सूर्यकांत त्रिपाठी निराला - उत्साह
अनुप्रास-
• ‘नहीं रही है’।
• ‘घर-घर भर’, ‘पर-पर कर’।
• ‘शोभा-श्री’।
विशेषोक्ति- आँख हटाता हूँ तो
हट नहीं रही है।
पुनरुक्ति प्रकाश - घर-घर, पर-पर, पाट-पाट।
मानवीकरण - कहीं साँस लेते हो
घर-घर भर देते हो
उड़ने को नभ में तुम
पर-पर कर देते हो।
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