गीत-अगीत - रामधारी सिंह दिनकर
भाव पक्ष- कवि कहता है कि दो प्रेमियों के प्रेम का अंतर देखो। एक प्रेमी साँझ होते ही आल्हा-गीत गाने लगता है। जैसे ही उसके मुख से आल्हा का पहला स्वर फूटता है, वैसे ही उसकी राधा घर से वहाँ खिंची चली आती है। वही नीम की छाया में छिपकर उसका वह मधुर गीत सुनती है। गीत पर मुग्ध होकर वह सोचती है कि हें विधाता! मैं इस मधुर गीत की पंक्ति ही क्यों न बन गई? काश मैं इसके मधुर गीत में खो जाती। देखो, प्रेमी गाता है और उसके गान को सुनकर उसकी प्रेमिका का हृदय नाच उठता है। एक का प्रेम प्रकट, है तो दूसरी का मौन। एक गया जाने के कारण गीत है तो दूसरा मौन होने के कारण ‘अगीत’ है। बताओ, इन दोनों में कौन अधिक सुंदर है।
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