एक फूल की चाह - सियारामशरण गुप्त
भाव पक्ष- सुखिया का पिता भक्तों को कहता है कि क्या मेरे पाप तुम्हारी देवी की महानता से भी अधिक बढ़कर है? क्या मेरे मैल में तुम्हारी देवी के गौरव को नष्ट करने की शक्ति है? तुम ऐसा तुच्छ विचार करके भी स्वयं को माता का भक्त कैसे कहला सकते हो? ऐसा विचार प्रकट करके तो तुम माता के सामने ही माता का गौरव छोटा कर रहे हो। पर उस समय उन देवी के भक्तों ने मेरी कोई भी बात नहीं सुनी। उन्होंने मुझे पकड़ लिया। मुक्के और घूसे मार-मारकर नीचे गिरा दिया।
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