गीत-अगीत - रामधारी सिंह दिनकर
गूँज रहा शुक का स्वर वन में,
फूला मग्न शुकी का पर है।
गती, अगीत, कौन सुदंर है ?
भाव पक्ष- कवि ने मौन और प्रकटीकरण के अन्तर को व्यक्त करने के लिए तोते और तोती के व्यवहार को सामने रखते हुए कहा है कि शुक वृक्ष की उस घनी डाल पर बैठा है जिसकी छाया उसके घोंसले पर पड़ रही है, उसी घोंसले में शुकी भी बैठी है, वह अपने पंख फुलाकर अपने अंडों को से रही है। जब सूरज की बसंती किरण पत्तों से छनकर आती है और उसके अंगों को छूती है तो वह प्रसन्न होकर गा उठता है। उधर शुकी भी गाना चाहती है किन्तु उसके मन में उठने वाले गीत प्रेम और वात्सल्य में डूबकर रह जाते हैं। वह अपने बच्चों को स्नेह में डूबी-डूबी उन गीतों को अंदर-ही-अंदर अनुभव करती है। देखो शुक का स्वर वन में चारों ओर गूंज रहा है, किन्तु शुकी अपने पंखों को अंडों पर फुलाए हुए मग्न है। दोनों ही सुंदर है। शुक का स्नेह मुखर है और शुकी का मौन। एक का स्वर गीत कहलाता है, दूसरे का मौन अगीत कहलाता है। बताइए, इन दोनों में से कौन सुन्दर है।
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