लेखक अपने कमरे में लेटे-लेटे दो ही चीजें देखता रहता था। खिड़की के बाहर हवा में झूलते सुपारी के पेड़ के झालरदार पत्ते और कमरे के अंदर चारों ओर किताबों से ठसा-ठस भरी अलमारियाँ।
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Some More Questions From मेरा छोटा- सा निजी पुस्तकालय - धर्मवीर भारती Chapter