जयशंकर प्रसाद - आत्मकथ्य
मेरा आत्मकथ्य अभी किसी के लिए भी महत्वपूर्ण नहीं हो सकता। न तो अभी मैंने यथार्थ जीवन की राह में कदम बढ़ाए हैं और न ही मैं अपनी शिक्षा पूरी कर पाया हूँ। केवल पंद्रह वर्ष की आयु है अभी मेरी। मेरा जन्म जिस परिवार में हुआ है वह मध्यवर्गीय है। पिता जी की सरकारी नौकरी से प्राप्त होने वाली आय कठिनाई से जीवन गुजारने योग्य सुविधाएँ परिवार को प्रदान करती है। मेरे माता-पिता अपना पेट काटकर हम तीन भाई-बहनों का पेट भरते हैं, हमें पढ़ाते-लिखाते हैं। स्वयं पुराना और घिसा-पिटा पहन कर भी हमें नया लेकर देने का प्रयत्न करते हैं। उन्होंने हमें अच्छे संस्कार दिए हैं और कभी किसी के सामने हाथ न फैलाने की शिक्षा दी है। अपनी पढ़ाई-लिखाई के साथ मुझे व्यायाम करने और कुश्ती लड़ने का शौक है। मैं अपने स्कूल की ओर से कई बार कुश्ती प्रतियोगिताओं में हिस्सा ले चुका हूँ और मैंने स्कूल के लिए कई पुरस्कार जीते हैं। पढ़ाई में मैं अच्छा हूँ। अपनी कक्षा में पहला या दूसरा स्थान प्राप्त कर लेता हूँ जिस कारण अपने माता-पिता के साथ-साथ अपने अध्यापकों की आँखों का भी तारा हूँ। मेरे सहपाठियों और मेरे मुहल्ले के लड़की को मेरे साथ खेलना और बातें करना अच्छा लगता है। ईश्वर के प्रति मेरी अटूट आस्था है।
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