सूर्यकांत त्रिपाठी निराला - उत्साह
पत्तों से लदी डाल
कहीं हरी, कहीं लाल
कहीं पड़ी है उर में
मंद-गंध-पुष्प-माल,
पाट-पाट शोभा-श्री
पट नहीं रही है।
कवि को हरे पत्तों और लाल कोयलों से भरी डालियों के बीच खिले सुगंधित फूलों की शोभा बिखरी है। ऐसा प्रतीत होता है कि उनके कंठों में सुगंधित फूलों की मालाएँ पड़ी हुई हैं। कवि की अज्ञात सत्ता रूपी प्रियतम वन की शोभा के वैभव को कूट-कूट कर भर रहे हैं पर अपनी पुष्पलता के कारण उसमें समा न सकने के कारण चारों ओर बिखर रही है। कवि ने अपने मन के भावों को प्रकृति के माध्यम से व्यक्त किया है।
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