मंगलेश डबराल - संगतकार
मेरे विद्यालय में मनाए जाने वाले किसी भी सांस्कृतिक समारोह में जितना महत्व मंच पर कार्यक्रम प्रस्तुत करने वाले कलाकारों और उद्घोषकों का होता है उतना या उससे भी अधिक महत्त्व मंच के पीछे काम करने वालों का होता है। जिस प्रकार नींव के बिना कोई भवन खड़ा नहीं हो सकता उसी प्रकार मंच के पीछे काम करने वाले सहयोगियों के बिना कोई सांस्कृतिक समारोह हो ही नहीं सकता। संगीत और नृत्य कार्यक्रमों में संगतकार मंच के पीछे से संगीत की प्रस्तुति कर कार्यक्रम को जीवंत बनाते हैं। प्रकाश की अनुकूल और प्रभावी व्यवस्था मंच के पीछे काम करने वाले ही करते हैं। वे ही मंच पर प्रकाश की उचित व्यवस्था से किसी कार्यक्रम में जान डाल देते हैं। मंच की साज-सज्जा का दर्शक के मन पर कार्यक्रम आरंभ होने से पहले ही जो स्थाई प्रभाव पड़ता है उसका सीधा संबंध कार्यक्रम की प्रस्तुति पर होता है। इसलिए मंच सज्जाकार का विशिष्ट महत्त्व है। ध्वनि व्यवस्था करने वाले इलैक्ट्रीशियन का महत्व तो असंदिग्ध रूप से महत्त्वपूर्ण है। बिना उचित ध्वनि के कार्यक्रम संभव ही नहीं। पावर कट की स्थिति में जैनरेटर चलाने वाले की उपयोगिता अपने आप ही दिखाई दे जाती है। किसी नृत्य-कार्यक्रम में मंच के पीछे से भूमिका बांधने वाले और गायन प्रस्तुत करने वाले सहयोगी की आवश्यकता तो सदा रहती ही है।
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भाव स्पष्ट कीजिए:
और उसकी आवाज़ में जो एक हिचक साफ़ सुनाई देती है
या अपने स्वर को ऊँचा न उठाने की जो कोशिश है
उसे विफलता नहीं
उसकी मनुष्यता समझा जाना चाहिए।
कल्पना कीजिए कि आपको किसी संगीत या नृत्य समारोह का कार्यक्रम प्रस्तुत करना है लेकिन आपके सहयोगी कलाकार किसी कारणवश नहीं पहुँच पाए-
(क) ऐसे में अपनी स्थिति का वर्णन कीजिए।
(ख) ऐसी परिस्थिति का आप कैसे सामना करेंगे?
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