जयशंकर प्रसाद - आत्मकथ्य
कवि अपने जीवन में किसी के प्रति किए गए प्रेमभाव को जग जाहिर नहीं करना चाहता था। वह नहीं चाहता था कि जिस प्रेम के सुख को उसने पाया ही नहीं और जिसका केवल सपना-भर देखा उसे दूसरों के सामने प्रकट करे। वह प्रेम तो उसकी स्मृतियों का सहारा था जो उसे जीने की प्रेरणा देता था।
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