रेम की देन है। मेरा जो कुछ भी है, वह तुम्हें प्रिय है। जो कुछ तुम्हें प्रिय है, वह मुझे भी स्वीकार है।
विशेष: 1. प्रिय की संवेदना का तरल अमूर्त बिंब प्रस्तुत किया गया है।
2. प्रिय का प्यार कवि को सब कुछ सहने की शक्ति प्रदान करता है।
3. ‘सहर्ष स्वीकारा’ में अनुप्रास अलंकार है।
4. काव्य भाषा सरल एवं स्पष्ट है।
Sponsor Area
प्रस्तुत पक्तियों की सप्रंसग व्याख्या करें
जिंदगी में जो कुछ है, जो भी है
सहर्ष स्वीकारा है,
इसलिए कि जो कुछ भी मेरा है
वह तुम्हें प्यारा है।
कवि ने सहर्ष क्या स्वीकार किया है?
कवि ने इसे क्यों स्वीकार कर लिया है?
यह कविता क्या प्रेरणा देती है?
प्रस्तुत पक्तियों की सप्रंसग व्याख्या करें
गरबीली गरीबी यह, ये गंभीर अनुभव सब
यह विचार-वैभव सब
दृढ़ता यह, भीतर की सरिता यह अभिनय सब
मौलिक है, मौलिक है,
इसलिए कि पल-पल में
जो कुछ भी जागृत है, अपलक है-
संवेदन तुम्हारा है!!
कवि किस-किसको मौलिक मानता है और क्यों?
इन पर किसकी संवेदना का प्रभाव है?
इस कविता पर किस बाद का प्रभाव झलकता है?
जितना भी उँडेलता हूँ, भर-भर फिर आता है
दिल में क्या झरना है?
मीठे पानी का सोता है
भीतर वह, ऊपर तुम
मुस्काता चाँद ज्यों धरती पर रात-भर
मुझ पर त्यों तुम्हारा ही खिलता वह चेहरा है।
Sponsor Area
Sponsor Area