मंगलेश डबराल - संगतकार
कवि ने लाक्षणिकता का प्रयोग करते हुए प्रकट किया है कि जैसे निपुण संगीतकार के ऊंचे और गंभीर स्वर में संगतकार अपना स्वर मिलाने को विवश होता है वैसे ही किसी साधन-संपन्न, समृद्ध और शक्तिशाली के स्वर में कोई अभावग्रस्त अपनी आवाज को मिलाने के लिए मजबूर होता है। उसके अपने स्वर का कोई औचित्य नहीं होता।
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भाव स्पष्ट कीजिए:
और उसकी आवाज़ में जो एक हिचक साफ़ सुनाई देती है
या अपने स्वर को ऊँचा न उठाने की जो कोशिश है
उसे विफलता नहीं
उसकी मनुष्यता समझा जाना चाहिए।
कल्पना कीजिए कि आपको किसी संगीत या नृत्य समारोह का कार्यक्रम प्रस्तुत करना है लेकिन आपके सहयोगी कलाकार किसी कारणवश नहीं पहुँच पाए-
(क) ऐसे में अपनी स्थिति का वर्णन कीजिए।
(ख) ऐसी परिस्थिति का आप कैसे सामना करेंगे?
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