जयशंकर प्रसाद - आत्मकथ्य
कवि को जीवन में किसी से प्रेम हुआ था पर उसे अपने प्रेम की प्राप्ति नहीं हुई थी। कवि को ऐसा लगता था कि उसके प्रिय की अपार सुंदरता ही उसके जीवन की प्रेरणा थी और उसके स्मृति रूपी सहारे से वह अपने जीवन की थकान को कुछ कम कर सकने में सफल हुआ था। कवि के जीवन से परिचित होने की इच्छा रखने वालों को उसके प्रेम के विषय में जानने की चेष्टा नहीं करनी चाहिए क्योंकि वह विषय उसका पूर्णरूप से वैयक्तिक था।
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(ख) जिसके अरुण-कपोलों की मतवाली सुंदर छाया में।
अनुरागिनी उषा लेती थी निज सुहाग मधुमाया में।
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