सूर्यकांत त्रिपाठी निराला - उत्साह
अज्ञात सत्ता रूपी कवि के प्रियतम प्रभु फागुन की सुंदरता के कण-कण में व्याप्त है। उनकी श्वास के द्वारा प्रकृति का कोना-कोना सुगंध से आपूरित था। वही कवि के मन में तरह-तरह की कल्पनाएँ भरते थे। उनमें विशेष आकर्षण था जिससे कवि अपनी आँख नहीं हटाना चाहता। उसकी दृष्टि हट ही नहीं रही है।
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