तुलसीदास - राम-लक्ष्मण-परशुराम संवाद
यदि मैं कभी ऐसी परिस्थिति में पड़ गया तो मैं यथासंभव श्री राम के समान विनयपूर्वक और संयत व्यवहार को प्रकट करूंगा क्योंकि परशुराम के समान प्रकट किए जाने वाले क्रोध से तो सामने वाले के हृदय में भी क्रोध का भाव ही भरेगा जिससे क्लेश-भाव बढ़ेगा। इससे समस्या बढ़ जाएगी। लक्ष्मण के समान लगातार व्यंग्य बाणों का उपयोग भी सामने वाले व्यक्ति को उकसायेगा जिससे उसका गुस्सा बढ़ेगा जो अंतत: झगड़े में बदल जाएगा। विनय का भाव और संयत व्यवहार किसी क्रोधी व्यक्ति के क्रोध को भी शाँत कर देने की क्षमता रखता है।
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परशुराम ने अपने विषय में सभा में क्या-क्या कहा, निम्न पद्यांश के आधार पर लिखिए-
बाल ब्रह्मचारी अति कोही। बिस्वबिदित क्षत्रियकुल द्रोही।।
भुजबल भूमि भूप बिनु कीन्ही। बिपुल बार महिदेवन्ह दीन्ही।।
सहसबाहुभुज छेदनिहारा। परसु बिलोकु महीपकुमारा।।
मातु पितहि जनि सोचबस करसि महीसकिसोर।
गर्भन्ह के अर्भक दलन परसु मोर अति घोर।।
लक्ष्मण ने वीर योद्धा की क्या-क्या विशेषताएँ बताई?
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