नागार्जुन - यह दंतुरित मुसकान
कितना सुंदर है वह बच्चा। छोटा-सा है, एक साल से भी छोटा होगा। कमल के फूल के समान उसका मोहक चेहरा है। मिट्टी में खेलता है, इधर-उधर कच्चे गन में रेंगता रहता है। सारे शरीर पर धूल लगी हुई है। कवि लंबे समय के बाद पर लौटा है। अपनी बच्चे के बारे में उसे अपनी पत्नी से पता लगा है। वह भाव-विभोर है। एक टक उस बच्चे की ओर निहार रहा है। वह उसकी मोहक ‘दंतुरित मुसकान’ पर तो मंत्र-मुग्ध है। बच्चा उसे पहचानना चाहता है पर पहचान नहीं पाता-छोटा है न, शायद उसने उन्हें पहली बार देखा है, वह कनखियों को अनजाने से अतिथि को देखता है पर क्रोध करता नहीं है-बस मुसकराता है। कवि को लगता है कि इस बच्चे की मुसकान तो पत्थर को भी पिघला देने की क्षमता रखती है। कठोर-से-कठोर व्यक्ति भी इसकी मोहक मुसकान पर मर मिट सकता है।
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कवि ने फसल को हजार-हजार खेतों की मिट्टी का गुण-धर्म कहा है-
मिट्टी के गुण-धर्म को आप किस तरह परिभाषित करेंगे?
कवि ने फसल को हजार-हजार खेतों की मिट्टी का गुण-धर्म कहा है-
वर्तमान जीवन शैली मिट्टी के गुण-धर्म को किस-किस तरह प्रभावित करती है?
मिट्टी द्वारा अपना गुण-धर्म छोड़ने की स्थिति में क्या किसी भी प्रकार के जीवन की कल्पना की जा सकती है?
मिट्टी के गुण-धर्म को पोषित करने में हमारी क्या भूमिका हो सकती है?
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